परदे पर मुन्नी झंडु बाम के नाम पर अपने कूल्हे मटकाती है. इस चिरपरिचित बाम के लेबल जितना ही हरा उसका लहंगा मदमस्त करने वाले अंदाज में लहराता है. उसके हाथ फूलती-सिकुड़ती छाती और बलखाते पेट पर गोल-गोल घूमते हैं. पृष्ठभूमि में मुस्टंडे मचलते रहते हैं और जोरदार आवाज में गाया जाता है, मुन्नी बदनाम हुई, डार्लिंग, तेरे लिए. बॉलीवुड की नई सुपरहिट फिल्म दबंग में तीन मिनट के गाने-डांस से प्यार में बदनामी पर एक नया अध्याय शुरू हो गया है. बोलचाल की भाषा में बेवकूफ का पर्यायवाची शब्द 'झंडु' अब नया पसंदीदा शब्द बन गया है.
लेकिन क्या ये बाम वाकई कारगर होते हैं? इमामी लि. में प्रोडक्ट डेवलपमेंट के एसोसिएट वाइस प्रेसिडेंट और फिजीशियन डॉ. पवन शर्मा का कहना है, ''यह अनूठा मिश्रण हजारों संस्करणों के बाद आया है.'' झंडु बाम इमामी लि. का ही एक उत्पाद है.
जैसे ही यह गाना लोकप्रियता की सूची में शिखर पर पहुंचा, कंपनी ने इस बाम का नाम मुफ्त में बदनाम करने का आरोप लगाते हुए फिल्म निर्माता को अदालती नोटिस भिजवा दिया. लेकिन मुन्नी जब इस कंपनी का विज्ञापन करने को राजी हो गई तो दोनों के बीच बहुप्रचारित झगड़ा हाल में खत्म हो गया. क्या यह विज्ञापन की सोची-समझी रणनीति थी?
ऐसे समय में जब इमामी स्टार क्रिकेटरों के साथ नए पैकेजिंग और प्रचार अभियान से युवा और नए जमाने के लोगों को आकर्षित करने के लिए मोटी रकम खर्च कर रही है, इस सवाल पर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. यह सौदा कराने वाले विज्ञापन निर्माता प्रह्लाद कक्कड़ का कहना है, ''यह आज के नौजवानों का गाना है. मुन्नी ने किसी भी दूसरे विज्ञापन के मुकाबले इस ब्रांड के लिए ज्यादा काम किया है.''{mospagebreak}
लेकिन क्या बाम वाकई वही काम करते हैं, जिसके लिए वे बनते हैं-दर्द से छुटकारा दिलाकर आराम दिलाने का काम. क्या जड़ी-बूटियों से तैयार बाम सचमुच दर्द भगाते हैं? डॉ. सुमित सिंह से पूछिए. गुड़गांव स्थित मेदांता मेडिसिटी के इस न्यूरोलॉजिस्ट का कहना है, ''इसके बहुत कम सबूत हैं.'' 2002 में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में उत्तर भारत का पहला सिरदर्द क्लीनिक खोलने वाले इस शख्स का कहना है, ''जहां बाम लगाया जाता है वहां कुछ जलन और गरमी के अलावा कोई शारीरिक परिवर्तन नहीं होता.''
आयुर्वेदिक ओवर द काउंटर (ओटीसी) दर्द निवारक बाम के कारगर होने पर शोध इतना कम है कि डॉक्टर इस पर टिप्पणी करने से कतराते हैं: ''मैंने इसके पक्ष में कोई विश्वसनीय वैज्ञानिक साहित्य नहीं देखा है. जब तक वे ठोस सबूत नहीं पेश करेंगे तब तक इस बात के खास सबूत नहीं हैं कि ये बाम वास्तव में किसी तरह के दर्द से मुक्ति दिलाने में सहायक होते हैं.''
इसके बावजूद डॉ. सिंह की पत्नी, जो सिरदर्द से परेशान रहती हैं, लंबे अरसे से अपने माथे पर झंडु बाम लगाती रही हैं. उपभोक्ताओं के इस तरह के समर्पण की वजह से ओटीसी आयुर्वेदिक दर्द निवारक बाम का बाजार बना हुआ है. देश में 10 प्रमुख ओटीसी ब्रांडों में से तीन, दर्द निवारक बाम हैं. इमामी इनवेस्टर जून 2010 की रिपोर्ट के अनुसार, 1,500 करोड़ रु. के दर्द निवारक बाजार में झंडु बाम का 43 फीसदी हिस्सा है और उसके प्रति उसके उपभोक्ताओं का इस कदर भावनात्मक लगाव है कि पैकेजिंग के हर उपभोक्ता शोध में ऐसा डिजाइन सामने आता है जो उसके मूल पैक के सबसे करीब होता है. {mospagebreak}डॉ. सिंह बताते हैं, ''कुछ लोग इसे मानते हैं जबकि कुछ लोगों को इसकी परवाह नहीं होती. यह काफी हद तक इस पर निर्भर कर सकता है कि आप कब और कितना बाम का प्रयोग करते हैं.'' उम्मीद भी बड़ी भूमिका निभाती है. ''अगर आपको लगता है कि किसी इलाज से आपको फायदा होने वाला है, तो मुमकिन है कि आपको उससे फायदा हो जाए.''
अब जरा बाम में प्रयोग होने वाली सामग्री को देखें. हर आयुर्वेदिक बाम में कमोबेश एक ही तरह की सामाग्री इस्तेमाल होती हैः गंडापुरो तेल, तारपीन का तेल, नीलगिरि तेल, पुदीने का फूल, लवंग का तेल, कर्पूर पाउडर, अजवाइन का फूल, जातिफल का तेल, इत्यादि. एम्स में प्रोफेसर और फार्माकोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. वाइ.के. गुप्ता का कहना है, ''ये सभी सतही तौर पर जलन पैदा करके गहरे दर्द से ध्यान हटा देते हैं.'' आण्विक संरचना और फार्माकोलॉजी के नजरिए से देखें तो इनमें से कुछ दर्द निवारक बाम में ऐसे मिश्रण होते हैं जो एस्पिरिन या इबुप्रोफेन जैसी नॉन-स्टेरॉइडल एंटी-इनफ्लेमेटरी ड्रग (एनएसएआइडी) से मिलते-जुलते होते हैं. लेकिन एक ओर जहां एनएसएआइडी या दर्द निवारक अंग्रेजी दवाएं शरीर के भीतर जाकर हॉर्मोन जैसे उन तत्वों को रोक देती हैं, जिनकी वजह से सूजन और दर्द होता है, वहीं बाम त्वचा की संवेदनशील नसों के अंतिम सिरे पर जलन पैदा करते हैं और रक्त धमनियों को चौड़ा करते हैं. {mospagebreak}जिस जगह पर बाम लगाया जाता है वहां लाल होने, सनसनी, जलन या ठंडक पहुंचने की वजह से मरीज का ध्यान भीतरी दर्द से हट जाता है. वे कहते हैं, ''काउंटर-इरिटेंट मुख्यतः लक्षण दूर करते हैं, असली बीमारी को नहीं. यही वजह है कि त्वचा पर लगाई जाने वाली बेहतरीन दवाएं सीमित अवधि तक ही अपना असर दिखाती हैं.''
दर्द निवारक बाम के विज्ञापनों में 'टाइम-टेस्टेड' और 'ऐक्टिव इनग्रेडिएंट्स' जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है. दिल्ली स्थित इंडियन स्पाइनल इंजरीज के प्रमुख डॉ. जी.पी. दुरेजा बताते हैं, ''लेकिन सामग्री की मात्रा पर ही निर्भर करता है कि क्या काम करता है और क्या नहीं करता. दर्द निवारक दवाओं में इन सामग्रियों की मात्रा अलग-अलग होती है.'' रासायनिक सुरक्षा के विज्ञान, टॉक्सीकोलॉजी में दवा और जहर के बीच की मात्रा तय की जाती है. यह पेचीदा समीकरण है, जिसमें दवा और उसके असर, मात्रा और उसकी प्रतिक्रिया को बहुत ध्यान से देखा जाता है. आयुर्वेदिक दर्द निवारक दवाओं के बारे में इस तरह की जानकारी काफी हद तक नदारद है. मिसाल के तौर पर, अधिकतर ओटीसी दर्द निवारकों-झंडु बाम, अमृतांजन या टाइगर बाम-में प्रयुक्त होने वाले ऐक्टिव इनग्रेडिएंट मिथाइल सैलिसिलेट को लीजिए. {mospagebreak}इसका सबसे प्रभावशाली स्त्रोत विंटरग्रीन का तेल है. यह लिक्विड कंसंट्रेट पत्ते के फर्मेंटेशन (किण्वन) से तैयार किया जाता है. इसमें 98 फीसदी मिथाइल सैलिसिलेट होता है और यह अपने विशुद्ध रूप में काफी विषैला हो सकता है. अमेरिकी फूड ऐंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने हिदायत दे रखी है कि जिस उत्पाद में इस रसायन की 5 फीसदी मात्रा हो, उस पर इसकी चेतावनी लिखी होनी चाहिए. वे बताते हैं, ''दर्द निवारक बाम मांसपेशियों और त्वचा के पास के स्नायु तक पहुंच जाता है और उसका कुछ हिस्सा रक्त में भी पहुंच जाता है.'' एक ओर जहां सामान्य ओटीसी दर्द निवारकों में विंटरग्रीन का तेल जहर बनने की मात्रा से काफी नीचे होता है, वहीं झंडु बाम में 10 फीसदी, अमृतांजन में 8 फीसदी और आयोडेक्स में 20 फीसदी प्रयोग किया जाता है लेकिन यह कभी नहीं बताया जाता कि कितनी बार और कितनी मात्रा लगाई जानी चाहिए. एम्स में अपनी तरह का पहला क्लीनिक शुरू करने वाले व्यक्ति का कहना है, ''अधिक प्रयोग से रक्त में जहरीले रसायन जमा हो सकते हैं.'' विषाक्तता आयुर्वेदिक दवाओं पर छाया सबसे काला बादल है.
प्रतिष्ठित जर्नल ऑफ द अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन (जामा) में प्रकाशित विभिन्न अध्ययनों में प्रमुख आयुर्वेदिक कंपनियों-हिमालय, डाबर, झंडु, बैद्यनाथ, इत्यादि-के उत्पादों में स्वीकार्य मात्रा से अधिक हेवी मेटल-शीशा, पारा और आर्सेनिक-पाए गए हैं. जामा ने 2004 में 70 उत्पादों का परीक्षण किया था जिनमें 14 में हेवी मेटल पाए गए थे. {mospagebreak}अहमदाबाद स्थित कंज्यूमर एजुकेशन ऐंड रिसर्च सेंटर ने जामा की इस सूची से नौ भारतीय उत्पादों को चुना. सेंटर की निदेशक प्रीति शाह का कहना है, ''उनमें से आठ के लेबल पर उसमें हेवी मेटल के प्रयोग की जानकारी नहीं दी गई थी. न ही उन्हें तैयार करने की विधि बताई गई थी.''
कोच्चि स्थित अमृता स्कूल ऑफ फार्मेसी में फार्मास्यूटिकल एनालिसिस पढ़ाने वाले टी.पी. अनीश का कहना है, ''दुर्भाग्यवश, आयुर्वेदिक दवाओं के नकारात्मक प्रभावों के बारे में मिल रही खबरें बढ़ती जा रही हैं. यह व्यापक तौर पर माना जाता है कि भारतीय आयुर्वेदिक दवाओं की विषाक्तता का सख्त परीक्षण नहीं किया जाता.''
मामला सिर्फ हेवी मेटल का ही नहीं है. विशेषज्ञ बताते हैं कि निर्माण प्रक्रिया के लचर होने से दवाओं की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है. वैद्य बालेंदु प्रकाश, जिन्होंने देहरादून में अपने पिता की याद में वैद्य चंद्र प्रकाश कैंसर रिसर्च फाउंडेशन बनाया है, कहते हैं, ''पुरानी किताबों में औषधियों की गुणवत्ता के बारे में स्पष्ट वर्णन है.'' ऐसी जड़ी-बूटियां हैं जो तोड़े जाने के एक साल के भीतर अपना असर गंवा देती हैं, कुछ पाउडर केवल छह महीने तक ही असरदार रहते हैं, कुछ पेस्ट तैयार किए जाने के एक साल के भीतर ही कारगर रहते हैं. वे कहते हैं, ''यह किसी को नहीं मालूम कि डिब्बाबंद वाणिज्यिक उत्पादों का क्या होता है. वैद्य औषधि के पैकेट पर उसके तत्वों को लिख देते हैं. लेकिन वाणिज्यिक स्तर पर किसी को उत्पाद की सटीक सामग्री मालूम नहीं होती. उनके निर्माण की प्रक्रिया लंबी और थकाऊ है.'' {mospagebreak}मिसाल के तौर पर, झंडु बाम की 10 एमएल की शीशी पर सिर्फ इतना लिखा होता है कि उसमें मेंथॉल (20 फीसदी), गौलथेरिया का तेल (10 फीसदी) और 'बेस' का प्रयोग किया गया है. अब यह पता लगाने का काम उपभोक्ताओं का है कि उसमें और किन तत्वों का प्रयोग किया गया है. प्रकाश कहते हैं कि आयुर्वेदिक दर्द निवारक दवाइयां बामों में उपलब्ध सामान्य दर्द निवारक क्रीम से कतई अलग नहीं हैं और वे मॉडर्न मेडिसिन पर आधारित हैं. वे बताते हैं, ''उनमें जड़ी-बूटियों का बहुत कम अर्क होता है और वे त्वचा पर लगाने वाले किसी भी दूसरे दर्द निवारक की ही तरह प्रभावी होते हैं.'' एक अच्छी बात यह है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की आयुष इकाई भारतीय आयुर्वेदिक उत्पाद निर्माताओं की विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए क्वालिटी एश्योरेंस सर्टिफिकेशन को आवश्यक बनाने की योजना बना रही है.
लेकिन आश्चर्य नहीं कि दर्द निवारक आयुर्वेदिक बाम के निर्माता अपने उत्पादों को असरकारी बताते हैं. शर्मा का कहना है, ''दर्द का स्थायी इलाज नहीं होता. यहां तक कि अंग्रेजी गोलियां भी उसे ठीक नहीं कर सकतीं. लेकिन राहत दी जा सकती है और हमारा उद्देश्य यही है.'' उनका कहना है कि बाजार में झंडु बाम लंबे समय से है और इससे किसी तरह के नुकसान की कोई रिपोर्ट नहीं है. वे पूछते हैं, ''क्या लोगों को असली फायदा पहुंचाए बगैर कोई चीज बाजार में इतने लंबे समय तक टिक सकती है?'' जामा की रिपोर्ट और प्रतिबंधित दवाओं की सूची के बारे में उनका कहना है कि यह ''हमारी परंपरा को तबाह करने'' के लिए पश्चिम की चाल है. वे कहते हैं, ''आज का युग डॉक्यूमेंटेशन का है.'' दुर्भाग्यवश आयुर्वेद के पास रिकॉर्डेड सबूत नहीं है, लेकिन आगे की योजना पर विचार कर लिया गया है. {mospagebreak}नई औषधियों पर वैद्यों और मार्केटिंग की टीम के काम करने के साथ ही इमामी का आर ऐंड डी विभाग दुनिया भर के आलोचकों का सामना करने के लिए तैयार है. शर्मा का कहना है, ''हम आधुनिक मानकों, विकसित सुरक्षा व्यवस्था, फार्माकोलॉजिकल और क्लीनिकल परीक्षण, और इंसानी हाथ से संपर्क और गलतियों को कम करने के लिए परिष्कृत ह्ढौद्योगिकी का प्रयोग कर रहे हैं.'' नई औषधियों को बाजार में उतारने की योजना के साथ ही झंडु बाम अंतरराष्ट्रीय बाजार में बड़ा और बेदाग स्थान बनाने के लिए तैयार है.
एम्स के इर्दगिर्द टिन की चादरों से बनी अस्थायी दुकानों की गली है. यह राजधानी में दवाओं की फुटकर बिक्री का सबसे प्रभावशाली नेटवर्क है. आप कैंसर की कोई नायाब दवा मांगें तो वे कुछ ही मिनटों में उसे आपके सामने पेश कर देंगे. लेकिन झंडु बाम की मांग करने पर वे जोरदार ठहाका लगाते हैं. एक दुकान का मुंशी कहता है, ''हम यह नहीं रखते. आप आगे जाइए, किसी भी पान की दुकान पर मिल जाएगा.''
आज वैद्य करुणाशंकर भट्ट, जो अपने लंबे, गुच्छेदार बालों की वजह से 19वीं सदी में झंडु के नाम से मशहूर हो गए थे, जीवित होते तो गद्गद हो जाते. दर्द दूर करने के लिए उनके नाम की दवा जामनगर की पूर्व रियासत की शाही 'रस शाला' से बाहर आ गई है और 150 वर्षों से आम लोगों के साथ है. भले ही झंडु बाम दर्द दूर करे-न करे, पर उसकी पहुंच और उसके प्रति लोगों का लगाव उसका सबसे बड़ा राज है. डॉक्टर मजाक करते हैं कि अब मुन्नी झंडु बाम के साथ आ गई है तो उसके आकर्षण से भला कौन बच सकता है?