5 साल की मुहब्बत को मुकाम मिला, तो सैफ अली खान और करीना शादी के बंधन में बंध गए. सैफ और करीना ने ज़माने के सामने आकर बता दिया कि हां हम पति-पत्नी हो गए हैं. परंतु इस शादी के बाद इस्लाम के लिहाज से कुछ अहम सवाल भी खड़े हो गए हैं.
शादी की स्वीकार्यता पर संदेह के बादल
सैफ और करीना पति-पत्नी तो बन गए, लेकिन एक सवाल के साथ. सवाल इस्लामिक तौर पर बड़ा है, इसलिए क्योंकि करीना की शादी सैफ अली खान के साथ हुई है और इस शादी को इस्लामिक तौर पर स्वीकार नहीं किया जा रहा है.
16 अक्टूबर की दोपहर सैफ और करीना ने मुंबई में सिविल मैरिज की, यानी हिंदुस्तान के कानून के हिसाब से वो पति-पत्नी बन गए. इस शादी में कोई भी तामझाम नहीं था. मुंबई में बॉलीवुड से भी चुनिंदा मेहमान ही आए. करीना कपूर की बड़ी बहन करिश्मा इस शादी की गवाह थीं. दारुल-उलूम ने सैफ और करीना की शादी पर अपना फैसला सुनाया है.
...तो क्या करेगा काजी?
एक कहावत सदियों से चली आ रही है कि मियां-बीवी राज़ी, तो क्या करेगा क़ाज़ी. अब इसमें क़ाज़ी क्यों कूद रहे हैं, समझ में नहीं आ रहा है. कानूनन सैफ और करीना एक हो चुके हैं, लेकिन इस्लाम के उलेमा इसपर सवाल उठा रहे हैं. देवबंद के दारुल उलूम ने भी सैफ-करीना की शादी को मज़हबी एतबार से जायज़ नहीं ठहराया है.
दारुल उलूम के मुताबिक शादी 'नाजायज'
दुनिया भर में मशहूर इस्लामिक संस्था दारुल उलूम ने इस शादी को जायज़ मानने से इनकार कर दिया है. सैफ और करीना की शादी को 72 घंटे भी नहीं गुज़रे कि शादी को लेकर विवाद खड़ा हो गया. दारुल उलूम की मानें, तो इस शादी में सबसे बड़ा पेच यह है कि करीना कपूर अब भी करीना ही हैं. इस शादी में विवाद यह है कि जब तक लड़का-लड़की इस्लाम में दाखिल न हों, शरियत इस शादी की इजाज़त नहीं देती है.
सैफ और करीना की शादी पर राय देते हुए दारुल उलूम के प्रवक्ता ने कहा कि वे इसपर कोई फतवा जारी नहीं करना चाहते हैं दारुल उलूम का कहना है कि इस शादी को छोड़िए, बॉलीवुड में ज़्यादातर शादियां इस्लाम के मुताबिक नहीं होती हैं.
सैफ-करीना ने की है रजिस्टर्ड मैरिज
गौरतलब है कि सैफ अली खान और करीना कपूर ने रजिस्टर्ड शादी की है. सैफ ने करीना से शादी के वक्त अपना नाम साजिद अली खान लिखवाया है, जो कि उनका असली नाम है. अब कानून के हिसाब से तो दोनों पति-पत्नी बन गए हैं, लेकिन इस्लाम के मुताबिक इस शादी में कई पेच हैं.
देवबंद के दारुल उलूम का यह भी कहना है कि ऐसी शादी में जो बच्चे पैदा होते हैं, वो भी जायज़ नहीं माने जाएंगे. अगर वो इस्लाम कबूल कर लेते हैं, तो वो उस सूरत में इस्लाम में दाखिल हो सकते हैं. लेकिन यहां एक बार फिर वही कहावत फिट बैठती है कि मियां बीवी राज़ी तो क्या करेगा काज़ी.