उत्तर भारत को दक्षिण भारत से जोड़ने वाला देश का प्रमुख रेल मार्ग 100 साल पूरे कर रहा है. भोपाल-नागपुर रेल लाइन के बीच के खंड बैतूल-इटारसी को जोड़ने में कई लोगों ने कुर्बानी दी और इसके पूरा हाने में 43 वर्ष का वक्त लगा.
बैतूल से इटारसी तक 108 किमी रेल लाइन बिछाने का काम काफी चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि इस मार्ग पर सतपुड़ा की पहाड़ियां एवं गहरी खाई थी. इटारसी से नागपुर के बीच रेल लाइन बिछाने में रेलवे को पूरे 43 साल का समय लगा था. नागपुर तक 20 मई 1867 में रेल लाईन बिछ गई थी वहीं इटारसी तक एक जनवरी 1870 को रेल लाइन बिछी थी. लेकिन नागपुर-भोपाल के बीच रेल लाइन 43 वर्ष बाद 13 मई 1913 को पूरी हुई थी जिसमें बैतूल से इटारसी के बीच ही नौ सुरंगें एवं 300 पुल-पुलिया बनाए गए थे. 13 मई को इस रेल मार्ग के सौ वर्ष पूरे हो रहे हैं. इस अवसर पर रेलवे द्वारा बैतूल में भव्य समारोह का आयोजन किया गया है.
भारतीय रेल व मध्य रेल की शुरुआत द ग्रेट इंडियन पेनीनसुला रेलवे कंपनी से हुई थी. 160 वर्ष पूर्व 16 अप्रैल 1853 में भारतीय उपमहाद्वीप पर पहली रेल गाड़ी मुंबई से ठाणे तक चलाई गई, जिसने केवल 33 किलोमीटर की दूरी तय की. तब से आज तक मध्य रेल ने चहुंमुखी विकास किया और आज मध्य रेल के पास 3905 रुट किलोमीटर का अपना नेटवर्क है. जिसका विस्तार महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और कर्नाटक राज्यों तक है तथा जो पांच मंडलों के माध्यम से 475 स्टेशनों को जोड़ता है.
बैतूल इटारसी रेल खंड की शुरुआत 13 मई 1913 को हुई थी. 13 मई 2013 को यह रेल खंड पूरे सौ साल की अवधि पूरी कर लेगा. देश के कम रेल खंड ऐसे हैं जो एक शताब्दी का सफर तय कर चुके हों.
द ग्रेड इंडियन पेनीनसुला कंपनी ने अपना रेल नेटवर्क का विस्तार शुरू किया और नागपुर तक 20 फरवरी 1887 को ट्रेन सेवा पहुंच गई थी. उधर, मुंबई से इटारसी तक भुसावल, खंडवा होकर रेल सेवा एक जनवरी 1870 को पहुंची. पूर्व भारत से पश्चिम भारत को रेल मार्ग से जोड़ने का कार्य तेज गति से हुआ था, उस तुलना में दक्षिण भारत को उत्तर भारत से जोड़ने के कार्य में देरी हुई.
उत्तर भारत को दक्षिण भारत से रेल सेवा द्वारा जोड़ने में नागपुर -इटारसी मार्ग पर स्थित सतपुड़ा पहाड़ियां सबसे बड़ी बाधा थी. सतपुड़ा पहाड़ियों पर स्थित, ऊंची पर्वत मालाएं और गहरी खाईयों के बीच रेल की पटरी बिछाने के लिए सामान पहुंचाना और पहाड़ियों के बीच रास्ता बनाना एक जोखिम भरा काम था. इटारसी से बैतूल तक रेल लाइन जिस पर घुमावदार एवं कटिंग तथा चढ़ाई शामिल है तथा यह देश के कठिनतम सेक्शनों में से एक है. इटारसी से बैतूल तक की 108 किलोमीटर लंबी लाईन में नौ सुरंगें और 300 पुल बनाए गए. अथक प्रयासों तथा कई जानों की कुर्बानी के बाद इटारसी से बैतूल के बीच रेल लाइन 1913 में चालू की गई.
इटारसी-बैतूल रेल लाइन पर कई सालों तक भाप इंजन से रेल सेवाओं का संचालन हुआ. अब यह दूरी मेल गाड़ी द्वारा एक घंटा 45 मिनट में पूरी होती है जबकि पहले भाप इंजन के समय यह तीन घंटे में तय होती थी, उत्तर से दक्षिण भारत को जोड़ने वाली दक्षिण एक्सप्रेस तथा जीटी एक्सप्रेस इस सेक्शन से चलने वाली सबसे पुरानी मेल व एक्सप्रेस गाड़ियों में थी.
सन् 1970 में इस लाइन पर डीजल इंजन का उपयोग शुरू हुआ एवं सन 1991 में इस मार्ग का विद्युतीकरण हुआ. बैतूल-इटारसी इस सेक्शन मध्य रेल के नागपुर मंडल का एक अहम एवं परिचालन के लिए विषम हिस्सा है.