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आगरा: 15 वर्षों में 200 HIV पॉजिटिव की हुईं शादियां, 64 बच्चे हुए पैदा, 62 स्वस्थ

उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में बीते 15 वर्षों में 200 एड्स पीड़ित मरीजों की शादियां हुईं हैं. जिनसे 64 बच्चों ने जन्म लिया है. इन बच्चों में 62 बच्चों का एड्स निगेटिव है.

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सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर

हर साल 1 दिसंबर को एड्स दिवस के रूप में मनाया जाता है. इसी बीच उत्तर प्रदेश के आगरा जिले से एक बड़ी जानकारी सामने आई है. जिसके अनुसार उत्तर प्रदेश में एसआईवी पीड़ितों से स्वस्थ्य बच्चों ने जन्म लिया है. इन बच्चों की एचआईवी जांच रिपोर्ट निगेटिव आई है.

उत्तर प्रदेश के आगरा में 15 सालों में 200 एड्स पीड़ित की शादियां हुईं हैं. पूरे जिले में 13 हजार एड्स के मरीज रजिस्टर्ड हैं.HIV पीड़ित मरीजों ने कुल 64 बच्चों को जन्म दिया है. 64 में से 62 बच्चे एचआईवी निगेटिव रिपोर्ट वाले हैं. यह जानकारी एआरटी केंद्र के कोऑर्डिनेटर देवेंद्र सिंह ने दी है.

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 देवेंद्र सिंह ने बताया है कि 2009 से आगरा में एआरटी सेंटर संचालित है. पूर्व में मरीज को एड्स की जांच के लिए दिल्ली, लखनऊ और मेरठ जाना पड़ता था. देवेंद्र सिंह ने यह भी जानकारी दी है कि हर महीने 40 से 50 मरीजों की संख्या में इजाफा हो रहा है. इसमें 35 प्रतिशत युवाओं की संख्या है. जबकि 10 प्रतिशत अवविवाहित हैं. मिडिल क्लास लोगों की संख्या अत्यधिक है.

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सेंटर पर कई सेक्स वर्कर भी एड्स् से पीड़ित हैं, जिन्हें रोजाना दवाओं का सेवन करना पड़ रहा है. कोऑर्डिनेटर ने जानकारी दी है कि एआरटी सेंटर बनने से पहले आगरा में 586 HIV पीड़ित मरीजों की मौत हो चुकी थी. वहीं, अब तक लगभग 2591 एड्स से पीड़ित मरीजों की मृत्यु हो चुकी है. 

सरोजनी नायडू मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य डाक्टर प्रशांत गुप्ता ने बताया कि यह बीमारी दो कारणों से फैलती है, पहला समलैंगिक संबधों के कारण और दूसरा इनफेक्टेड ब्लड या इनफेक्टेड नीडल का इस्तेमाल से. वर्तमान में इसका इलाज उपलब्ध है. डॉ प्रशांत गुप्ता का कहना है कि HIV पॉजिटिव का मतलब यह नहीं है कि उसके पास जीवन में अब कुछ नहीं बचा है. यह सिर्फ शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को कम करती है.

एड्स की दवाइयां सरकार द्वारा मुफ्त उपलब्ध कराई जाती हैं. मरीज का समय समय पर टेस्ट होता है. प्राचार्य ने बताया है कि साल में एक बार मरीजों के साथ संगोष्ठी की जाती है. संगोष्ठी में मरीजों को मोटीवेट किया जाता है. साथ ही उपहार भी दिए जाते हैं. वर्तमान में इस बीमारी को छिपाने का समय नहीं है. अगर किसी को यह समस्या है तो तत्काल उसके इलाज के लिए एआरटी सेंटर पर जाएं और अपना उपचार कराएं.

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प्राचार्य डॉक्टर प्रशांत गुप्ता ने जानकारी दी है कि कई HIV पॉजिटिव मरीजों की डिलीवरी हुईं हैं. समय से दवा खाने से करीब 60-62 एचआईवी निगेटिव बच्चों ने जन्म लिया है. इस बीमारी में सावधानी बहुत जरूरी है.एनजीओ एसशक्ति सीएससी 2.0 के प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर देवेंद्र सिंह ने कहा कि 2009 में HIV पीड़ित की पहली शादी कराई गई थी. यह शादी राजस्थान जिले के युवक से आगरा में कराई थी. उसके बाद राजस्थान के भरतपुर में दूसरी शादी कराई गई. जिसमें एक अविवाहित युवक ने एक विधवा को उनके बच्चे के साथ अपनाया था.

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एड्स से पीड़ित मरीजों के साथ सामान्य महिला-पुरुष विवाह से कतराते हैं. ऐसी स्थिति में HIV पॉजिटिव मरीजों का पंजीकरण कर एक दूसरे के लिए विकल्प के तौर पर रखा जाता है. इस श्रेणी में सभी धर्म और जाति के मरीज शामिल हैं. एक दूसरे की राजी से मरीज बिना धर्म और जाति का भेदभाव किए अपना जीवनसाथी चयन कर रहे हैं.

कई रिश्ते ऐसे भी हैं जिनमें परिजनों ने भी मरीजों की शादी में साथ दिया. कोऑर्डिनेटर देवेंद्र सिंह यह भी बताते हैं कि उनके पास काउंसलिंग के लिए ऐसे लोग भी आते हैं, जिन्हे पॉजिटिव आने के बाद उनके परिवार ने उनका साथ छोड़ दिया. इसमें कई विधवा और कई विधुर शामिल हैं. ऐसे लोगों की भी शादियां एक दूसरे से करवाई गईं हैं. कोऑर्डिनेटर ने जानकारी दी है कि एआरटी सेंटर में 16 साल से कम उम्र के 850 बच्चे रजिस्टर्ड हैं.

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ऐसे बच्चों की पढ़ाई का जिम्मा NGO उठाता है. जिस समय मरीज रजिस्टर्ड होता है, उस समय उसके पॉजिटिव होने का कारण भी पूछा जाता है. जानकारी में यह पता लगाया जाता है कि कौन-कौन व्यक्ति मरीज के संपर्क में आया है? जानकारी इकट्ठा करने के बाद संपर्क में आए व्यक्तियों को चिह्नित किया जाता है.

देवेंद्र सिंह ने स्पष्ट किया है कि अधिकतर कउंसलिंग में पता लगा है कि असुरक्षित यौन संबध के कारण यह संख्या अधिक है. युवाओं में इसका प्रतिशत अधिक पाया गया है. कोऑर्डिनेटर ने एहतियात की जानकारी देते हुए कहा है कि जिस HIV मरीजों की शादी की जाती है और उनके घर यदि बच्चा है, तो कई चरणों में उनका टेस्ट किया जाता है. बचपन से ही उसे दवाएं दी जाती हैं.

पहला टेस्ट ड्राई ब्लड टेस्ट सैंपल 45 से 60 दिनों में होता है. उसके बाद 6 महीने में एंटीबॉडी टेस्ट, 12 महीने फिर से एंटीबॉडी टेस्ट और 18 महीने में लास्ट टेस्ट होता है. इन सभी टेस्ट के बाद निर्धारित होता है कि बच्चा नेगेटिव या पॉजिटिव है. इस दौरान 18 महीने तक बच्चे को दवाओं का सेवन करना पड़ता है.यह  एक ऐसी बीमारी है जो HIV वायरस मनुष्य के शरीर में आने के बाद कई सालों तक निष्क्रिय रहता है. फिर धीरे धीरे असर करना शुरू करता है.

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HIV वायरस शरीर में श्वेत रक्त कणिकाओं को नष्ट करना शुरू कर देता है. इस वायरस से ग्रस्त मरीज शुरुआत के 15-20 सालों तक स्वस्थ दिखाई देता है. इसके बाद मरीज की धीरे धीरे रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती जाती है. प्राचार्य डॉक्टर प्रशांत गुप्ता ने कहा है कि एक समय ऐसा था ज़ब इस बीमारी को अभिशाप के रूप में माना जाता था. लेकिन अब इस बीमारी के लिए नई- नई दवाइयां बनी हैं. आज के समय में एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति भी सामान्य जीवन जी सकता है. 

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