चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अरुणाचल प्रदेश से सटे रणनीतिक रूप से अहम तिब्बत के सीमावर्ती शहर न्यिंगची का दौरा किया है. शी जिनपिंग चीन के ऐसे पहले राष्ट्रपति हैं जिन्होंने तिब्बत की यात्रा की है. इस दौरान उन्होंने नई और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण रेलवे लाइन का जायजा लिया.
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चीन की सरकारी न्यूज एझेंसी शिन्हुआ ने शुक्रवार को बताया कि शी जिनपिंग बुधवार को तिब्बत पहुंचे. वह भारत के अरुणाचल प्रदेश की सीमा से सटे शहर न्यिंगची के हवाई अड्डे पर उतरने के बाद रेलवे लाइन का निरीक्षण किया.
शी जिनपिंग ने ब्रह्मपुत्र नदी का निरीक्षण करने के लिए न्यांग नदी पुल का दौरा किया. ब्रह्मपुत्र नदी को तिब्बती भाषा में यारलुंग ज़ांगबो नदी कहा जाता है. न्यांग इसकी दूसरी सबसे बड़ी सहायक नदी है. उन्होंने नवनिर्मित सिचुआन-तिब्बत रेलवे का निरीक्षण करने के लिए न्यिंगची शहर और उसके रेलवे स्टेशन का भी दौरा किया.
सोशल मीडिया पर गुरुवार से वायरल वीडियो से पता चलता है कि शी जिनपिंग ने ल्हासा का भी दौरा किया. शुक्रवार को उनकी यात्रा की आधिकारिक पुष्टि की गई. 2012 में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव के रूप में पदभार संभालने के बाद से शी जिनपिंग का तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (टीएआर) का यह पहला दौरा है. उपराष्ट्रपति के पद पर रहते हुए उन्होंने 2011 में भी तिब्बत का दौरा किया था.
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तिब्बत की कथित शांतिपूर्ण मुक्ति की 60वीं वर्षगांठ' के मौके पर शी जिनपिंग की 2011 में ल्हासा की यात्रा उस वर्ष 21 जुलाई को हुई थी. हालांकि, वर्षगांठ के लिए 21 को क्यों चुना गया. यह साफ नहीं हो पाया था. इसे आमतौर पर 23 मई माना जाता है. फिलहाल तिब्बत मामलों के जानकार रॉबी बार्नेट का मानना है कि शी जिनपिंग ने तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति की 70वीं वर्षगांठ पर यह दौरा किया है.
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सत्रह सूत्री समझौते पर 23 मई, 1951 को हस्ताक्षर किए गए थे. चीन समझौते को "तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति" बताता है. हालांकि, इस समझौते को दलाई लामा ने खारिज कर दिया है. उनका कहना है कि कम्युनिस्ट पार्टी और चीन ने इस समझौते को तिब्बत पर थोपा और बाद में अपनी प्रतिबद्धताओं का उल्लंघन किया. इससे उन्हें अंततः 1959 में निर्वासन में भारत भागना पड़ा.
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शी जिनपिंग की ल्हासा और पोटाला पैलेस की यात्रा को तिब्बत की वर्षगांठ के अवसर पर होने वाले दौरे के तौर पर देखा जा रहा है. चीन की तरफ से तिब्बत में पहली बुलेट ट्रेन का संचालन शुरू करने के एक महीने बाद सीमा क्षेत्र और न्यिंगची की उनकी यात्रा विशेष महत्व रखती है. यह रेल लाइन ल्हासा को अरुणाचल प्रदेश की सीमा से सटे न्यिंगची शहर से जोड़ती है.
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चीन दक्षिणी तिब्बत के हिस्से के रूप में अरुणाचल प्रदेश पर दावा करता है, जिसे भारत दृढ़ता से खारिज कर चुका है. भारत-चीन के बीच सीमा विवाद में 3,488 किलोमीटर की लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) शामिल है.
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न्यिंगची जून में उस समय सुर्खियों में था जब चीन ने तिब्बत में अपनी पहली बुलेट ट्रेन को चालू किया. इस बुलेट ट्रेन की रफ्तार 160 किमी प्रति घंटा है और यह 435.5 किमी की दूरी तय करने वाली सिंगल-लाइन विद्युतीकृत रेलवे पर चलती है.
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यह लाइन 435 किलोमीटर लंबी है. यह हाई-स्पीड ट्रेन मुख्य चीन के सभी 31 प्रांतीय शहरों से होकर गुजर रही है. हालांकि, जिस तेजी से चीन अरुणाचल की सीमा तक अपने बुनियादी ढांचे को मजबूत कर रहा है, भारत की चिंता बढ़ती जा रही है.
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इस रेल लाइन को 'दुनिया की छत' कहा जाता है. समुद्र से 3000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस लाइन के 90 फीसदी हिस्से को बनाने में चीन को छह साल लगे. ल्हासा-न्यिंगची लाइन में 47 सुरंगें और 121 ब्रिज हैं- जो पूरे रास्ते का करीब 75 फीसदी हिस्सा है. इसमें 525 मीटर लंबा जांगमु रेलवे ब्रिज शामिल है, जो दुनिया में अपनी तरह का सबसे बड़ा और सबसे ऊंचा आर्क ब्रिज है.
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इस रेल लाइन को बनाने में 5.6 अरब डॉलर खर्च हुए हैं, जिसका निर्माण चाइना स्टेट रेलवे ग्रुप ने किया है. हाई-स्पीड इलेक्ट्रिक ट्रेनों की फॉक्सिंग सीरीज के तहत इसका संचालन किया जा रहा है. ल्हासा-न्यिंगची लाइन पर नौ-स्टेशन हैं, जिन पर फॉक्सिंग ट्रेनें इलेक्ट्रिक और बिना बिजली के चलने में सक्षम हैं. डुअल-पावर इंजन की वजह से ये बुलेट ट्रेनें बिजली और बिना बिजली के चलने में सक्षम हैं. दोनों शहरों ल्हासा-न्यिंगची के बीच की दूरी 2.5 घंटे में तय की जा सकती है.
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