कतर ने प्रवासी मजदूरों के हक में छह महीने पहले जिन अहम सुधारों की घोषणा की थी, अब उन पर पानी फिर सकता है. कतर की शूरा काउंसिल ने जो नई सिफारिशें की हैं, अगर उन्हें मान लिया गया तो कतर के प्रवासी मजदूरों को बड़ा झटका लगेगा.
शूरा काउंसिल की सिफारिश के मुताबिक, कॉन्ट्रैक्ट के दौरान प्रवासी मजदूर नौकरी नहीं बदल सकेंगे, इसके अलावा, कोई मजदूर अपने पूरे प्रवास के दौरान कितनी बार नौकरी बदल सकता है, इसे भी सीमित कर दिया गया है. काउंसिल ने मांग की है कि किसी कंपनी में 15 फीसदी से ज्यादा लोगों को नियोक्ता या नौकरी बदलने की मंजूरी नहीं दी जाए. वहीं, 'अवैध मजदूरों' के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का भी प्रावधान लाया जा सकता है.
कतर में बड़ी संख्या में विदेशी कामगार रहते हैं. कतर में 6,30,000 से ज्यादा भारतीय काम करते हैं. कतर ने छह महीने पहले ही अपने श्रम कानून में अहम बदलावों की घोषणा की थी जिसके तहत न्यूनतम मजदूरी में 25 फीसदी का इजाफा किया गया था और मजदूरों के खाने और रहने के लिए भत्ता अनिवार्य कर दिया गया था. इसके अलावा, दशकों से चली आ रही कफाला व्यवस्था को खत्म करने का भी ऐलान किया गया था. कफाला व्यवस्था के तहत किसी भी मजदूर को नौकरी बदलने से पहले अपने नियोक्ता की अनुमति लेनी पड़ती है.
खाड़ी के अधिकतर देशों में कफाला व्यवस्था है. इसके तहत, वहां काम करने के लिए कामगारों के पास एक स्पॉन्सर होना चाहिए जो बाद में उनके वीजा और कानूनी दर्जे के लिए भी जिम्मेदार होता है. कई कामगार स्पॉन्सरशिप के लिए अपने नियोक्ता पर ही पूरी तरह से निर्भर होते हैं. नियोक्ता कामगारों की इसी मजबूरी का फायदा उठाकर उनका शोषण करते हैं. लंबे समय से कफाला सिस्टम को खत्म करने और श्रम कानूनों में बदलावों की मांग होती रही है.
कतर के अमीर ने अक्टूबर 2019 में श्रम कानूनों में सुधारों की घोषणा कर दी थी जिन्हें पिछले साल सितंबर महीने में कानूनी रूप दिया गया. जब कतर ने सुधारों का ऐलान किया था तो कतर में भारतीय राजदूत दीपक मित्तल ने भी इसका स्वागत किया था. उन्होंने एक ट्वीट में कहा था कि सरकार का न्यूनतम मजदूरी बढ़ाने और प्रवासी मजदूरों को नौकरी बदलने के मामले में आजादी देने का कदम स्वागत योग्य है. हालांकि, कतर अब इन सुधारों से कदम पीछे खींचता नजर आ रहा है.
स्थानीय मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, शूरा काउंसिल ने साल 2021 में पहली बैठक के बाद कई अहम सिफारिशें की हैं जिससे लाखों कामगारों को नुकसान पहुंचेगा. शूरा काउंसिल की सिफारिश मानी गई तो किसी एक कंपनी में 10 फीसदी कामगारों को नौकरी छोड़ने से पहले एग्जिट परमिट लेना जरूरी होगा जबकि पहले सिर्फ 5 फीसदी कामगारों के लिए ये परमिट लेना जरूरी था. इसके अलावा, अनुबंध की अवधि के दौरान, कोई भी कामगार नौकरी बदलने का अनुरोध नहीं कर सकेगा. यही नहीं, कतर में पूरे प्रवास के दौरान कोई भी कामगार तीन बार से ज्यादा नौकरी नहीं बदल सकेगा. शूरा काउंसिल की सिफारिशों को लेकर मानवाधिकार संगठनों ने भी अपनी चिंता जाहिर की है.
कतर के श्रम मंत्री युसूफ बिन मोहम्मद अल अथमान फखरो ने सिफारिशों को लेकर उठ रहे सवालों के जवाब में कहा कि सभी पक्षों के अधिकारों की सुरक्षा होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि नौकरी बदलने का अनुरोध करने वालों की संख्या बहुत कम है और उनमें से भी बहुत कम को ही इसकी मंजूरी मिलती है. श्रम मंत्री की इस टिप्पणी के बाद छह महीने पहले पेश किए गए सुधारों पर अमल को लेकर संदेह और गहरा गए हैं.
कतर साल 2022 में फीफा वर्ल्ड कप की मेजबानी करने वाला है और ऐसे में वहां प्रवासी मजदूरों की तादाद और बढ़ गई है. भारत से भी कतर जाने वाले मजदूरों की संख्या बढ़ी है. मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि फीफा वर्ल्ड कप की तैयारियों में लगे कामगारों का बुरी तरह शोषण किया जा रहा है. संसाधनों और सुविधाओं के अभाव में भारत समेत तमाम देशों के कामगार अमानवीय परिस्थितियों में काम करने के लिए मजबूर हैं.
'द गार्जियन' की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले 10 सालों में भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका के 6500 से ज्यादा प्रवासी मजदूरों की कतर में मौत हो चुकी है. दिसंबर 2010 में कतर ने फीफा वर्ल्ड कप की मेजबानी हासिल की थी, तब से लेकर अब तक इन पांच एशियाई देशों से हर सप्ताह औसतन 12 प्रवासी मजदूरों की मौत हो रही है. साल 2011-2020 के बीच भारत, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका के 5927 प्रवासी मजदूरों की मौत हो चुकी है.
'द गार्जियन' की रिपोर्ट के मुताबिक, कतर की सरकार प्रवासी मजदूरों की मौत के मामलों की जांच ठीक तरह से करने में नाकाम रही है. दोहा में भारतीय दूतावास की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक, जनवरी 2015 से लेकर सितंबर 2016 के बीच कतर में 761 भारतीय कामगारों की मौत हुई. इनमें से अधिकतर मामलों में सरकार मौत की असली वजह बताने में नाकाम रही.