यूपी के कासगंज स्थित पटियाली गांव के बहादुरगढ़ का रहने वाला सूरजपाल उर्फ नारायण साकार हरि उर्फ भोले बाबा. ये एक ऐसा नाम है, जिसे हाथरस में सत्संग के नाम पर मची भगदड़ और उस भगदड़ में 121 लोगों की मौत का जिम्मेदार बताया जा रहा है. हालांकि किसी भी अपराधी को ना छोड़ने का दावा करने वाली उत्तर प्रदेश पुलिस इस बाबा पर हाथ डालने से बच रही है.
दरअसल, नारायण साकार हरि के सत्संग में आने वालो में एक बड़ी संख्या उस गरीब तबके की है, जो दो वक्त की रोटी कमाने में भी जूझता रहता है और जिसे मामूली बीमारी का इलाज कराने के लिए सामान तक गिरवी रखना पड़ता है. सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े तबके के लोग इस बाबा के सत्संग में सबसे ज्यादा आते हैं. एक सत्संग में लाखों लोग की भीड़ ही बाबा की असली ताकत है. असली ताकत का मतलब वोट बैंक, जिसके चश्मे से सत्ताधारी दल हो या फिर कोई भी दूसरा राजनीतिक दल, नफा नुकसान का आकलन करता है.
बता दें कि जनवरी 2023 में अखिलेश यादव भी अपने वोट बैंक को मजबूत और बढ़ाने के लिए बाबा के कार्यक्रमों में शिरकत कर चुके हैं. मैनपुरी, कासगंज, एटा, अलीगढ़, हाथरस, आगरा और फर्रुखाबाद वो इलाके हैं, जो समाजवादी पार्टी के पीडीए फार्मूला यानी पिछड़ा-दलित और अल्पसंख्यक के वोट बैंक के लिहाज से मजबूत है. यही वजह थी कि अखिलेश यादव भी नारायण साकार हरि के कार्यक्रमों में शिरकत करते रहे.
हाथरस कांड में मारे गए लोगों में उत्तर प्रदेश के 16 जिलों के भक्त शामिल थे. जो ढाई लाख की भीड़ हाथरस के सत्संग में पहुंची, उसमें यूपी के 16 जिलों से लोग पहुंचे थे. वह भी उस मानसिकता के, जो बाबा के कहने पर कुछ भी करने को तैयार है. इसके लिए बाबा ही भगवान है और बाबा का आदेश ही परम आदेश है. ये लोग 121 लोगों की मौत के बाद भी बाबा को कहीं से कसूरवार नहीं मानते. वोट बैंक की राजनीति में पार्टियों के लिए ऐसे बाबाओं का आशीर्वाद उनकी जीत सुनिश्चित करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है.
2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को जो INDIA गठबंधन ने यूपी में नुकसान पहुंचाया, उसके पीछे पीडीए फॉर्मूला का बड़ा हाथ है. इस बदले परिणाम के पीछे जातियों का बदला समीकरण एक बड़ा कारण है और जातियों के समीकरण बदलने में ऐसे बाबाओ की भूमिका कई चुनावी परिणाम साबित कर चुकी है. जानकारों का कहना है कि यही ताकत शायद अब भोले बाबा पर कार्रवाई करने से रोक रही है.