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विश्व

मोदी सरकार के इन चार कदमों से सरहद पर बेचैन हो उठा है चीन

मोदी सरकार के इन चार कदमों से सरहद पर बेचैन हो उठा है चीन
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चीन की सेना लद्दाख के गलवान, पेट्रोलिंग प्वाइंट 15 और हॉट स्प्रिंग इलाके से करीब 2 किमी तक पीछे हट गई है. कहा जा रहा है कि गतिरोध कम करने का यह पहला कदम है. जब चीन की सेना हटी तो भारतीय सेना ने भी अपने कदम पीछे खींचे हैं.
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दुनिया भर में यह सवाल उठ रहा है चीन सरहद पर भारत के खिलाफ इतना आक्रामक क्यों हो गया है? यहां तक कि पीएम मोदी ने भी 2018 में कहा था कि दोनों देशों में इस कदर परिपक्वता है कि सीमा विवाद के बावजूद सरहद पर आज तक एक गोली नहीं चली. जाहिर है यह भारत को भी असहज करने वाला है.
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भारत के सेना प्रमुख रहे वीपी मलिक ने अपने कुछ इंटरव्यू में कहा कि चीन की बेचैनी समझ में आती है. भारत ने पिछले साल पांच अगस्त जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म कर पूरे इलाके को दो केंद्रशासित प्रदेश में बांट दिया था. चीन ने तत्काल टिप्पणी की थी कि उसे यह अस्वीकार्य है और पूरे इलाके की यथास्थिति से छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए. पाकिस्तान लगातार चीन से कहता रहा कि वो इस मामले में हस्तक्षेप करे लेकिन अब तक वो कुछ ठोस नहीं कर पाया था.
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इस बीच पिछले साल दिसंबर में चीन में कोरोना वायरस के संक्रमण की शुरुआत हुई और दो महीने बाद वैश्विक महामारी घोषित करना पड़ा. दुनिया भर में चीन को लेकर सवाल उठने लगे. अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप के कई देशों ने चीन के खिलाफ जांच की मांग की. भारत ने भी विश्व स्वास्थ्य संगठन में चीन के खिलाफ मानी जा रही इस जांच का समर्थन किया. चीन हर मोर्चे पर घिरने लगा था. चीन को ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, जापान के साथ भारत की बढ़ती करीबी को लेकर भी चिंता सताने लगी है.
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लद्दाख और सीमाई इलाके में सड़क निर्माण-

भारत का सीमाई इलाकों में तेजी से मूलभूत ढांचे का विकास करना भी चीन की बेचैनी की एक वजह बनी है. युद्ध या संघर्ष की स्थिति बनने पर भारतीय सेना के पास कई दुर्गम इलाकों तक पहुंचने का कोई रास्ता नहीं होता था. इसीलिए भारत ने पिछले कुछ सालों में लद्दाख समेत सीमाई इलाकों में सड़क निर्माण का कार्य तेजी से आगे बढ़ाया है. भारत ने इन सीमाई इलाकों में विकास कार्य के अलावा, अन्य गतिविधियां भी तेज की हैं.
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अप्रैल महीने में लेह के कारू से कराकोरम पास तक बाइक एक्सिपिडिशन आयोजित किया गया था. इसकी खास बात ये थी कि पहली बार लद्दाख में नवनिर्मित 255 किमी लंबी दारबूक-शायोक-दौलत-बेग ओल्डी (डीएस-डीबीओ) सड़क से होकर बाइक सवारों का काफिला गुजरा. इसमें कई आर्मी के जवान भी शामिल थे. उत्तरी-पूर्वी लद्दाख में आर्मी की आवाजाही के लिए यह सड़क काफी अहमियत रखती है. यह सड़क चीन के कब्जे वाले अक्साई चिन और कई दुर्गम पहाड़ी इलाकों तक पहुंच मुहैया कराती है.
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2017 में डोकलाम में भारत-चीन के बीच टकराव के बाद ही मोदी सरकार एलएसी के नजदीक निर्माण कार्य में तेजी लाई है. डोकलाम तनाव के बाद सरकार ने घोषणा की थी कि एलएसी के 100 किमी की परिधि के भीतर मूलभूत ढांचे के विकास के लिए आर्मी को पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी नहीं लेनी होगी. मोदी सरकार ने बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन (बीआरओ) को तमाम प्रशासनिक और आर्थिक फैसले लेने के मामले में भी शक्तियां बढ़ाईं. कुछ विश्लेषकों का कहना है कि अगर इसी रफ्तार से भारत में काम होता तो अब तक सभी सीमाई सड़कें पूरी बन चुकी होतीं.
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हाल के सालों में, बीआरओ ने लद्दाख और उत्तर-पूर्व में सामरिक रूप से महत्वपूर्ण कई परियोजनाओं को पूरा किया है. डीएसडीबीओ सड़क भी इनमें से एक है. डीएसडीबीओ रोड में 37 ब्रिज हैं. ये सड़क एलएसी के लगभग समानांतर बनाई गई है जिससे देसपांग और गालवान घाटी के इलाकों तक पहुंचना आसान हो गया है. ये सड़क रणनीतिक लिहाज से काफी अहम कराकोरम पास के नजदीक खत्म होती है. यही नहीं, ये सड़क सैन्य ठिकानों से भी जुड़ी हुई है. हालांकि, अब भी भारत बॉर्डर इन्फ्रास्ट्रक्चर के मामले में चीन से काफी पीछे है लेकिन भारत की सक्रियता ने उसकी चिंता बढ़ाई है.
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आर्थिक मोर्चे पर घेराबंदी
भारत ने पिछले कुछ महीनों के भीतर, चीन को आर्थिक तौर पर सीधे प्रभावित करने वाले भी कई कदम उठाए हैं. अप्रैल महीने में भारत ने चीन से होने वाले निवेश के ऑटोमैटिक रूट को बंद कर दिया था और चीनी निवेश के पहले भारत सरकार की मंजूरी अनिवार्य कर दी. भारत को आशंका थी कि कोरोना वायरस की महामारी में भारतीय कंपनियों का कारोबार ठप पड़ा है और इसका फायदा उठाकर चीनी कंपनियां इनका सस्ते में टेकओवर कर सकती हैं.
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भारत के इस कदम के बाद चीन की तरफ से तुरंत प्रतिक्रिया आई. चीन ने भारत के इस कदम को एकतरफा और विश्व व्यापार संगठन के नियमों के खिलाफ बताकर नाराजगी भी जताई थी. यहां तक कि चीनी मीडिया ने भारत को मेडिकल सप्लाई बैन करने की ही धमकी दे दी थी.
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भारत का मैन्युफैक्चरिंग में चुनौती देना-
कोरोना महामारी के बीच चीन से कई कंपनियां अपना कारोबार समेटकर भारत आना चाह रही हैं. इसे लेकर भी चीन परेशान है. भारत के वर्ल्ड फैक्ट्री बनने की रिपोर्ट्स पर चीनी मीडिया ने कहा था कि भारत चीन की जगह लेने की कोशिश कर रहा है लेकिन वह इसमें कभी कामयाब नहीं होगा. चीन में यह चिंता उस समय जताई गई जब पिछले दिनों जर्मनी की एक जूता कंपनी ने अपनी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट चीन से उत्तर प्रदेश शिफ्ट करने की बात कही.
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मोदी सरकार की रणनीतिक और आर्थिक मोर्चे पर सक्रियता से चीन की चिंता बढ़ रही है. एलएसी पर चीन की आक्रामकता बेवजह नहीं है बल्कि वह इसके जरिए भारत पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है. हालांकि, भारत ने जो कदम उठाए हैं, उनसे पीछे हटने वाला नहीं है.
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