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जिंदादिल संगमा को पूर्वोत्तर ने किया मायूस

पीए संगमा की राष्ट्रपति बनने की ख्वाहिश भले ही अधूरी रह गयी हो, लेकिन जिस जिंदादिल तरीके से वे अपनी हार स्वीकार कर मुस्कुराते हुए मीडिया के सम्मुख पेश हुए उसने सबका दिल जीत लिया.

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पीए संगमा
पीए संगमा

पीए संगमा की राष्ट्रपति बनने की ख्वाहिश भले ही अधूरी रह गयी हो, लेकिन जिस जिंदादिल तरीके से वे अपनी हार स्वीकार कर मुस्कुराते हुए मीडिया के सम्मुख पेश हुए उसने सबका दिल जीत लिया.

चुनावी नतीजों पर उनकी प्रतिक्रिया के दौरान भाजपा या उनको समर्थन देने वाले अन्य पार्टियों के नेताओं की गैरमौजूदगी जरूर खल रही थी. ज्यों-ज्यों वोटों की गिनती परवान चढती गई, संगमा की बेटी अगाथा संगमा के आवास पर संवाददाताओं का जमावड़ा जुटने लगा. संगमा ने अपनी बेटी के आवास पर ही संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया.

प्रणब मुखर्जी की जीत के कुछ समय बाद प्रतिक्रिया के लिए आए संगमा के साथ भाजपा या अन्य दलों का कोई भी नेता नजर नहीं आया. उनके साथ में चंद करीबी लोग ही थे.

संगमा की बेटी और केंद्रीय मंत्री अगाथा संगमा भी सामने नहीं आईं. उनकी बारे में पूछे जाने पर कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिला.

दरअसल, आदिवासी कार्ड खेल रहे पीए संगमा को राष्ट्रपति चुनाव में प्रणब मुखर्जी से शिकस्त मिलनी तय नजर आ रही थी, लेकिन पूर्वोत्तर के नेता संगमा को उनके क्षेत्र के राज्यों में ही गहरी निराशा का सामना करना पडा .

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संगमा को अपने राज्य मेघालय में मात्र 23 मत मिले जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी प्रणब को 34 मत हासिल हुए. नगालैंड में वह एक भी मत हासिल करने में सफल नहीं हुए.

इसके अलावा त्रिपुरा में संगमा को केवल एक मत मिला जबकि मुखर्जी को 56 मत मिले. सिक्किम और मणिपुर में भी वह एक के आंकडे से आगे नहीं बढ़ पाये.

असम में संगमा को महज 13 मत मिले जबकि प्रणब को 110 मत हासिल हुए. अरुणाचल प्रदेश में संगमा को दो और प्रणब को 54 विधायकों के मत मिले. मिजोरम में संगमा को सात वोट मिले जबकि प्रणब ने 32 मत हासिल किये.

दिलचस्प बात यह भी रही कि दक्षिण के राज्य केरल में भी संगमा अपना खाता नहीं खोल पाये. संगमा का आरोप है कि चुनावी प्रक्रिया ‘अत्यंत भेदभावपूर्ण’ थी और गैर संप्रग शासित राज्यों से समर्थन जुटाने के लिए पैकेज, प्रलोभनों और धमकियों का इस्तेमाल किया गया है.

पूर्वोत्तर में कम वोट मिलने के सवाल पर उन्होंने कहा कि जिस तरह से देश का यह हिस्सा मुख्य रूप से केंद्रीय कोषों पर आश्रित है, ऐसे में निष्पक्ष वोट की उम्मीद कैसे की जा सकती है.

संगमा ने कहा, ‘केंद्रीय सहायता पर आश्रित रहने के कारण पूर्वोत्तर की पहचान ही खत्म हो गयी है. सभी प्रदेश आर्थिक पैकेज पर निर्भर हैं. ऐसे में खिलाफ जाने का फैसला कोई कैसे कर सकता है.’

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