भारत में छोटे परिवारों का चलन भले ही बढ़े लेकिन युवा पीढ़ी बुजुर्गों की दूरदर्शिता की सराहना करती है और समय समय पर पारिवारिक मामलों में उनका मार्गदर्शन भी मांगती है. यह बात एक गैर सरकारी संगठन ‘एजवेल फाउंडेशन’ के हालिया अध्ययन में सामने आई है.
अध्ययन के दौरान 14 राज्यों के 20 से 39 साल तथा 40 से 59 साल के करीब 5,000 व्यक्तियों से बातचीत की गई. इन 5,000 व्यक्तियों में से करीब 71.2 फीसदी उत्तरदाताओं ने कहा कि वे बुजुर्गों की दूरदर्शिता की सराहना करते हैं और समय समय पर पारिवारिक मामलों पर उनके साथ विचारविमर्श करते हैं.
कानपुर के एक सेवानिवृत्त बैंक मैनेजर जटाशंकर त्रिपाठी ने बताया ‘जब मेरे बेटे ने आईटी संबंधी मामलों के लिए अपना कार्यालय खोला तो उसने मुझसे पूजा के बारे में पूछा. वह आज के दौर का युवक हो सकता है लेकिन परंपरागत मूल्यों को भुलाया भी नहीं जा सकता.’ बुजुर्गों की सलाह को 35.5 फीसदी उत्तरदाताओं ने महत्वपूर्ण माना.
उन्होंने कहा कि वे अपने बुजुर्ग परिजनों और मित्रों से मार्गदर्शन लेते हैं. ग्रामीण इलाकों में 18.5 फीसदी लोगों ने और शहरी इलाकों में 14.2 फीसदी लोगों ने कहा कि उन्होंने अपने से बड़ों की सलाह ली है. सर्वे के दौरान 20 राज्यों के 150 जिलों में रह रहे करीब 15,000 बुजुर्गों से भी बात की गई और उनसे उनके अनुभव के बारे में राय मांगी गई. {mospagebreak}
ज्यादातर यानी करीब 80.31 फीसदी बुजुर्गों ने कहा कि उनके परिवार के लोग तथा मित्र और आम तौर पर समाज उनकी राय की सराहना करते हैं. करीब 19.69 फीसदी बुजुर्गों ने शिकायत की कि उनके परिवार और समाज में उनकी उपेक्षा की जाती है. यह शिकायत करने वाले बुजुर्गों की संख्या शहरों में 22.01 फीसदी और ग्रामीण इलाकों में 17.36 फीसदी पाई गई.
दिल्ली की 67 वर्षीय दमयंती वर्मा ने कहा ‘जब हम करीब 40 साल के थे तो पारिवारिक मामलों में, खास कर धार्मिक या आध्यात्मिक मामलों में हमेशा अपने अभिभावकों की राय लेते थे. लेकिन आज के बच्चे हमें पुराना सामान समझते हैं जो आज के अत्याधुनिक उपकरणों के साथ मेल नहीं खाता. उनके पास हमारे लिए समय नहीं है.’
पुरूषों और महिलाओं के बीच तुलना करने पर, 60.21 फीसदी बुजुर्ग पुरूषों ने माना कि परिवार में उनकी राय मांगी जाती है जबकि ऐसा जवाब देने वाली महिला बुजुर्गों की संख्या केवल 40 फीसदी थी. करीब 54.5 फीसदी बुजुर्ग पुरूषों ने और केवल 45.5 फीसदी महिलाओं ने माना कि उनकी दूरदर्शिता की वजह से समाज या उनके परिवार को लाभ मिला. एजवेल फाउंडेशन के प्रमुख हिमांशु रथ ने कहा ‘बुजुर्ग कभी चूकी हुई शक्ति नहीं होते. वे अनुभव, दूरदर्शिता, संस्कृति, ज्ञान और चतुराई का खजाना होते हैं.
आज की तेजी से बदलती दुनिया की तुलना में भले ही बुजुगों के पास अपेक्षाकृत कम ज्ञान हो, लेकिन संस्कृति, परंपरा और मूल्यों को उनसे बेहतर भला और कौन समझ सकता है. यह संस्कृति, परंपरा और मूल्य प्रकृति में हमेशा से समाए हैं और यह मानवता की विशेषता भी है.’