प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि कोयला ब्लाक आवंटन को लेकर कैग की रिपोर्ट में अनियमितताओं के जो आरोप लगाए गए हैं वे तथ्यों पर आधारित नहीं हैं और सरासर बेबुनियाद हैं.
प्रधानमंत्री ने लोकसभा में बयान देने के बाद संसद भवन के बाहर मीडिया में भी बयान दिया. उन्होंने उनकी 'खामोशी' पर ताना कहने वालों को जवाब देते हुए शेर पढ़ा, 'हज़ारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी, न जाने कितने सवालों की आबरू रखी.'
सिंह ने संसद के दोनों सदनों में कैग रिपोर्ट पर अपनी ओर से दिए बयान में कहा कि मैं माननीय सदस्यों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि रिपोर्ट में उल्लिखित अवधि में से कुछ समय के लिए कोयला मंत्रालय का प्रभारी मंत्री होने के नाते मैं मंत्रालय के निर्णयों की पूरी जिम्मेदारी लेता हूं. मैं कहना चाहता हूं कि अनियमितताओं के जो भी आरोप लगाए गए हैं वे तथ्यों पर आधारित नहीं हैं और सरासर बेबुनियाद हैं. उन्होंने कैग की रिपोर्ट में की गयी मुख्य तीन आपत्तियों को भी ‘स्पष्ट रूप से विवादास्पद’ बताया.
उपरोक्त रिपोर्ट पर उनसे इस्तीफे की मांग कर रहे मुख्य विपक्षी दल भाजपा को भी आड़े हाथ लेते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि संप्रग का शासन आने पर कोयला ब्लाकों का आवंटन प्रतिस्पर्धी बोली से करने का प्रस्ताव हुआ था लेकिन विपक्षी दलों के तत्कालीन शासन वाले छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, राजस्थान, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों ने प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया अपनाने का पुरजोर विरोध किया था.
उन्होंने कहा कि राजस्थान की तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अप्रैल 2005 में उन्हें लिखे पत्र में प्रतिस्पर्धी बोली का विरोध करते हुए कहा था कि यह सरकारिया आयोग की सिफारिशों की भावना के विपरीत होगा.
सिंह ने कहा कि इसी प्रकार छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने जून 2005 में भेजे पत्र में मौजूदा नीति जारी रखने का अनुरोध किया था. उन्होंने कहा कि इसी तरह तत्कालीन वाम मोर्चा शासित पश्चिम बंगाल और बीजद भाजपा शासित ओडिशा सरकारों ने भी प्रतिस्पर्धी बोली पद्धति का औपचारिक विरोध करते हुए उन्हें पत्र लिखे थे.
सिंह के मुताबिक विपक्ष शासित राज्यों का कहना था कि प्रतिस्पर्धी बोली के जरिए कोयला ब्लाक आवंटन से कोयले की कीमत बढ़ेगी जिससे उनके क्षेत्रों में उद्योगों के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा और पट्टेधारी का चयन करने संबंधी उनके विशेषाधिकार भी कम होंगे.
प्रधानमंत्री ने कैग के अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाने पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि किसी भी स्थिति में लोकतंत्र में इस बात को स्वीकार करना कठिन है कि नीति में बदलाव को लागू करने के लिए सरकार के कानूनी सुधार संबंधी किसी निर्णय पर लेखा परीक्षा में प्रतिकूल टिप्पणी की जाए.
कोयला ब्लाक आवंटन में प्रतिस्पर्धी बोली के लिए विधेयक में आवश्यक संशोधन में विलंब के बारे में कैग की टिप्पणी पर उन्होंने कहा कि कैग रिपोर्ट में इस निर्णय को तेजी से लागू नहीं करने के लिए सरकार की आलोचना की गयी है. मैं इस बात से पूर्णत: सहमत हूं कि यदि आदेश मात्र से काम करना संभव होता तो हम यह काम ज्यादा तेजी से कर सकते थे लेकिन हमारी संसदीय व्यवस्था में सर्वसम्मति बनाने की जटिल प्रक्रिया को देखते हुए ऐसा करना कठिन है.
उन्होंने कैग की रिपोर्ट में आवंटन पर मुख्य तीन कारणों से जतायी गयी आपत्तियों का जिक्र किया और कहा कि कैग की टिप्पणियां स्पष्ट रूप से विवादास्पद हैं.
कैग की ये तीन टिप्पणियां हैं, जांच समिति ने कोयला ब्लाक आवंटन के लिए सिफारिश करते समय पारदर्शी और निष्पक्ष पद्धति नहीं अपनायीं. मौजूदा प्रशासनिक निर्देशों में संशोधन कर 2006 में ही प्रतिस्पर्धी बोली शुरू की जा सकती थी लेकिन लंबी प्रक्रिया अपनायी गयी जिससे निर्णय लेने में विलंब हुआ.
रिपोर्ट की तीसरी मुख्य आपत्ति है कि प्रतिस्पर्धी बोली शुरू करने में विलंब के कारण मौजूदा प्रक्रिया से कई निजी कंपनियों को लगभग 1.86 लाख करोड़ का आर्थिक लाभ हुआ.
प्रधानमंत्री ने कहा कि कैग ने जिस नीति की आलोचना की है, वह संप्रग सरकार से बहुत पहले 1993 से चली आ रही है. उन्होंने कहा कि एक अंतर मंत्रालयी जांच समिति की सिफारिश के आधार पर 1993 से ही कोयला ब्लाकों का आवंटन किया जा रहा था. इस समिति में राज्य सरकारों के भी प्रतिनिधि थे. उन्होंने कहा कि कोयला एवं कैप्टिव कोल ब्लाकों की तेजी से बढ़ती मांग को देखते हुए संप्रग. सरकार ने पहली बार जून 2004 में प्रतिस्पर्धी बोली से आवंटन का विचार किया.
सिंह ने कहा कि कैग का यह कथन दोषपूर्ण है कि मौजूदा प्रशासनिक निर्देशों में संशोधन करके 2006 में प्रतिस्पर्धी बोली शुरू की जा सकती थी. उन्होंने कहा कि 25 जुलाई 2005 को प्रधानमंत्री कार्यालय में एक बैठक आयोजित की गयी, जिसमें कोयला एवं लिग्नाइट वाले राज्यों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था. बैठक में राज्य सरकारों के प्रतिनिधियों ने प्रतिस्पर्धी बोली अपनाने के प्रस्ताव का विरोध किया था.
बयान में उन्होंने कहा कि बैठक के बाद यह देखा गया कि प्रस्तावित बदलाव के लिए जरूरी विधायी परिवर्तन को लाने में काफी समय लगेगा और कैप्टिव खनन की आवंटन प्रक्रिया को कोयले की बढ़ती मांग के मददेनजर इतने लंबे समय तक रोक कर नहीं रखा जा सकता इसलिए बैठक में निर्णय लिया गया कि नयी प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया जब तक प्रचलित नहीं हो जाती तब तक मौजूदा जांच समिति प्रक्रिया के माध्यम से कोयला ब्लाकों के आवंटन को जारी रखा जाए और यह केंद्र एवं संबंधित राज्य सरकारों का सामूहिक निर्णय था.