केंद्र की यूपीए सरकार के लिए बुधवार चुनौती भरा दिन है. एक तो टीम अन्ना ने बिगूल फूंक दिया है दूसरी तरफ सहयोगी एनसीपी का भी अल्टीमेटम है.
सरकार की मुसीबत बढ़ाने के लिए विपक्ष की क्या जरूरत है, यहां तो सहय़ोगी ही यूपीए सरकार की नाक में दम करने के लिए काफी हैं.
यूपीए और एनसीपी का रिश्ता टूटने की कगार पर पहुंच गया है. मंगलवार को एनसीपी ने जिस तरह से खुली धमकी दी है उसका मतलब यही है कि अगर कांग्रेस ने मांगें नहीं मानी तो सरकार से बाहर हो जाएगी एनसीपी. एक हफ्ते से कांग्रेस और एनसीपी में खींचतान चल रही है. मामूली दरार से नौबत रिश्ता टूटने तक की आ गई है लेकिन अभी तक कुछ भी साफ नहीं कि मामला कैसे सुलझेगा.
एनसीपी की मांग है कि यूपीए में सहयोगी पार्टियों से बेहतर समन्वय हो, कांग्रेस सहयोगियों की बात सुने, नजरअंदाज न करे. एनसीपी का दावा है कि ऐसी मांग सिर्फ उनकी पार्टी की नहीं बल्कि यूपीए के कई और सहयोगियों की भी है.
हैरानी की बात तो ये है कि अपनी मांगें मनवाने के लिए शरद पवार और प्रफुल्ल पटेल पिछली केबिनेट बैठक में नहीं गए. दोनों मंत्री 6 दिनों से मंत्रालय का कामकाज भी नहीं देख रहे हैं. सवाल है एक दिन बाद यानी गुरुवार को फिर केबिनेट की बैठक होनी है. क्या इससे पहले एनसीपी की मांगों का समाधान हो पाएगा? क्या अगली केबिनेट बैठक में जाएंगे पवार या होंगे सरकार से बाहर?
रिश्तों के टूटने का खतरा सिर्फ दिल्ली में ही नहीं बल्कि महाराष्ट्र में भी है. एनसीपी ने साफ संकेत दिया है दिल्ली में रिश्ते टूटे तो महाराष्ट्र में भी 13 साल पुराना कांग्रेस-एनसीपी रिश्ता टूट जाएगा यानी महाराष्ट्र की चव्हाण सरकार को खतरा. क्या कांग्रेस इतना नुकसान सहेगी या सुलह का फार्मूला लाएगी?