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नगर निकाय चुनाव: जब अटल जी के एक फोन ने तय कर दिया था लखनऊ का मेयर प्रत्याशी

यूपी के नगर निकाय चुनाव के लिए पहले चरण का प्रचार थम चुका है. मतदान 4 मई को होना है. प्रथम चरण में लखनऊ नगर निगम की सीट भी है. लखनऊ की मेयर की  सीट हमेशा से ही सबसे प्रतिष्ठित सीट रही है. बीजेपी का लंबे समय से इस पर क़ब्ज़ा रहा है पर कोई भी दल इस सीट में अपना मज़बूत प्रत्याशी ही मुक़ाबले के लिए उतारता है.

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4 मई को होना है चुनाव
4 मई को होना है चुनाव

वैसे तो छोटे बड़े हर चुनाव में अलग-अलग राजनीतिक दलों के नेता लोगों के बीच जा कर वोट मांगते हैं. पर लखनऊ में ‘वोट’ के साथ ‘दिल’ देने का क़िस्सा इन दिनों सुनाई पड़ रहा है. दरअसल ये लखनऊ में नगर निकाय चुनाव के इतिहास से जुड़ा वो दिलचस्प वाक़या है जो आज भी यहां कहा और सुना जाता है. हर बार मेयर के चुनाव में इस वाक्ये का ज़िक्र ज़रूर आता है जो सियासी टकराव के बीच लखनऊ की तहज़ीब और ख़ास अंदाज को भी याद दिलाता है.

यूपी के नगर निकाय चुनाव के लिए पहले चरण का प्रचार थम चुका है. मतदान 4 मई को होना है. प्रथम चरण में लखनऊ नगर निगम की सीट भी है. लखनऊ की मेयर की  सीट हमेशा से ही सबसे प्रतिष्ठित सीट रही है. बीजेपी का लंबे समय से इस पर क़ब्ज़ा रहा है पर कोई भी दल इस सीट में अपना मज़बूत प्रत्याशी ही मुक़ाबले के लिए उतारता है. इस बीच गुज़रे लखनऊ के वो तमाम क़िस्से भी लोग याद कर रहे हैं जो लखनऊ के अलग अन्दाज़ को बयां करते हैं. इन क़िस्सों में लखनवी अदब का रंग शामिल है तो वहीं लखनऊ से देश की राजनीतिक धुरी बनने वाले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की शख़्सियत का रंग भी दिखायी पड़ता है.

दरअसल, लखनऊ में चुनाव प्रचार के बीच आबोहवा में पुराने क़िस्से, गुज़रे ज़माने की वो मीठी यादें भी सुनाई पड़ीं जो यहां के मेयर और पार्षदों (corporators) के चुनाव को और ख़ास बनाती रही हैं. तमाम ऐसे क़िस्से और लतीफ़े हैं जो लखनऊ के 'सबसे लोकल' चुनाव को भी दुनिया भर में अलग पहचान दिला सकते हैं.

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उन्हीं में से एक क़िस्सा ‘वोट’ के साथ ‘दिल’ देने का भी है. लखनऊ पर कई किताबें लिख चुके इतिहासकार स्वर्गीय डॉ. योगेश प्रवीण इस बात का ज़िक्र अक्सर किया करते थे कि लखनवी अन्दाज़ किस तरह चुनाव प्रचार में भी शामिल रहा.

दिल दिलरुबा को दीजिए, वोट शम्सुद्दीन को...
1920 में म्यूनिसिपल कॉर्परेशन (municipal corporation) के चुनाव में दिए गए एक नारे से इस बात को समझा जा सकता है. लखनऊ की मशहूर तवायफ़ दिलरुबा जान(Dilruba Jaan) कॉरपोरेटर के लिए चुनाव  में खड़ी हो गयीं. देखते ही देखते उनकी महफ़िलों में भीड़ जुटने लगी. उनके प्रति लोगों की दीवानगी को देख कर कोई उनके सामने चुनाव मैदान में उतरने को तैयार नहीं था. फिर दिलरुबा जान के मुक़ाबले एक हकीम( वैद्य) शम्सुद्दीन (Shamsuddeen) को खड़ा किया गया. शम्सुद्दीन के समर्थकों ने दीवारों पर(उस समय वॉल राइटिंग होती थी) एक नारा लिखवा दिया.

'हिदायत है ये चौक के वोटर-ए-शौक़ीन को 
दिल दिलरुबा को दीजिए, वोट शम्सुद्दीन को' 

नारा लोगों की ज़ुबान पर चढ़ गया. लेकिन लखनऊ इल्म और हुनर में लखनऊ की तवायफ़ें भी पीछे नहीं रहने वाली थीं. वरिष्ठ पत्रकार नवल कांत सिन्हा कहते हैं 'दिलरुबा ने भी जवाबी नारा दिया 'वोट दिलरुबा को दीजिए, नब्ज़ शम्सुद्दीन को.' ज़ाहिर है ये चुनावी नारों में हाज़िरजवाबी की एक मिसाल भी है.

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चूंकि, शम्सुद्दीन हकीम थे इसलिए ये बात भी वाजिब थी. वैसे बात यहां ख़त्म नहीं हुई. शम्सुद्दीन चुनाव जीत गए. नवल कांत सिन्हा इतिहासकार योगेश प्रवीण से सुने इस क़िस्से का ज़िक्र करते हुए कहते हैं  'उसके बाद दिलरुबा ने लखनऊ के दस्तूर को क़ायम रखते हुए शम्सुद्दीन को बधाई देते हुए कहा कि इस बात का आज पता चला कि लखनऊ में आशिक़ कम हैं, मरीज़ ज़्यादा हैं....' नवल कांत सिन्हा कहते हैं ‘लखनऊ की तहज़ीब और परम्परा को देखिए, यहां चुनाव में भी लड़ाई के क़िस्से बहुत कम हैं, शिष्टाचार और प्रेम के क़िस्से हैं.’

नगर निगम चुनाव में भी अटल जी करते थे अपने अंदाज में प्रचार 
आज भी लखनऊ में जब कभी मेयर और कॉरपोरेटर का चुनाव होता है ये क़िस्सा लोगों की ज़ुबान पर होता है. कहते हैं लखनऊ के मेयर की प्रतिष्ठा बहुत ज़्यादा होती है. इसका श्रेय शहर के लोग पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को देते हैं. लखनऊ के सांसद और देश के प्रधानमंत्री रहते हुए भी उन्होंने लखनऊ नगर निगम में अपने ही अंदाज में प्रचार किया.

लखनऊ का हर छोटा बड़ा कार्यकर्ता उनको अटल जी कहता था. शहर का चौक चौराहा हो या कपूरथला इलाक़ा अटल जी की जनसभा होती थी. अटल जी अपने ही अन्दाज़ में लोगों से वोट देने की अपील करते थे. कविता में तुकबंदी में वो अपनी बातों को रखते थे.

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लखनऊ को सर्जन की ज़रूरत है, अच्छा डॉक्टर लाया हूं 
लखनऊ के मेयर रहे डॉक्टर एस सी राय के लिए उनके प्रचार को लोग अभी भी याद करते हैं. वरिष्ठ पत्रकार और अटल जी को क़रीब से देखने वाले बृजेश शुक्ला कहते हैं ‘अटल जी ने शहर के बलरामपुर अस्पताल के प्रख्यात डॉक्टर एस सी राय(Dr. S.C. Rai) को प्रत्याशी तो बनवाया ही उनके प्रचार में भी उतरे. कांग्रेस और दूसरे दलों के कई नेता भी डॉ एससी राय से अपना इलाज कराते थे.

चुनाव प्रचार में अटल जी ने मंच से बोलना शुरू किया कि लखनऊ शहर को एक सर्जन की ज़रूरत है. इसलिए अच्छा डॉक्टर लाया हूं. यक़ीन न हो तो कांग्रेस के नेताओं से पूछ लीजिए.’ अब भला उन्हीं से अपना इलाज करने वाले दूसरे दलों के नेता क्या कहते. इस तरह प्रचार में हास-परिहास का रंग भी घुल जाता और कोई तीखी बात भी न होती.

लेकिन जो भी कहा जाता उसका असर लोगों पर होता. बृजेश शुक्ला कहते हैं ‘ अटल जी ने इस तरह के सबसे छोटे चुनाव में प्रचार कर जो पौध लगायी उसी का नतीजा है कि आज भी यहां बड़े नेता प्रचार करते हैं. खुद यूपी के मुख्यमंत्री भी प्रचार कर रहे हैं.’  

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अटल जी के एक इशारे ने तय किया मेयर प्रत्याशी 
लखनऊ के मेयर चुनाव के प्रत्याशी से जुड़ा एक और दिलचस्प क़िस्से की चर्चा पार्टी के कार्यकर्ता से लेकर वरिष्ठ पत्रकार तक करते हैं. यूपी के डिप्टी सीएम रहे डॉ दिनेश शर्मा लखनऊ विश्वविद्यालय में पढ़ाते थे. युवा डॉ दिनेश शर्मा बीजेपी में भी सक्रिय थे. मेयर प्रत्याशी के लिए बीजेपी की परम्परा अन्य सीटों की तरह ही है. यानि नाम का पैनल होता है जिसमें से एक का चुनाव पार्टी के सक्षम पदाधिकारी करते हैं. इस घटना की खूब चर्चा रही है कि अटल जी ने राजनाथ सिंह, कल्याण सिंह, लालजी टंडन जैसे दिग्गज नेताओं की बैठक के दौरान फ़ोन कर अपने ही अन्दाज़ में सभी दावेदारों को पीछे कर दिया.

वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक बृजेश शुक्ला कहते हैं ‘अटल जी ने डॉक्टर दिनेश शर्मा के बारे में सिर्फ़ एक लाइन ही कहा कि 'डॉक्टर निर्विवाद हैं....' बस फिर क्या था मेयर के पैनल में बाक़ी दावेदारों के बाक़ी नाम पीछे रह गए. अटल जी की इतनी बात ही काफ़ी थी.’ बृजेश शुक्ला ये भी कहते हैं कि अटल जी ने तो इशारों में प्रत्याशी तय किया क्योंकि उनका व्यक्तित्व ऐसा था कि वो सीधे कभी ये नहीं कहते थे कि इनको प्रत्याशी बनाओ. 

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इस बार लखनऊ की मेयर सीट महिला के लिए आरक्षित सीट है. प्रचार समाप्त होने से एक दिन पहले प्रचार से अब तक दूरी बनाने वाले समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव खुद लखनऊ मेट्रो से चुनाव प्रचार में निकले तो वहीं यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तीन जनसभा कर ये बता दिया कि लखनऊ की मेयर सीट पर भले ही भाजपा का क़ब्ज़ा रहा हो पर पार्टी इसको किसी भी तरह से हल्के में नहीं ले रही. लखनऊ का मेयर कौन बनेगा ये लखनऊ की जनता तय करेगी पर आज भी लखनवी अदब के ये चुनावी क़िस्से सबकी ज़ुबां पर हैं.

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