एक भारतीय स्टार्टअप कंपनी अपने अजीब नियम को लेकर चर्चा में है. एक कर्मचारी का दावा है कि कंपनी ने शुक्रवार को पारंपरिक कपड़े न पहनने पर उस पर 100 रुपये का जुर्माना लगाया. इस बात से नाराज होकर कर्मचारी ने रेडिट पर अपनी आपबीती शेयर की, जो अब वायरल हो रहा है. महिला कर्मचारी ने बताया कि कंपनी के एचआर विभाग ने एक ईमेल भेजा था, जिसमें कहा गया था कि अब हर शुक्रवार को 'पारंपरिक शुक्रवार( Traditional Friday) मनाया जाएगा. इसके तहत जो कर्मचारी पारंपरिक भारतीय कपड़े नहीं पहनेंगे, उनसे 100 रुपये लिए जाएंगे. वहीं, सीनियर मैनेजमेंट के लिए यह जुर्माना 500 रुपये तय किया गया है. कंपनी का कहना है कि यह पैसा CSR फंड में जाएगा.
एचआर की तरफ बताया गया नियम
एचआर की तरफ से कहा गया कि इस नियम का मकसद कर्मचारियों को संस्कृति से जोड़ना और ऑफिस का माहौल ज्यादा खुशनुमा बनाना है. लेकिन पोस्ट करने वाली महिला इससे बिल्कुल सहमत नहीं दिखीं. महिला ने बताया कि जब उन्होंने नौकरी जॉइन की थी, तब कैजुअल फ्राइडे होता था. बाद में नियम बदलकर फॉर्मल या पारंपरिक कपड़ों का कर दिया गया. उन्होंने कहा कि उनके पास ज्यादा पारंपरिक कपड़े नहीं हैं और सिर्फ हफ्ते में एक दिन के लिए नए कपड़े खरीदना उन्हें सही नहीं लगता.

कई लोगों ने कंपनी की आलोचना की
उन्होंने लिखा कि जब यह मेल आया तो उन्हें बहुत गुस्सा आया और यह समझ नहीं आया कि क्या कंपनी ऐसा जुर्माना वाकई लगा सकती है. रेडिट पर पोस्ट वायरल होने के बाद कई लोगों ने कंपनी की आलोचना की. एक यूजर, जिसने खुद को वकील बताया, ने कहा कि कोई भी कंपनी कर्मचारियों पर कपड़ों को लेकर जुर्माना नहीं लगा सकती और CSR कंपनी की जिम्मेदारी होती है, कर्मचारियों की नहीं. कुछ लोगों ने सवाल उठाया कि अलग-अलग पृष्ठभूमि के कर्मचारियों पर ऐसा नियम कैसे लागू किया जा सकता है. वहीं, कई यूजर्स ने कहा कि जबरन पैसे लेना बिल्कुल गलत है. कुल मिलाकर, इस मामले ने ऑफिस के ड्रेस कोड, कर्मचारियों की आज़ादी और कंपनियों की जिम्मेदारी को लेकर बड़ी बहस छेड़ दी है.
सोशल मीडिया पर पोस्ट वायरल
उसकी पोस्ट वायरल होते ही कई लोगों ने कंपनी की आलोचना की. कई यूजर्स ने कहा कि कपड़ों को लेकर जुर्माना लगाना गलत है, चाहे वह पैसा CSR में ही क्यों न दिया जाए. एक यूजर, जिसने खुद को वकील बताया, ने लिखा कि CSR कंपनी की जिम्मेदारी होती है, कर्मचारियों की नहीं. कुछ लोगों ने यह भी सवाल उठाया कि अलग-अलग संस्कृति और सोच वाले कर्मचारियों पर ऐसा नियम कैसे थोपा जा सकता है. वहीं कई यूजर्स ने कहा कि अगर भागीदारी स्वैच्छिक है, तो जुर्माना लगाना पूरी तरह गलत और विरोधाभासी है. कुल मिलाकर, इस मामले ने एक बार फिर यह बहस छेड़ दी है कि कंपनियों को कर्मचारियों की निजी पसंद और सहूलियत का कितना सम्मान करना चाहिए.