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मुलायम कुनबे का 'पुराना कुरुक्षेत्र' फिर जीतने में जुटे अखिलेश, मैदान में उतरे परिवार के पुराने महारथी

उत्तर प्रदेश में 2014 के बाद से यादवलैंड की एक के बाद एक सीट गंवा रही समाजवादी पार्टी मैनपुरी उपचुनाव में अपनी रणनीति में बदलाव किया. भतीजे अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल यादव के एक साथ आते ही बीजेपी को मात दिया और 2024 के चुनाव में मुलायम कुनबे के प्रभाव वाली सीटों को दोबारा से छीनने का प्लान बनाया है.

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रामगोपाल यादव, अखिलेश यादव, शिवपाल यादव
रामगोपाल यादव, अखिलेश यादव, शिवपाल यादव

उत्तर प्रदेश में 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर सियासी बिसात बिछाई जाने लगी है. बीजेपी सूबे की सभी 80 लोकसभा सीटें जीतने के लिए तानाबाना बुन रही है, तो सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने 'यादवलैंड' की सीटों को बीजेपी से वापस छीनने के लिए मशक्कत शुरू कर दी है. मैनपुरी का उपचुनाव जीतने के बाद अखिलेश खास सक्रिय हैं और उनका फोकस उन आधा दर्जन लोकसभा सीटों पर है, जहां कभी मुलायम परिवार का दबदबा था, लेकिन मौजूदा समय में बीजेपी का कब्जा है.  

यूपी में फिरोजाबाद, एटा, मैनपुरी, इटावा, कन्नौज, बदायूं, आजमगढ़ जैसी लोकसभा सीटों से मुलायम सिंह यादव के परिवार या फिर उनके करीबी रिश्तेदार सांसद चुने जाते रहे हैं. यही वजह थी कि कभी संसद में मुलायम कुनबे के आधे दर्जन सदस्य हुआ करते थे, लेकिन मौजूदा समय में महज दो सदस्य हैं. मैनपुरी उपचुनाव की जीत से सपा के सियासी संजीवनी मिली तो शिवपाल यादव की वापसी से अखिलेश यादव के हौसले बुलंद हो गए हैं. ऐसे में अखिलेश ने मुलायम परिवार की परंपरागत रही सीटों की वापसी के लिए एक्सरसाइज शुरू कर दी है. 

कन्नौज सीट पर अखिलेश का फोकस 

अखिलेश यादव ने अपनी सियासी पारी का आगाज कन्नौज लोकसभा सीट से किया और उनके बाद डिंपल यादव यहां से दो बार सांसद चुनी गई. 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने सुब्रत पाठक को उतारकर ना सिर्फ अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव को मात दी थी, बल्कि सपा-बसपा गठबंधन को भी फेल कर दिया था. बीजेपी के सुब्रत पाठक ने यहां 12,353 मतों से जीत दर्ज की थी. अब डिंपल की हार का हिसाब अखिलेश 2024 के चुनाव में बराबर करना चाहते हैं, जिसके लिए खुद चुनाव लड़ने का संकेत भी दे चुके हैं. और कन्नौज में सियासी समीकरण दुरुस्त करने में भी जुट गए हैं. 

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अखिलेश यादव मंगलवार को कन्नौज के सिद्ध पीठ माता फूलमती देवी मंदिर पहुंचे. श्रीराम कथा सुनने, संतों का आशीर्वाद लेने के साथ-साथ अखिलेश पंगत में बैठकर प्रसाद भी चखा. मंदिर परिसर में मौजूद माताओं का अभिवादन करते हुए मंदिर में प्रवेश किया. मंदिर में माथा टेका और पूजा-अर्चना कर सपा प्रमुख ने सियासी संदेश देते नजर आए. इस दौरान अखिलेश ने अपने सियासी सफर की शुरुआत करने का जिक्र करते हुए बताया कि माता के आशीर्वाद लेने के बाद ही उनका सफर शुरू हुआ था. कन्नौज से चुनाव लड़ने के सवाल पर अखिलेश ने कहा कि वह चुनाव लड़ें या न लड़ें पर बीजेपी प्रत्याशी को लाखों मतों से हराऊंगा. 

मैनपुरी उपचुनाव के दौरान ही अखिलेश यादव ने कन्नौज से 2024 का चुनाव लड़ने का संकेत दिया था और उसके बाद से लगातार कन्नौज का दौरा कर रहे हैं. पिछले एक महीने में तीसरी दौरा था. कन्नौज के हर छोटे बड़े कार्यक्रम में नजर आ रहे हैं और क्षेत्र के लोगों से भी मेल-मिलाप बढ़ रहे हैं. इतना ही नहीं कन्नौज के विकास को लेकर भी बीजेपी को घेर रहे हैं और सपा सरकार में शुरू किए गए योजनाओं को ठप किए जाने का मुद्दा उठा रहे हैं. इस तरह कन्नौज के सियासी समीकरण को अभी से अखिलेश दुरुस्त करने में जुट गए हैं और अपने पुराने नेताओं को भी सक्रिय कर दिए हैं. 

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इटावा-मैनपुरी सीट के लिए एक्टिव

कन्नौज ही नहीं मैनपुरी और इटावा लोकसभा सीटों को लेकर भी अखिलेश यादव सियासी तानाबाना बुन रहे हैं. मैनपुरी सीट पर उपचुनाव के दौरान और उसके बाद भी अखिलेश एक्टिव हैं. हर सप्ताह इटावा और मैनपुरी क्षेत्र के लोगों से सीधे संवाद कर रहे हैं. दिसंबर में मैनपुरी के पार्टी कार्यकतार्ओं को संबोधित किया तो उसके अगले दिन किशनी, 14 दिसंबर को करहल और 23 दिसंबर को जसवंतनगर में कार्यकर्ताओं को संबोधित किया था. क्रिसमस पर मैनपुरी में शामिल हुए थे तो उसी तरह से इटावा के अलग-अलग इलाके के लोगों के साथ मुलाकात कर रहे हैं. 

मैनपुरी में मुलायम की सहानभूति इस बार उपचुनाव में ऐसी दिखी कि सारे रिकॉर्ड ध्वस्त हो गए. छोटे नेताजी अखिलेश को लगने लगा है कि अगर अपने वोट बैंक को सहेज लिया जाए तो आने वाले 2024 के चुनाव में अच्छा काम हो सकता है. इसी के चलते मैनपुरी में डिपंल के जीतन के बाद भी अपनी सक्रियता को बनाए हुए हैं तो इटावा में बीजेपी का कब्जा है. यह सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है, लेकिन 2014 से पहले तक सपा का गढ़ रही है. मोदी लहर में यह सीट बीजेपी ने सपा से छीन ली है और अब अखिलेश उसे दोबारा से हासिल करने के लिए मशक्कत कर रहे हैं. 

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शिवपाल के सहारे यादवलैंड वापस लेने का प्लान

मुलायम परिवार में बिखराव के चलते ही सपा को लगातार हार का मुंह देखना पड़ा है. यादव बेल्ट में भी सपा को बीजेपी से मात खानी पड़ी है. सपा का गढ़ माने जाने वाले ज्यादातर क्षेत्रों में बीजेपी अपनी जीत का परचम लहरा चुकी है. शिवपाल के साथ नहीं होने से सपा को इसी इलाके में सियासी नुकसान उठाना पड़ा था, क्योंकि इस बेल्ट में उनकी अपनी मजबूत पकड़ रही है. शिवपाल को अपने खेमे लेने के बाद यादव बेल्ट को मजबूत करने में जुटे हैं. 

2019 के लोकसभा चुनाव में शिवपाल यादव के फिरोजाबाद सीट से उतरने के चलते सपा को बीजेपी के हाथों में मात खानी पड़ी थी. रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय प्रताप यादव को फिरोजबाद में हार का मूंह देखना पड़ा था. ऐसे ही एटा सीट पर भी शिवपाल यादव के सियासी दखल होने के चलते यादव समुदाय के एक बड़े तबके ने सपा के खिलाफ वोटिंग की थी. ऐसे में सपा को भी यह सीट गंवानी पड़ी थी जबकि दोनों सीटों पर सपा का अपना सियासी वर्चस्व रहा है. 

शिवपाल यादव के साथ आने से यह धारणा सपा के पक्ष में जा रही है कि अब पूरा मुलायम परिवार एकजुट है. इसके चलते यादव वोट में किसी तरह की बिखराव का खतरा नहीं होगा. यादवलैंड में मुलायम सिंह यादव के बाद शिवपाल यादव की अपनी मजबूत पकड़ मानी जाती है. इसीलिए अखिलेश ने एटा लोकसभा सीट की जिम्मेदारी शिवपाल के कंधों पर दे रखी है तो फिरोजाबाद में भी उन्होंने अपने लोगों को सपा के साइकिल पर सवार कर दिया है. इसके चलते रामगोपाल के बेटे अक्षय प्रताप यादव भी अब बेफिक्र होकर चाचा शिवपाल और भाई अखिलेश के आशिर्वाद से 2024 के चुनाव के लिए समीकरण को दुरुस्त कर रहे हैं. 

बदायूं-आजमगढ़ के लिए खास प्लान

बदायूं और आजमगढ़ सीट भी मुलायम परिवार के पास रही है, लेकिन 2019 में बदायूं और 2022 में आजमगढ़ उपचुनाव में धर्मेंद्र यादव को मात खानी पड़ी है. बदायूं से बीजेपी के टिकट पर स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्य सांसद हैं. ऐसे में धर्मेंद्र यादव के लिए बदायूं में चुनाव लड़ने की संभावना बहुत कम है. ऐसे ही आजमगढ़ सीट को लेकर भी है. धर्मेंद्र इन दिनों मध्य प्रदेश सहित तमाम दूसरे राज्यों में सपा के विस्तार में जुटे हैं. सपा ने इन दोनों सीटों के लिए स्थानीय नेताओं को चुनाव लड़ाने पर भी विचार-विमर्श कर रहे हैं. आजमगढ़ में रमाकांत यादव पर दांव खेल सकते हैं. पिछले दिनों अखिलेश यादव ने रमाकांत से जेल में जाकर मुलाकात भी थी.  

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बता दें कि मुलायम के दौर में इटावा और यादवलैंड के लोग उनके क्षेत्र छोड़ने के बाद लखनऊ और दिल्ली में जाकर मिलते थे. मुलायम उनकी समस्या सुनते और निपटाते थे. लोगों से उनका व्यक्तिगत जुड़ाव ही उनकी ताकत था. इस तरह से इटावा, कन्नौज, फिरोजाबाद जैसे यादव बाहुल इलाके में अपनी पार्टी को मजबूत बनाए रखा था. मुलायम सिंह के तर्ज पर अखिलेश भी सक्रिय हुए हैं, क्योंकि 2024 में इतना समय इन क्षेत्रों में न दे पाएंगे. इसी कारण मुलायम के न रहने के बाद उनकी खाली जगह को अखिलेश भरने और ज्यादा से ज्यादा समय यादवलैंड को देने के प्रयास में लगे हैं. 

लोकसभा चुनाव तक सपा इसी तरह से एक्टिव रहने के साथ-साथ बीजेपी के खिलाफ आक्रमक रुख अपनाए रखेंगे. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव खुद भी प्रदेश कार्यालय के बजाय फील्ड में ज्यादा नजर आएंगे. इसकी शुरुआत अखिलेश ने कर दी है और लगातार जिलों का दौरा कर रहे हैं. अखिलेश उस छवि को भी तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं जिसमें कहा जाता है कि अखिलेश अपने पिता मुलायम सिंह यादव की तरह कार्यकर्ताओं को उतनी तवज्जो नहीं देते हैं. इसी रणनीति के तहत सपा अध्यक्ष अपने कार्यकर्ताओं के उत्पीड़न के मामले में उनके साथ मजबूती से खड़े नजर आ रहे हैं. शिवपाल यादव भी एक्टिव हो गए हैं.  

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