उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने सार्वजनिक स्थानों पर जाति के उल्लेख पर रोक लगा दी है. यूपी के कार्यवाहक मुख्य सचिव दीपक कुमार ने प्रदेश के सभी आला अधिकारियों को इस संबंध में लिखित निर्देश दिए हैं. इस आदेश के लागू होने के बाद सूबे में कोई भी राजनीतिक दल और अन्य सामाजिक संगठन जाति आधारित रैली नहीं कर सकेगा.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले दिनों यूपी सरकार को आदेश दिए थे कि पुलिस रिकॉर्ड और सार्वजनिक स्थलों पर लोगों के नाम के साथ जाति का उल्लेख करने पर रोक लगाई जाए. इसी संदर्भ में योगी सरकार ने यह फैसला लिया है.
सूबे में जातीय सम्मेलन पर रोक लगने का सीधा प्रभाव सपा के चल रहे गुर्जर सम्मेलन पर पड़ेगा. यही नहीं, 2027 के चुनाव से पहले अलग-अलग जातियों को साधकर अपनी सोशल इंजीनियरिंग को धार देने वाले राजनीतिक दलों के लिए इसे बड़ा झटका माना जा रहा है.
यूपी में लगी जातीय सम्मेलनों पर रोक
यूपी सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए सार्वजनिक रूप से जाति के उल्लेख पर रोक लगा दी है. उत्तर प्रदेश के कार्यवाहक मुख्य सचिव दीपक कुमार ने सभी अपर मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव, पुलिस महानिदेशक, अपर पुलिस महानिदेशक (कानून एवं व्यवस्था), अपर पुलिस महानिदेशक अपराध, पुलिस कमिश्नरों, सभी जिला मजिस्ट्रेटों, एसएसपी व एसपी को निर्देश जारी कर कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार की घोषित नीति है कि राज्य में एक सर्वसमावेशी और संवैधानिक मूल्यों के अनुकूल व्यवस्था लागू हो.
मुख्य सचिव ने निर्देश दिए हैं कि एफआईआर और गिरफ्तारी मेमो में आरोपी की जाति नहीं लिखी जाएगी, बल्कि माता-पिता के नाम लिखे जाएंगे. इसी प्रकार सभी थानों के नोटिस बोर्ड, वाहनों और साइन बोर्ड से जातीय संकेत और जातीय नारे हटाए जाएंगे. साथ ही यह भी कहा है कि प्रदेश में जाति आधारित रैलियों पर प्रतिबंध रहेगा और सोशल मीडिया पर भी जाति आधारित कंटेंट पर रोक लगाई जा रही है.
2027 से पहले सियासी दलों के लिए झटका
योगी सरकार ने इन आदेशों को उस समय लागू किया है, जब सूबे में पंचायत चुनावों को लेकर तैयारियां चल रही हैं. 2027 से पहले सभी राजनीतिक दल अपनी तैयारी में जुटे हैं और अपने सामाजिक समीकरण को दुरुस्त करने की कवायद शुरू कर रखी है. ऐसे में राजनीतिक दलों के लिए आगामी विधानसभा चुनाव के लिहाज से जातीय सम्मेलन पर अब रोक लग गई है.
समाजवादी पार्टी से लेकर बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रीय लोकदल, निषाद पार्टी, सुभासपा जैसे दलों के लिए यह बड़ा झटका साबित हो सकता है. सपा ने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले ही विधानसभा चुनाव को लक्ष्य बनाकर पीडीए (पिछड़ा, दलित व अल्पसंख्यक) की राजनीति की आधारशिला रखी थी. हालांकि, मौके की नजाकत को देखते हुए सपा ने पीडीए के नारे का विस्तार भी किया है. ऐसे में पिछड़े और दलितों की हितैषी होने का दम भरने वाली बसपा को अपनी सोशल इंजीनियरिंग की स्ट्रेटेजी को बदलना होगा.

सपा के गुर्जर सम्मेलन पर लग न जाए ग्रहण
सपा ने 2027 के विधानसभा चुनाव को लेकर अपने जातीय समीकरण को मजबूत करने की दिशा में कई बड़े कदम उठाए हैं. पश्चिम यूपी में सपा इन दिनों गुर्जर सम्मेलन कर रही है, जिसकी कमान पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजकुमार भाटी के हाथों में है. वह यूपी के 34 जिलों के 132 विधानसभा क्षेत्रों में छोटी-छोटी गुर्जर चौपाल और रैलियां करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं. ये चौपाल उन विधानसभा क्षेत्रों में की जा रही हैं, जहां पर गुर्जर वोटर अहम भूमिका में हैं. शासन के इस दिशा-निर्देश के बाद सपा के गुर्जर सम्मेलन पर सियासी ग्रहण लगता नजर आ रहा है.
राजकुमार भाटी ने Aajtak.in से बातचीत करते हुए कहा कि सपा के गुर्जर सम्मेलन को लेकर योगी सरकार और बीजेपी भयभीत हो गई है. गुर्जर सम्मेलन पर रोक लगाने के लिए ही सरकार ने जातीय सम्मेलन और रैलियों पर प्रतिबंध लगा दिया है. बीजेपी खुद जातीय सम्मेलन अपनी पार्टी कार्यालय में करती रही है, चुनाव से पहले अलग-अलग जातियों के कार्यक्रम किए हैं. गाजियाबाद के उपचुनाव के दौरान योगी आदित्यनाथ के एक किलोमीटर के रोड शो में 12 अलग-अलग जातियों के मंच बनाए गए थे. सरकार को तब जातीय सम्मेलन पर रोक लगाने की याद नहीं आई.
सपा प्रवक्ता राजकुमार भाटी कहते हैं कि हमने गुर्जर समाज को जागरूक करने और उन्हें सामाजिक न्याय की धारा से जोड़ने का मिशन शुरू किया है, उसे हर हाल में करके रहेंगे. बीजेपी अगर सोचती है कि कोर्ट का हवाला देकर सपा के गुर्जर सम्मेलन पर रोक लगा लेगी तो वह गलतफहमी में है. हमारे पहले से तय सभी कार्यक्रम होंगे और सपा 2027 में बीजेपी को सत्ता से बाहर करके रहेगी. इस बात से साफ है कि सपा अपने कार्यक्रम पर रोक नहीं लगाएगी.
यूपी में समझें गुर्जर पॉलिटिक्स
पश्चिम यूपी में गुर्जर समाज की काफी अहम भूमिका में है, जो किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं. गाजियाबाद, नोएडा, बिजनौर, संभल, मेरठ, सहारनपुर, कैराना जिले की करीब दो दर्जन सीटों पर गुर्जर समुदाय निर्णायक रोल अदा करते है, जहां पर 20 से 70 हजार के करीब गुर्जर वोट है.
गुर्जर समाज ओबीसी में आते हैं. आर्थिक और राजनीतिक तौर पर काफी मजबूत माने जाते हैं. गुर्जर समाज लंबे समय तक कांग्रेस का वोटबैंक रहा है, लेकिन मंडल की राजनीति के बाद सपा और बसपा के साथ मजबूती से जुड़े रहे हैं. 2014 के बाद से वे बीजेपी के साथ हैं, जिसका वोटिंग पैटर्न सजातीय है. अब सपा उन्हें अपने साथ जोड़ने की कवायद में है.