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अपनी जिंदगी की मालिक मैं खुद हूं: दीपिका पादुकोण

सिर्फ  25 साल की उम्र में उनके पास दो मकान और तीन कार हैं जिनमें एक बीएमडब्ल्यू-5 सीरीज की है. वे पार्टियां आयोजित करती हैं, अपने निवेश की योजनाएं खुद बनाती हैं और अपनी मर्जी से जीवन जीती हैं.

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दीपिका पादुकोण
दीपिका पादुकोण

सिर्फ 25 साल की उम्र में उनके पास दो मकान और तीन कार हैं जिनमें एक बीएमडब्ल्यू-5 सीरीज की है. वे पार्टियां आयोजित करती हैं, अपने निवेश की योजनाएं खुद बनाती हैं और अपनी मर्जी से जीवन जीती हैं. अपनी फिल्मों में उभरती हुई शहरी महिलाओं के किरदार को साकार करने वाली आधुनिक भारतीय युवतियों की प्रतीक दीपिका पादुकोण से असिस्टेंट एडिटर सौम्या अजी की बातचीत.

क्या अकेली महिलाओं का दौर आ चुका है?
बेशक, मैं ऐसा ही सोचती हूं. अब लड़कियों को उनके रिश्ते के आधार पर नहीं बल्कि स्वतंत्र व्यक्ति के तौर पर देखा जा रहा है. उनके पास अपनी समझ है, वे पैसा बना सकती हैं और हर क्षेत्र में पुरुषों से बराबरी करना चाहती हैं.

क्या आपकी जिंदगी आपकी मां की जिंदगी से ज्‍यादा रोचक है?
मैं अपनी जिंदगी खुद चलाती हूं, खुद जीती हूं, खुद पैसा बनाती हूं. मेरे माता-पिता मेरे हर काम में मेरा सहयोग करते हैं. लेकिन अपने लिए जो जिंदगी मैंने चुनी है, उसकी जिम्मेदार मैं खुद हूं. मेरी उम्र में मेरी मां की शादी हो चुकी थी और मैं पैदा हो चुकी थी. मैं यह तो नहीं जानती कि मेरा जीवन ज्‍यादा रोचक है या नहीं, क्योंकि उनकी पीढ़ी ही अलग है. तुलना की गुंजाइश नहीं.

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आपके पैसों का हिसाब-किताब कौन रखता है?
मैं खुद. वैसे मेरे पिता इसका हिसाब देखते हैं, लेकिन निवेश के फैसले हम मिलकर लेते हैं.

सेक्स और रिश्तों पर आप क्या सोचती हैं?
लव आजकल में मैंने मीरा पंडित का जो किरदार निभाया है, वास्तविक जिंदगी में मैं वैसी ही हूं. व्यावहारिक, आधुनिक और साथ ही पारंपरिक मूल्यों के साथ सहज. मैं रिश्तों को समझने के लिए अपने माता-पिता को उदाहरण मानती हूं.

कोई असुरक्षा?
मुझे असुरक्षित होने की क्या जरूरत? फिलहाल मैं अकेली हूं खुश हूं, अभी शादी करने की कोई योजना नहीं है. आर्थिक रूप से मैं आत्मनिर्भर और स्थिर हूं, मेरा घर है और मैंने समझदारी से निवेश किया है.

क्या अब ऐसी अकेली जिंदगी को जीना उतना आसान है?
चीजें बदल रही हैं, लोगों को अब तलाक, बगैर शादी के पैदा हुए बच्चे और बच्चे होने के बाद संबंध तोड़ने में कोई हिचक नहीं. एकाध साल पहले ये चीजें मान्य नहीं थीं. अगर लोग खुश हैं, तो मुझे नहीं लगता कि किसी को फैसला सुनाने का हक है.

दस साल बाद हिंदुस्तान की महिलाओं को कहां देखती हैं?
हमारे मुकाबले कहीं ज्‍यादा मुक्त. महिलाएं और ज्‍यादा खुद को अभिव्यक्त कर सकेंगी. लेकिन मुझे उम्मीद है कि एक चीज जो हिंदुस्तानी महिला कभी नहीं छोड़ेगी, वह है उसकी तहजीब और मान्यताएं.

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