ईरान में आज राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान हो रहा है. इसे मोटे तौर पर ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी प्रशासन और उसकी नीतियों पर जनमत संग्रह के रूप में देखा जा रहा है. लेकिन इस बार के चुनाव में कट्टरपंथी उम्मीदवारों के बीच ही मुकाबला है क्योंकि सुधारवादी और उदारवादी नेताओं को चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं मिल पाई है.
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ईरान में इस बार सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई के करीबी शिया मौलवी और सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख इब्राहिम रईसी की जीत पक्की मानी जा रही है. मौजूदा राष्ट्रपति हसन रूहानी नरम रुख वाले नेता माने जाते हैं. वह अमेरिका सहित तमाम पश्चिम से रिश्तों को पटरी पर लाने की हिमायत करते रहे रहे हैं. ईरान के नियमों के मुताबिक, हसन रूहानी का दो कार्यकाल पूरा हो चुका है. लिहाजा वह तीसरी बार राष्ट्रपति का चुनाव नहीं लड़ सकते हैं.
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इस बार ईरान के चुनाव को पश्चिमी देशों से संबंध, लोकतांत्रिक सुधार और खस्ताहाल अर्थव्यवस्था के लिहाज से महत्वपूर्ण माना जा रहा है. आइए जानें कि ईरान में राष्ट्रपति चुने जाने की चुनावी प्रक्रिया क्या है.
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ईरानी सरकार की बुनियादी राजनीतिक संरचना में एक कार्यकारी शाखा शामिल है, जो राष्ट्रपति और उनकी कैबिनेट है. फिर राजनीतिक व्यवस्था के शीर्ष पर सर्वोच्च नेता, फिर संसद और अंत में न्यायपालिका आती हैं.
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ईरान में राष्ट्रपति पर घरेलू और विदेशी मामलों में निर्णय लेने की जिम्मेदारी होती है, जिसे वह सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई की निर्देशन में लेते हैं. सुप्रीम लीडर को इस्लामी गणराज्य ईरान का सर्वेसर्वा माना जाता है. ईरान में चुनावी प्रक्रिया पर निगरानी रखने वाली संस्था गार्डियन काउंसिल की बागडोर भी ईरान के सर्वोच्च नेता के हाथ में होती है. सर्वोच्च नेता के हस्ताक्षर के बाद ही चुनाव में जीत हासिल करने वाले नेता को राष्ट्रपति नियुक्त किया जाता है.
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कितना ताकतवर होता है सर्वोच्च नेता?
1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद सत्ता के केंद्र में सर्वोच्च नेता ही रहे हैं. ईरान में सर्वोच्च नेता 88 सदस्यीय विशेषज्ञों की सभा का प्रमुख होता है और सशस्त्र बलों का प्रभारी कमांडर होता है. सर्वोच्च नेता का कमांडर-इन-चीफ होना ईरान में महत्वपूर्ण है क्योंकि सशस्त्र बलों के पास ईरान के अंदर और बाहर बहुत अधिक शक्ति है. सेना सीधे सर्वोच्च नेता को रिपोर्ट करती है. ईरान के वर्तमान सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई 82 वर्ष के हैं. कुछ विश्लेषकों का कहना है कि यह आखिरी चुनाव हो सकता है जो उनकी निगरानी में हो रहा है.
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ईरान में फ्रांस की तरह ही प्रत्येक चार वर्ष पर राष्ट्रपति चुनाव होते हैं. इस बार राष्ट्रपति के चुनाव के लिए 592 उम्मीदवारों ने नामांकन किया था. लेकिन गार्डियन काउंसिल ने सात उम्मीदवारों को ही चुनाव लड़ने की अनुमति दी और बाकी के नामों को खारिज कर दिया. इनमें इब्राहिम रईसी, मोहसिन रेज़ाई, सईद जलीली, सुधारवादी नेता मोहसिन मेहरालिज़ादेह, अब्दुल नासिर हिम्मती, अली रज़ा जकानी और आमिर हुसैन काजीजादे हाशमी शामिल हैं.
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मगर गुरुवार को उन तीन उम्मीदवारों ने अपना नामांकन वापस ले लिया जिन्हें चुनाव लड़ने की इजाजत मिली थी. सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सचिव सईद जलीली, सांसद अलीरेजा जकानी और मोहसीन मेहरालिजादेह ने अपना नाम वापस ले लिया है. जलीली और जकानी ने इब्राहिम रईसी के समर्थन में अपना नाम वापस लिया है.
(सईद जलीली, फोटो-Getty Images)
कैसे तय होते हैं उम्मीदवार?
गार्डियन काउंसिल सर्वोच्च नेता और छह इस्लामी न्यायविदों की ओर से नियुक्त छह वरिष्ठ मौलवियों का एक पैनल है. यह पैनल विभिन्न प्रकार के तकनीकी और वैचारिक आधार पर चुनाव लड़ने के इच्छुक उम्मीदवारों की जांच करता है. इसमें शिक्षा का स्तर, इस्लाम के प्रति प्रतिबद्धता, संविधान और इस्लामी गणतंत्र के मूल्य शामिल हैं. गार्डियन काउंसिल ने कभी महिलाओं को राष्ट्रपति चुनाव लड़ने की इजाजत नहीं दी. हालांकि, मानवाधिकार मामलों के जानकारों का कहना है कि ईरान का संविधान महिलाओं को चुनाव लड़ने से नहीं रोकता है.
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कैसे होता है राष्ट्रपति चुनाव?
ईरान में 18 वर्ष से अधिक आयु के सभी ईरानी मतदान कर सकते हैं. इसका मतलब है कि ईरान के 8.5 करोड़ लोगों में से 5.9 करोड़ से अधिक मतदान कर सकते हैं. ईरानी स्टूडेंट पोलिंग एजेंसी (आईएसपीए) का अनुमान है कि इस बार 42 फीसदी तक वोटिंग हो सकती है. अगर पहले चरण में किसी भी उम्मीदवार को 50 प्रतिशत से ज्यादा मत नहीं मिलेगा तो एक रन-ऑफ चुनाव होगा. यानी पहले चरण की वोटिंग में यदि किसी उम्मीदवार को 50 प्रतिशत से अधिक वोट नहीं मिले तो दूसरे चरण में सबसे ज्यादा वोट पाने वाले दो उम्मीदवारों के लिए वोट डाले जाते हैं.
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सभी मतपत्रों की मैन्युअल रूप से गणना की जाएगी, इसलिए अंतिम परिणाम तीन दिनों तक घोषित नहीं किया जा सकता है. हालांकि, आंशिक रुझान जल्दी ही सामने आने लगता है.
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विश्व की शक्तियों के साथ 2015 के परमाणु समझौते को अंजाम देने वाले हसन रूहानी तीसरी बार चुनाव नहीं लड़ सकते हैं. ईरान की संवैधानिक निगरानी संस्था गार्जियन काउंसिल ने भी इस साल कई प्रमुख उम्मीदवारों के चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी है. इनमें रूढ़िवादी पूर्व संसद अध्यक्ष अली लारिजानी शामिल हैं. इन्होंने हाल के वर्षों में हसन रूहानी के साथ गठबंधन किया है. पूर्व राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद को भी चुनाव लड़ने से रोक दिया गया. पश्चिम के अपने विरोध के बावजूद राष्ट्रपति पद पर रहते हुए वह अपनी लोकलुभावन नीतियों के लिए लोकप्रिय रहे हैं. रोक लगाए जाने से नाराज अहमदीनेजाद ने अपने समर्थकों से वोट में हिस्सा नहीं लेने का आग्रह किया है.
(हसन रूहानी, फोटो-AP)
दांव पर क्या लगा है?
ईरान के राष्ट्रपति घरेलू और विदेशी नीति निर्धारित करते हैं, जो महत्वपूर्ण है क्योंकि अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा तेहरान के परमाणु समझौते को एकतरफा बताते हुए रद्द कर दिया था. साथ ही, ईरान पर कई आर्थिक पाबंदियां लगा दी थी. इसकी वजह से ईरान को कई मोर्चों पर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा रहा है. ईरान कोरोना संकट से भी जूझ रहा है. राष्ट्रपति ही तय करता है कि ईरान का बाकी दुनिया के साथ रिश्ते कैसे होने चाहिए. हालांकि, जीतने वाला उम्मीदवार ईरान के सर्वोच्च नेता के अधीन होगा, जिसका देश के सभी मामलों पर निर्णय अंतिम माना जाता है.
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क्या ईरान में लोकतंत्र है?
ईरान खुद को इस्लामिक गणराज्य बताता है. ईरान में चुनाव होते हैं और राष्ट्रपति चुना जाने वाला शख्स जनता के प्रतिनिधि के तौर पर कानूनों को पारित करता है. हालांकि, राष्ट्रपति की तरफ से पारित किसी कानून पर सर्वोच्च नेता की मुहर अंतिम मानी जाती है.
(इब्राहिम रईसी, फोटो-Getty Images)
पूर्व राष्ट्रपति अहमदीनेजाद को भी नजरबंद रखा गया है. ईरान अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों को अपने चुनावों की निगरानी करने की अनुमति नहीं देता है. ईरान के सुरक्षा बल भी सर्वोच्च नेता को सीधे रिपोर्ट करते हैं. इन्हीं सुरक्षा बलों पर सरकार के विरोध में आवाज उठाने वाले नागरिकों, विदेशियों की गिरफ्तारी की जिम्मेदारी होती है. ईरान अंतरराष्ट्रीय वार्ता में इन्हीं गिरफ्तारियों को मोहरे के रूप में इस्तेमाल करता है.
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