16 फरवरी पैगंबर मोम्मद के जन्मदिवस पर विशेष
दुनिया में दूसरे सबसे ज्यादा माने जाने वाले धर्म ईस्लाम के प्रवर्तक पैगंबर मोहम्मद साहब का बुधवार को जन्म दिवस है जिन्होंने सारे आलम को बराबरी, भाईचारे और एक दूसरे के विचारों का सम्मान करने की शिक्षा दी.
अपने अंतिम खुतबे (उपदेश) में उन्होंने बराबरी का संदेश देते हुए कहा था, ‘सारी मानवजाति आदम और हव्वा से है. कोई अरब गैर अरब से श्रेष्ठ नहीं है, न न ही गैर अरब अरब से श्रेष्ठ है. इसी तरह श्वेत अश्वेत से श्रेष्ठ नहीं है और न न ही अश्वेत श्वेत से, सिवाय अपने अच्छे आचरण और धर्मपराण्यता के.’ उसी खुतबे में उन्होंने कहा, ‘किसी को दुख न न दो जिससे कोई तुम्हें भी दुख नहीं दे सके. याद रखो तुब सब अपने रब से मिलोगे, और वह वास्तव में तुम्हारे कृत्यों का हिसाब लेगा.’
औरतों के बारे में उन्होंने कहा, ‘अपनी औरतों से अच्छा व्यवहार करो और उनके प्रति दयालु रहो, क्योंकि वे तुम्हारी सहयोगी और प्रतिबद्ध सहायक हैं.’ मौलाना मिनहाज आलम का कहना है, ‘ईस्लामिक कैंलेंडर के अनुसार ‘ईद-मिलाद-उन नबी’ कोई त्योहार नहीं है. मगर इस्लाम में इसे विशेष जगह दी गयी है.
पैगंबर मोहम्मद का जन्मदिवस होने के कारण इस दिन हम खुशियां मनाते हैं. इस दिन फातिहा पढ़ा जाता है. मगर इस दिन ईद की तरह किसी विशेष नमाज का प्रावधान नहीं है.’{mospagebreak}
पैंगबर मोहम्मद का जन्म 570 ईसवी में हुआ. इस साल हम उनका 1441वां जन्मदिवस मना रहे हैं. पैगंबर ने सिखाया कि अगर कोई यह जानता है कि उसका पड़ोसी भूखा है और उसकी मदद नहीं करता तो खुदा उसकी नमाज कुबूल नहीं करता.
मौलाना आलम का कहना है, ‘हमें पैगंबर के बताए रास्तों पर चलना चाहिए और लोगों की सेवा करनी चाहिए. लोगों से प्यार करना चाहिए. औरतों को इज्जत देनी चाहिए. क्योंकि आप सच्चे मुसलमान नहीं हो सकते अगर आप औरत की इज्जत नहीं करते.
कुरान में औरत को पाक और उंचा दर्जा दिया गया है.’ वारिस खान का कहना है, ‘यह सही है कि इस दिन ईद की तरह कोई खास नमाज नहीं पढ़ी जाती मगर मुहम्मद साहेब का जन्म दिवस हम सभी बड़ी खुशी से मनाते हैं और कुरान की सबसे बड़ी सीख भूखों को भोजन देने का काम करते हैं.
कुरान के मुताबिक अगर सामने वाला भूखा है और हम उसे खाना दिए बगैर खा लें तो हमें कयामत के दिन जवाब देना होगा. इसलिए ईद-मिलाद-उन नबी के दिन हम अपनी कमाई का एक हिस्सा दान में देते हैं ताकि भूखों और जरूरमंदों को मदद मिल सके.’{mospagebreak}
अनेक महान आध्यात्मि विभूतियों की तरह पैगंबर साहब को भी अपनी मृत्यु का पूर्वाभास हो गया था. अपने आखिरी खुतबे की शुरूआत ही उन्होंने यह कर की, ‘ऐ लोगों, मेरी बात ध्यान से सुनो, क्योंकि मुझे नहीं मालूम कि इस साल के बाद मैं तुम्हारे बीच दोबारा आउंगा. इसलिए मेरी बात बहुत ध्यान से सुनो और इन शब्दों को उन तक पंहुचा देना जो आज मौजूद नहीं हैं.’ इसके कुछ दिन बाद उनका निधन हो गया.