उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव पौने दो साल के बाद है, लेकिन समाजवादी पार्टी ने अभी से अपनी तैयारी शुरू कर दी है. 2024 में 37 लोकसभा सीटें जीतकर भले ही सपा यूपी की सबसे बड़ी और देश की तीसरी पार्टी हो, लेकिन उसका असल मकसद 2027 की जंग फतह करना है. ऐसे में सपा अपने सबसे कमजोर दुर्ग माने जाने वाले पश्चिम यूपी में सियासी समीकरण बनाने में जुट गई है ताकि जयंत चौधरी-योगी आदित्यनाथ की जोड़ी को मात दे सके.
पश्चिम यूपी में सपा का कोर वोटबैंक सिर्फ मुस्लिम समुदाय है और यादव वोटर न के बराबर हैं. 2022 में जयंत चौधरी का साथ लेकर बीजेपी को टक्कर दी थी, लेकिन अब जयंत बीजेपी के पाले में खड़े हैं. ऐसे में अखिलेश इस बात को समझ रहे हैं कि सिर्फ मुसलमानों के सहारे बीजेपी-आरएलडी गठबंधन को मात नहीं दिया जा सकता है.
अखिलेश यादव पश्चिम यूपी के सियासी मिजाज को देखते हुए मुस्लिमों के साथ नए जातीय समीकरण की कवायद में जुट गए हैं. मुस्लिम के साथ गुर्जर समाज का समीकरण बनाने की कवायद सपा ने शुरू की है ताकि पश्चिमी यूपी में 'आत्मनिर्भर' बन सके. ऐसे में सवाल उठता है कि गुर्जर-मुस्लिम के दम पर क्या 2027 की चुनावी जंग फतह कर पाएंगे?
पश्चिमी यूपी की सोशल इंजीनियरिंग
पश्चिम यूपी की सियासत में तीन बड़े वोटबैंक हैं, जिसमें मुस्लिम, जाट और दलित समुदाय हैं. इसके अलावा गुर्जर, कश्यप, सैनी, ठाकुर, त्यागी और ब्राह्मण वोटर हैं. जाट आरएलडी का वोटबैंक माना जाता है तो ठाकुर, त्यागी, ब्राह्मण बीजेपी के साथ खड़े हैं जबकि दलित बसपा के संग और मुस्लिम सपा के साथ हैं.
बीजेपी का आरएलडी के साथ गठबंधन होने के चलते पश्चिमी यूपी में एनडीए की सियासी ताकत काफी बढ़ गई है, जिसके सामने सपा भी अपने जातीय समीकरण को मजबूत करने के लिए मुस्लिम-गुर्जर कॉम्बिनेशन पर काम शुरू कर दिया है. मुस्लिम सपा के साथ मजबूती से खड़ा है और अब गुर्जर वोटों को जोड़ने की कवायद शुरू कर दी है.
पश्चिम यूपी में सपा की गुर्जर चौपाल
अखिलेश यादव ने दिल्ली से गुर्जर चौपाल का आगाज किया है, जिसकी कमान पार्टी प्रवक्ता राजकुमार भाटी को सौंपी है. राजकुमार भाटी ने पश्चिम यूपी में गुर्जर चौपाल शुरू कर दी है. चार चौपाल हो चुकी हैं, लेकिन यूपी के 34 जिलों के 132 विधानसभा क्षेत्रों में छोटी-छोटी चौपाल और रैलियां करने की प्लानिंग है. ये चौपाल उन विधानसभा क्षेत्रों में की जा रही हैं, जहां गुर्जर समाज के मतदाता अच्छी खासी संख्या में हैं.
राजकुमार भाटी ने AajTak.in से बातचीत करते हुए कहा कि गुर्जर समाज में सामाजिक और राजनीतिक जागरूकता के लिए सपा ने चौपाल शुरू की है. बीजेपी ने गुर्जर समाज को सिर्फ ठगा है. योगी आदित्यनाथ की यह पहली सरकार है, जिसमें एक भी गुर्जर समाज का कैबिनेट मंत्री नहीं है. अब गुर्जर समाज सपा की तरफ बड़ी उम्मीदों से देख रहा है.
भाटी ने बताया कि सपा ने गुर्जर समाज को एकजुट करने और साथ ही उन्हें सामाजिक न्याय के एजेंडे के तहत पीडीए के साथ जोड़ने की कवायद कर रही है. एक सप्ताह में तीन से चार चौपाल की जा रही है, जो जिले ज्यादा बड़े हैं, वहां पर दो से तीन चौपाल भी की जाएंगी. नवंबर में ग्रेटर नोएडा में गुर्जर समाज के लोगों की एक बड़ी रैली होगी, जिसे अखिलेश यादव संबोधित करेंगे.
गुर्जर समाज के वोटिंग पैटर्न को राजकुमार भाटी सही नहीं मानते हैं बल्कि उनका कहना है कि गुर्जर समाज को मुद्दों पर आधारित राजनीति करनी चाहिए. सपा ने गुर्जर समुदाय को जोड़ने के लिए हाल ही में दिल्ली में करीब 60 गुर्जर संगठनों के साथ बैठक की. इस बैठक में अखिलेश ने गुर्जर समुदाय की सामाजिक और आर्थिक चिंताओं को समझने और उनके लिए नीतिगत समाधान पेश करने का वादा किया.
यूपी में गुर्जर वोटों की सियासी ताकत
पश्चिम यूपी में गुर्जर समाज की खासी संख्या है, जो किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं. गाजियाबाद, नोएडा, बिजनौर, संभल, मेरठ, सहारनपुर, कैराना जिले की करीब दो दर्जन सीटों पर गुर्जर समुदाय निर्णायक भूमिका में है, जहां 20 से 70 हजार के करीब इनका वोट है.
गुर्जर समाज ओबीसी में आते हैं. आर्थिक और राजनीतिक तौर पर काफी मजबूत माने जाते हैं. एक दौर में गुर्जर समाज के सबसे बड़े और सर्वमान्य नेता के तौर पर कांग्रेस के राजेश पायलट और बीजेपी के हुकुम सिंह हुआ करते थे, जो पश्चिम यूपी की सियासत पर खास असर रखते थे. गुर्जर समाज लंबे समय तक कांग्रेस का वोटबैंक रहा है, लेकिन मंडल की राजनीति के बाद सपा और बसपा के साथ मजबूती से जुड़े रहे हैं. 2014 के बाद से वे बीजेपी के साथ हैं, जिसका वोटिंग पैटर्न सजातीय है. अब सपा उन्हें अपने साथ जोड़ने की कवायद में है.
सपा की कैसी रही गुर्जर सियासत?
मुलायम सिंह यादव के दौर में लंबे समय तक सपा की कमान उत्तर प्रदेश में गुर्जर समुदाय से आने वाले रामशरण दास के हाथों में रही. रामशरण दास के निधन के बाद ही मुलायम सिंह ने सपा का प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव को बनाया था. पश्चिमी उत्तर प्रदेश से रामसकल गुर्जर, नरेंद्र भाटी, वीरेंद्र सिंह जैसे नेता को साथ रखा. इस तरह से मुलायम सिंह ने पश्चिम यूपी में मुस्लिम और गुर्जर समीकरण के जरिए अपनी मजबूत ताकत बनाए रखी थी, जिस पैटर्न पर अब अखिलेश यादव भी गुर्जर-मुस्लिम समीकरण बनाना चाहते हैं.
अखिलेश यादव गुर्जर समाज को गले लगाने में जुटे हुए हैं. विधायक अतुल प्रधान, राजकुमार भाटी, मुखिया गुर्जर और सांसद इकरा हसन सपा के गुर्जर चेहरे हैं. पश्चिम यूपी के मेरठ के मवाना कस्बे में अखिलेश यादव ने गुर्जर समुदाय से आने वाले शहीद धनसिंह कोतवाल की मूर्ति का अनावरण कर पहले ही संदेश दे चुके हैं कि उनकी नजर गुर्जर समाज के वोटों पर है. अखिलेश यादव इस बात को समझ रहे हैं कि मुस्लिम के साथ अगर गुर्जर समाज जुड़ जाता है तो फिर पश्चिम यूपी की सियासी नैया पार हो जाएगी.