पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को अपने एक आदेश में कहा कि प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी न्यायालय की अवमानना के लिए 26 अप्रैल से ही अयोग्य हैं.
गिलानी ने राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों को फिर से खोलने के लिए स्विस प्रशासन को पत्र लिखने से इंकार कर दिया था. जबकि न्यायालय ने उन्हें ऐसा करने का निर्देश दिया था.
प्रधान न्यायाधीश इफ्तिखार मोहम्मद चौधरी, न्यायमूर्ति जव्वाद एस. ख्वाजा और न्यायमूर्ति खिलजी आरिफ हुसैन की तीन सदस्यीय पीठ ने नेशनल एसेंबली की स्पीकर फहमिदा मिर्जा के फैसले के खिलाफ तीन संवैधानिक याचिकाओं पर सुनवाई की.
याचिकाएं पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन), पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) और वकील अजहर चौधरी की ओर से गिलानी की योग्यता के मुद्दे पर दायर की गई थीं.
सात सदस्यीय पीठ ने 26 अप्रैल को गिलानी को न्यायालय की अवमानना का दोषी ठहराया था.
न्यायालय ने हालांकि उन्हें अदालत उठने तक या न्यायाधीशों के अदालत कक्ष छोड़ने तक की सजा सुनाई थी. इस तरह यह सजा मात्र 30 सेकंड की रही.
मंगलवार की सुनवाई के दौरान महान्यायवादी इरफान कादिर ने कहा कि प्रधानमंत्री अपने पेशेवर कर्तव्यों के निर्वहन को लेकर न्यायालय के प्रति जवाबदेह नहीं हैं.
सरकार ने 14 जून को नेशनल एसेंबली में एक प्रस्ताव पेश किया था और उसे मंजूरी मिल गई थी.
महान्यायवादी ने कहा, 'हम न्यायालय का सम्मान करते हैं. हालांकि राजकीय संस्थानों को अपने बीच टकराव से बचना चाहिए.'
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि न्यायपालिका संसद का सम्मान करती है और राजकीय संस्थानों के बीच कोई टकराव नहीं है.
खिलजी ने कहा कि न्यायालय का कर्तव्य कानून और संविधान की व्याख्या करना, और उन सभी कदमों को रोकना है, जो कानून और संविधान का उल्लंघन करते हों.
महान्यायवादी कादिर ने कहा कि यदि न्यायालय स्पीकर के फैसले के खिलाफ कोई आदेश जारी करता है तो संसद इसे अवैध घोषित कर देगा.
कादिर ने कहा कि गिलानी के खिलाफ अवमानना के मामले में सात सदस्यीय पीठ का फैसला असंवैधानिक था और उन्हें आशंका थी कि न्यायालय कानून के खिलाफ एक और आदेश जारी कर सकता है.
महान्यायवादी ने कहा कि देश में कोई ऐसा कानून नहीं है, जो न्यायालय की अवमानना के मुद्दे को सुलझा सके.
इस पर खिलजी ने कहा कि महान्यायवादी को अपने दावे के पक्ष में सबूत उपलब्ध कराने चाहिए कि अवमानना के मुद्दे से निपटने के लिए देश में कोई कानून नहीं है.