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पागलपन का नया चेहरा है सोशल नेटवर्किंग साइट

उनका मकसद तो लोगों को सामाजिक बनाना और एक दूसरे के संपर्क में रखना है लेकिन फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल नेटवर्किंग साइट लोगों को हकीकत से दूर ले जा रही हैं और उनके अंदर का इंसान भी इससे कमतर होता जा रहा है. अमेरिका के एक समाजशास्त्री ने यह दावा किया है.

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उनका मकसद तो लोगों को सामाजिक बनाना और एक दूसरे के संपर्क में रखना है लेकिन फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल नेटवर्किंग साइट लोगों को हकीकत से दूर ले जा रही हैं और उनके अंदर का इंसान भी इससे कमतर होता जा रहा है. अमेरिका के एक समाजशास्त्री ने यह दावा किया है.

मैसेचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की प्रो. शेरी टर्कल के मुताबिक, सोशल नेटवर्किंग साइट पर लोग जिस जुनून के साथ ऑनलाइन चैट करते हैं, उसे पागलपन के आधुनिक तरीके के तौर पर देखा जा सकता है.

अपनी किताब ‘अलोन टूगेदर’ में वह लिखती हैं कि तकनीक हमारे जीवन में हावी हो गई है और ऐसे सोशल नेटवर्किंग साइट हमें हकीकत से दूर ले जा रही हैं और हममें इंसानियत कम होती जा रही है.

डेली टेलीग्राफ के मुताबिक, तकनीक जहां बेहतर संपर्क का एहसास दिलाती हैं वहीं वास्तविकता में वह सही दुनिया की बहुत ही सतही नकल होती है और हमें वास्तविक इंसानी संवाद से दूर करती है.

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उन्होंने सिमोन बैक का उदाहरण दिया है. ब्रिघटन की इस महिला ने फेसबुक पर आत्महत्या से पहले एक सुसाइड नोट पोस्ट किया था जिसे उनके करीब एक हजार दोस्तों ने देखा लेकिन किसी ने भी बैक की मदद के लिए फोन करने की जहमत नहीं उठायी और वे सब फेसबुक पर कमेंट ही करते रहे.

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