मतदाता पहचान पत्र में फोटो के लिये बुर्के में लगे हिजाब को हटाने को लेकर उच्चतम न्यायालय के फैसले का विभिन्न मुस्लिम संगठनों ने स्वागत किया है. न्यायालय ने इस दलील को खारिज कर दिया कि पहचान पत्र बनाते वक्त मुस्लिम महिलाओं को हिजाब हटाने के लिये विवश नहीं किया जाना चाहिये. संगठनों ने कहा है कि विशेष जरूरत के दौरान इस्लामिक कानून महिलाओं को ऐसा करने की अनुमति देता है.
दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष और अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य कमाल फारूकी ने कहा, ‘‘मैं पूरी तरह उच्चतम न्यायालय के फैसले के साथ हूं. हज के लिए पासपोर्ट पर लगाये जाने वाले फोटो के लिए जब हमें कोई बाधा नहीं होती तो मतदाता पहचान पत्र के लिए क्यों.’’ उनसे जब यह पूछा गया कि कुछ मौलवी शीर्ष न्यायालय के इस फैसले का विरोध कर रहे हैं तो फारूकी ने कहा कि वह समुदाय को मतदाता पहचान पत्र की जरूरतों के बारे में बतायेंगे. ‘‘मैं आश्वस्त हूं कि वह इसके महत्व को समझेंगे.’’ उच्चतम न्यायालय ने कल एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि मतदाता फोटो पहचान पत्र बनाने के लिए धार्मिक भावनायें आढ़े नहीं आने चाहिए. याचिका में यह तर्क दिया गया था कि मतदाता फोटो पहचान पत्र बनाने के लिए महिलाओं को हिजाब हटाने के लिए कहना गलत है.
अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वरिष्ठ सदस्य और लखनउ ईदगाह के नायब इमाम खालिद रशीद फिरंगीमहली ने प्रेट्र को बताया, ‘शरियत कानून के तहत पर्दा हालांकि मुस्लिम महिलाओं के लिए बेहद लाजिमी है. इस्लामिक कानून खास परिस्थितियों में इसे हटाने की सशर्त अनुमति देता है.’’ जमियत उलेमा ए हिंद के सचिव और प्रवक्ता अब्दुल हसन नोमानी ने भी कहा कि विशेष जरूरत पड़ने पर इस्लाम मुस्लिम महिलाओं को अपना चेहरा दिखाने की अनुमति देता है. नोमानी ने कहा, ‘‘बुर्के वाली तस्वीरों के साथ मतदाता फोटो पहचान पत्र की प्रासंगिकता क्या होगी. यह कोई सामान्य स्थिति नहीं है जहां पर्दा जरूरी है. कुछ लोग विशेष परिस्थितियों को सामान्य परिस्थितियों के साथ मिला देते हैं. इसे एक धार्मिक मुद्दे के रूप में पेश नहीं किया जाना चाहिए.’’
जमात ए इस्लमी के सचिव मुज्तबा फारूकी ने कहा, ‘‘मैं समझता हूं कि उच्चतम न्यायालय ने जो कुछ भी कहा है वह सही है.’’ फतेहपुरी मस्जिद के शाही इमाम मुफ्ती मुकर्रम अहमद ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के फैसले में उन्हें कुछ भी गलत नहीं लगता है. मुकर्रम ने कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय के फैसले में कुछ भी गलत नहीं है. शरियत कानून के तहत मुस्लिम महिलाओं के लिए पर्दा अनिवार्य है. आवश्यक होने पर अथवा किसी खास अवसर पर महिलाओं को यह अपना चेहरा दिखाने की अनुमति देता है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘अगर एक महिला गंभीर रूप से बीमार है तो वह अपने चिकित्सक से पर्दा नहीं कर सकती. मतदाता पहचान पत्र पर और ऐसे आवश्यक दस्तावेजों पर लगने वाली फोटो के लिए इस्लाम महिलाओं को पर्दा हटाने की अनुमति देता है.’’
फिरंगीमहली ने आज यहां कहा, ‘‘हालांकि शरियत कानून में महिलाओं के लिए पर्दा अनिवार्य है लेकिन विशेष परिस्थितियों में उन्हें फोटो खिंचाने की इजाजत है.’’ उन्होंने कहा कि यदि और कोई विकल्प नहीं है और फोटो न खिंचवाने से समाज की महिलाएं मताधिकार के संवैधानिक अधिकार से वंचित हो सकती हैं, तो ऐसी विशेष परिस्थिति में उन्हें फोटो खिंचवाने की इजाजत है. मौलाना फिरंगीमहली ने यह भी कहा कि हज पर जाने वाली महिलाएं जिस तरह से पासपोर्ट बनवाने के लिए फोटो खिंचवाती हैं, उसी तरह मतदाता पहचान पत्र पर फोटो लगाने के लिए वे फोटो खिंचवा सकती हैं.