दवा कंपनियां सामान्य इस्तेमाल की दवायें उनकी उत्पादन लागत की तुलना में दस गुना ऊंचे दाम पर बेच रहीं हैं. एक सरकारी अध्ययन में यह बात सामने आई है.
ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन, फाइजर और रैनबैक्सी समेत कई अग्रणी दवा कंपनियां सामान्य इस्तेमाल वाली दवाओं की बिक्री उनकी उत्पादन लागत के मुकाबले दस गुना तक अधिक दाम पर करती हैं. कंपनी मामलों के मंत्रालय के अध्ययन में इसका खुलासा हुआ है.
मंत्रालय की लागत लेखापरीक्षा शाखा ने अपने अध्ययन में पाया कि ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन की कालपोल दवा, फाइजर की कोरेक्स कफ सिरप, रैनबैक्सी ग्लोबल की रिवाइटल, डॉ. रेड्डीज लैब्स की ओमेज, एलेम्बिक की एजिथरल और अन्य दवाओं की बिक्री उनकी वास्तविक उत्पादन लागत से 1,123 प्रतिशत अधिक दाम पर बेचा गया. इससे चिंतित कंपनी मामलों के मंत्री एम वीरप्पा मोइली ने दवा कंपनियों की इस तरह की हरकतों पर लगाम लगाने के लिए रसायन और उर्वरक मंत्री एम.के. अलागिरी तथा स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद को पत्र लिखा है. दोनों मंत्रालयों को दवाओं की उत्पादन लागत और उनके बिक्री मूल्य पर किये गये अध्ययन की प्रति भी भेजी गयी है.
रैनबैक्सी, फाइजर, जायडस कैडिला और सिप्ला ने भेजे गए ईमेल का जवाब नहीं दिया जबकि डॉ रेड्डीज लैब्स ने इसपर टिप्पणी करने से मना कर दिया. मंत्रालय ने रैनबैक्सी, डॉ रेड्डीज लैब्स, वेथ, एफडीसी, अलेम्बिक, ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन, फायजर, यूएसवी, एल्डर फर्मा, जायडस कैडिला, वोकहार्ट और सिप्ला द्वारा विनिर्मित अथवा बेची गई दवाओं का अध्ययन किया. मंत्रालय की खुद की पहल पर किये गये इस अध्ययन के मुताबिक कंपनियों ने अनुसूचित दवाओं के दाम उनकी उत्पादन लागत की तुलना में 203 प्रतिशत से लेकर 1123 प्रतिशत तक ऊंचे वसूले जबकि राष्ट्रीय औषध मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एनपीपीए) के अनुसार अनुसूचित दवाओं के मामले में इसके लिये 100 प्रतिशत तक की अनुमति है.
अध्ययन में कहा गया है कि ज्यादा बिकने वाली दवाओं के दाम काफी ऊंचे रखे गये हैं. ऐसे ब्रांड वाली दवायें जो ज्यादा बिकती उनमें मुनाफे का मार्जिन भी काफी ज्यादा रखा गया है. अलग-अलग निर्माताओं के बीच भी उत्पादन लागत में काफी अंतर देखा गया. अधिक मांग वाली दवाओं के खुदरा दाम में भी काफी फर्क दिखाई देता है.
अध्ययन में कहा गया है कि दवाओं के दाम में अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) तय करने की प्रणाली से कई दवाओं के दाम उनपर आने वाली लागत के 1,000 प्रतिशत तक ऊंची तय होती है. इसका लाभ वितरकों, थोक और खुदरा विक्रेताओं को मिलता है. अध्ययन में कहा गया है कि उपभोक्ताओं के हितों को इससे काफी नुकसान पहुंचता है और उन्हें उत्पादन लागत से दस गुना अधिक स्तर पर तय अधिकतम खुदरा मूल्य का भुगतान करना पड़ता है. अध्ययन में कहा गया है कि इसमें बड़ी दवा कंपनियों के 21 फॉर्मूलेशन का अध्ययन किया गया और इसमें पाया गया कि दवा का अधिकतम खुदरा मूल्य उसकी उत्पादन लागत से अधिक से अधिक 1,123 यानी 10 गुना से भी अधिक पाया गया.