दिल्ली-एनसीआर में खुले गड्ढे कई लोगों को असमय मौत के मुंह में धकेल चुके हैं. अब भी यह सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. इस तरह की घटनाओं पर डालिए नजर...
6 मई 2012: गाजियाबाद के वैशाली इलाके में 60 साल के एक बुजुर्ग की गड्ढे में गिरने से मौत हो गई. जल निगम ने पानी की पाइपलाइन्स डालने के लिए गड्ढा खोदा था और लापरवाही के चलते इसे आसपास से कवर नहीं किया गया था.
5 मार्च 2012: तिमारपुर में गड्ढे में गिरने से 4 मासूम बच्चों की मौत हो गई. यहां 20 फीट गहरा गड्ढा जल निगम ने खोदा था और यह पानी से भरा हुआ था. इलाके के चार बच्चे खेलते-खेलते इस गड्ढे में चले गए और डूबने से उनकी मौत हो गई.
1 मार्च 2010: दक्षिण दिल्ली के हौज खास इलाके में 13 साल का एक बच्चा 25 फीट गहरे गड्ढे में गिर गया. गड्ढे में गिरने से उसकी मौत हो गई. यहां पर भी जल बोर्ड की लापरवाही सामने आई, जिसने पाइपलाइन बिछाने के लिए गड्ढा खोदा था.
28 अगस्त 2009: साउथ दिल्ली में 77 साल के बुजुर्ग त्रिलोकनाथ माकन की गड्ढे में गिरने से मौत हो गई. 1990 में एक प्लेन क्रैश में वो बाल-बाल बच गए थे, लेकिन एमसीडी के खोदे 8 फीट गड्ढे में गिरने से वो नहीं बच सके.
16 जुलाई 2009: छतरपुर में गड्ढे में गिरने से 67 साल के एक बुजुर्ग की मौत हो गई. यहां पर एमसीडी ने गड्ढा खोदा था और उसे खुला छोड़ दिया था.
17 अप्रैल 2007: गाजियाबाद में सीवर का खुला ढक्कन 12 साल के एक बच्चे के लिए काल बन गया. सीवर में गिरने से बच्चे की मौत हो गई.
23 जुलाई 2006: प्रिंस नाम के एक बहादुर बच्चे को तीन दिन की मशक्कत के बाद बोरबेल के बाहर सकुशल निकाल लिया गया. आर्मी की मदद से इस अभियान को अंजाम दिया गया. गौरतलब है कि प्रिंस खेलते वक्त 55 फीट गहरे बोरबेल में गिर गया था.