धरती के 71 प्रतिशत हिस्से में समुद्र फैला हुआ है. सिर्फ 29 से 30% ठोस स्थलीय इलाका है. ऐसे में जमीन पर पनपने वाले जीवन के लिए समुद्र काफी महत्वपूर्ण है. क्योंकि इसी की वजह से जलवायु और मौसम का संतुलन पृथ्वी पर बना हुआ है. लेकिन, हमारे महासागरों को लेकर वैज्ञानिकों ने चिंता जताई है, क्योंकि इसका रंग बदल रहा है. यह तेजी से काला होता जा रहा है.
प्लायमाउथ विश्वविद्यालय के शोध के अनुसार, पिछले दो दशकों में वैश्विक महासागरों का 21% से ज्यादा हिस्सा काला हो गया है. यह प्रक्रिया, जिसे "महासागरों का काला पड़ना" कहा जाता है, तब होती है जब महासागर के सबसे ऊपरी स्तर में परिवर्तन के कारण सूर्य के प्रकाश की गहराई कम हो जाती है.
एक बड़े क्षेत्र में छा गया है अंधेरा
यानी ये समझें कि महासागरों के इतने बड़े क्षेत्र में अंधेरा छा गया है, जिससे समुद्री जीवन के लिए जरूरी ऊपरी परत, जिसे फोटिक जोन कहा जाता है, वहां सूरज की रोशनी का प्रवेश कम हो गया है. लगभग 20 साल के सैटेलाइट डेटा से ये चिंताजनक जानकारी मिली है, जो सिर्फ पर्यावरण से जुड़ा मुद्दा नहीं है, बल्कि यह एक वैश्विक मुद्दा भी है.
समुद्री इकोसिस्टम के साथ-साथ इंसानों पर पड़ेगा बुरा प्रभाव
सिकुड़ता हुआ फोटिक जोन समुद्री जैव विविधता को खतरे में डालता है. यह यहां के इकोसिस्टम को बाधित करता है और जीवन को सहारा देने, जलवायु को नियंत्रित करने और ऑक्सीजन का उत्पादन करने की महासागर की क्षमता को कमजोर कर सकता है. अब वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि यह बदलाव वैश्विक स्तर पर एक चेतावनी के तौर पर काम करना चाहिए, जो हमें याद दिलाता है कि हमारा भविष्य महासागरों के स्वास्थ्य से कितने करीब से जुड़ा है.
महासागर का काला पड़ना पानी की पारदर्शिता में कमी को दर्शाता है जो सूर्य के प्रकाश को समुद्र में प्रवेश करने की सीमा को सीमित कर देता है. समुद्र का प्रकाश क्षेत्र, वैसी जगह हैं, जहां प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया आसानी से होती है और समुद्री फूड चेन शुरू होता है. यही प्रकाश क्षेत्र कई क्षेत्रों में सिकुड़ रहा है.
अफ्रीका के आकार के बराबर समुद्री क्षेत्र पड़ गया है काला
समुद्र में इस बदलाव के लिए जिम्मेदार कुछ कारण है. इनमें समुद्र के गर्म होने से शैवालों का ज्यादा विकास होना, समुद्र तल और सतह का तापमान में बदलाव, समुद्र में ज्यदा तलछट जमा होना जैसे कारण शामिल हैं. ग्लोबल चेंज बायोलॉजी में प्रकाशित अध्ययन में पाया गया कि महासागर के 9% से अधिक भाग - जो अफ्रीका के आकार के बराबर का क्षेत्र है, यहां के प्रकाश क्षेत्र में 164 फीट (50 मीटर) से अधिक की कमी देखी गई है.
क्या कहते हैं वैज्ञानिक?
लेकिन शोधकर्ताओं ने कहा कि ग्रह की बड़ी संख्या में समुद्री प्रजातियां और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं प्रभावित हो सकती हैं.विश्वविद्यालय में समुद्री संरक्षण के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. थॉमस डेविस ने कहा कि अनुसंधान से पता चला है कि पिछले 20 वर्षों में समुद्र की सतह का रंग कैसे बदल गया है. हमारे परिणाम इस बात का प्रमाण देते हैं कि ऐसे परिवर्तनों के कारण बड़े पैमाने पर अंधेरा छा जाता है, जिससे उन जानवरों के लिए समुद्र की उपलब्धता कम हो जाती है जो अपने अस्तित्व और प्रजनन के लिए सूर्य और चंद्रमा पर निर्भर रहते हैं.
डॉ. डेविस ने कहा कि महासागरों के काले होने से मनुष्यों द्वारा सांस ली जाने वाली हवा, उनके द्वारा खायी जाने वाली मछलियों तथा जलवायु परिवर्तन से लड़ने की विश्व की क्षमता पर प्रभाव पड़ सकता है. उन्होंने कहा कि हमारे निष्कर्ष चिंता का वास्तविक कारण हैं.
प्लायमाउथ समुद्री प्रयोगशाला में समुद्री जैव-भू-रसायन विज्ञान एवं अवलोकन के प्रमुख प्रोफेसर टिम स्मिथ ने कहा कि कुछ समुद्री जीव, जिन्हें प्रकाश की आवश्यकता होती है, इन परिवर्तनों के परिणामस्वरूप सतह के करीब आ सकते हैं. उन्होंने चेतावनी दी कि इससे खाद्यान्न और अन्य संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ जाएगी.