सोचिए…आप अपने घर की लाइब्रेरी में किताबें सजा रहे हों. अचानक एक शेल्फ सरकती है और उसके पीछे दिखे एक गुप्त दरवाजा.दिल जोर-जोर से धड़कने लगे. आप हिम्मत जुटाकर दरवाज़ा खोलें और नीचे उतरें… और सामने आ जाए इतिहास का सबसे बड़ा राज.यही हुआ नॉर्वे के ट्रॉन्धाइम शहर में रहने वाले एक शख्स के साथ.
मिट्टी में दबा था वक्त का कब्रिस्तान
घर खरीदते समय उसे बताया गया था कि जमीन के नीचे कोई 'अनओपन्ड बंकर' है. बात सालों तक दबी रही, लेकिन जिज्ञासा ने उसे चैन नहीं लेने दिया.उसने खुदाई शुरू की… मिट्टी हटाई… और जब नीचे एक खिड़की और रास्ता दिखा तो उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं. नीचे उतरा तो सामने था – वर्ल्ड वॉर सेकेंड का विशाल बंकर.
जर्मन सैनिकों का गुप्त ठिकाना
स्थानीय सैन्य म्यूजियम के मुताबिक, यह इलाका 1940 में जर्मन फोर्सेज ने कब्ज़े में लिया था. नार्डो पठार से चारों ओर नजर रखने के लिए इसे रणनीतिक ठिकाना बनाया गया.1944 तक यहां 32वीं मरीनफ्लैक रेजीमेंट तैनात रही और जमीन के नीचे से गरजती थीं 12.8 सेंटीमीटर की तोपें.
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घर से दोगुना बड़ा बंकर
मालिक के मुताबिक, यह बंकर करीब 136 वर्गमीटर का है. 21 मीटर लंबा हॉलवे, 10-10 मीटर के कमरे और 2.7 मीटर ऊंची छत यानी यह उसके घर से दोगुना बड़ा था.सबसे हैरान कर देने वाली बात अंदर अब भी मौजूद हैं सीटिंग एरिया, टूटा हुआ सिंक और धूल से ढकी एक पुरानी साइकिल.जैसे वक्त वहीं रुक गया हो… जैसे अभी कोई सैनिक दरवाजा खोलकर बाहर निकल आएगा.
दूसरे विश्व युद्ध में पहली बार बड़े पैमाने पर एयरफोर्स का इस्तेमाल हुआ. शहरों और सैन्य ठिकानों पर लगातार बमबारी होती थी बंकर मज़बूत कंक्रीट और स्टील से बने होते थे, ताकि लोग बम और तोपों की मार से सुरक्षित रह सकें.बंकर अक्सर जमीन के नीचे बनाए जाते थे और इनमें कई सीक्रेट एंट्रेंस और एग्जिट होते थे. इससे दुश्मन के लिए इन्हें ढूंढ पाना मुश्किल हो जाता था और अचानक हमला करने में मदद मिलती थी.