हमारे देश में न खुल कर प्रेम करना आसान है और न ही प्रेम के बाद शादी कर दाम्पत्य जीवन का हंसी-खुशी मजा लेना. यहां हर जाति के साथ संबंधित सरनेम हैं और लड़कियों के मामले तो और भी जुदा हैं. यहां लड़कियों को शादी के बाद सरनेम बदलना होता है. इतना ही नहीं बच्चों की पैदाइश के बाद से ही अपने नाम के साथ संबंधित जाति-बिरादरी और पितृसत्ता का सरनेम लेकर चलना होता है, लेकिन यहां हम जिस वाकये का जिक्र करने जा रहे हैं वह बिल्कुल जुदा है. यहां बच्चे को पितृसत्ता के बजाय मातृसत्ता की ओर से सरनेम मिला है.
यह कहानी आम कहानियों से इसलिए अलग है क्योंकि पूरी दुनिया में अमूमन ऐसा देखा जाता है कि बच्चों को पितृसत्ता के सरनेम के साथ जीना होता है. हालांकि यहां मामला उलट गया. माता-पिता ने आपसी समझ से बच्चे के सरनेम में पितृसत्ता के बजाय मातृसत्ता को तरजीह दी.
हॉस्पिटल में बर्थ सर्टिफिकेट पर खड़े हुए सवाल...
गौरतलब है कि इस दम्पति के बच्चे ने विदेशी सरजमीं पर जन्म लिया. इसकी वजह से उन्हें पहले से ही पता था कि मां मेल बच्चे को जन्म देने जा रही है. दम्पति ने इस वजह से बच्चे का नाम भी पहले ही सोच लिया था. उन्होंने उसका नाम निर्वाण रखने का फैसला लिया था. बच्चे के जन्म के बाद जब हॉस्पिटल से बर्थ सर्टिफिकेट बनवाने की बारी आई तो दम्पति ने बच्चे के नाम के साथ मां का सरनेम आगे किया. इस पर हॉस्पिटल अथॉरिटी ने उनसे फिर से कन्फर्म करने को कहा. जब उन्होंने दुबारा इस बात की पुष्टि की तो फिर उन्होंने उसके हिसाब से सर्टिफिकेट जारी किया.
पत्नी पहले से भी अपना घरेलू सरनेम लिखती रही हैं...
भारतीय परंपरा को गर देखें तो हम पाते हैं कि यहां शादी के बाद लड़की का सरनेम बदल जाता है. लड़की किसी शख्स की पत्नी बनते ही संबंधित शख्स का टाइटल अपने नाम के साथ जोड़ लेती है. हालांकि लड़की का सरनेम खमसेरा है और उन्होंने अपना सरनेम नहीं त्यागा. साथ ही बच्चे के सरनेम में भी खाबिया (पिता के सरनेम) के बजाय खमसेरा सरनेम है. अब बच्चे का आधिकारिक नाम निर्वाण खमसेरा है. इस बीच वे कहते हैं कि उन्हें बच्चे के सरनेम से कोई फर्क नहीं पड़ता. उनका बच्चा उनके लिए सिर्फ निर्वाण है. दुनियावी जरूरतों के लिए उन्हें सरनेम लगाना पड़ा.
सास-ससुर को ओर से है पूरा सहयोग...
ऐसा हमारे समाज में कम ही देखा जाता है कि बड़े-बूढ़े ऐसे मौकों पर नई पीढ़ी का साथ दे रहे हों, लेकिन यहां मामला बिल्कुल उलट रहा है. अव्वल जब बहू ने अपना सरनेम नहीं बदला और दूजा जब बच्चे को मातृसत्ता की ओर से सरनेम दिया गया. बच्चे के दादा-दादी इस बात से ही खुश हैं कि उनका पोता स्वस्थ और हंसी-खुशी है और वे उसकी हर संभव मदद कर रहे हैं.