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2जी केस: चिदंबरम पर अहम फैसला आज

यूपीए सरकार की सांसे अटकी हैं. गुरुवार का दिन बेहद अहम है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से सरकार के एक बड़े मंत्री के सियासी भविष्य की दिशा तय हो सकती है. सुप्रीम कोर्ट फैसला सुनाएगी कि गृहमंत्री पी चिदंबरम के खिलाफ 2जी घोटाले में सीबीआई जांच करे या नहीं.

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यूपीए सरकार की सांसे अटकी हैं. गुरुवार का दिन बेहद अहम है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से सरकार के एक बड़े मंत्री के सियासी भविष्य की दिशा तय हो सकती है. सुप्रीम कोर्ट फैसला सुनाएगी कि गृहमंत्री पी चिदंबरम के खिलाफ 2जी घोटाले में सीबीआई जांच करे या नहीं.

क्या राजा के हर फैसले पर चिदंबरम की मुहर थी? क्या 2जी स्पैक्ट्रम घोटाले का चिदंबरम को पता था? ये वो सवाल हैं जिन पर देश की सबसे बड़ी अदालत फैसला सुनाएगी. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जी एस सिंघवी और जस्टिस ए के गांगुली की खंडपीठ याचिकाकर्ता सुब्रमण्यम स्वामी की अर्जी पर अपना फैसला सुनाएगी. स्वामी ने अपनी अर्जी में मांग की है कि 2जी घोटाले में सीबीआई को चिदंबरम की भूमिका की जांच के आदेश दिए जाएं.

स्वामी के मुताबिक राजा के हर फैसले पर चिदंबरम की मुहर थी और वो स्पैक्ट्रम की कीमत बगैर चिदंबरम की हरी झंडी के तय ही नहीं कर सकते थे. स्वामी ने अपनी अर्जी के साथ दोनों मंत्रालयों के बीच पत्राचार का पूरा लेखा जोखा और दस्तावेज़ों की लंबी फेहरिस्त सौंपी है.

इस मामले में सीबीआई चिदंबरम को पूरी तरह से क्लीन चिट दे चुकी है. सीबीआई का कहना है कि मामला पहले से ही निचली दालत में लंबित है और स्वामी वहां पर अपना पक्ष रखें. केंद्र सरकार ने दलील दी कि जब 2जी घोटाले का संज्ञान विशेष अदालत ले चुकी है, किसी व्यक्ति विशेष की जांच या फिर आगे की जांच से जुड़े तमाम सवाल सिर्फ और सिर्फ निचली अदालत ही तय कर सकती है. लिहाजा सुप्रीम कोर्ट को स्वामी की अर्जी में आदेश देने की जरूरत ही नहीं.

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2जी स्पेक्ट्रम की दलदल में यूपीए सरकार के पूर्व संचार मंत्री राजा, सरकार के आला अफसर और टॉपशॉट इं‍डस्ट्रियलिस्‍ट फंसे हैं- अब क्या चिदंबरम की बारी है? गेंद सुप्रीम कोर्ट के पाले में है लेकिन इतना तय है कि इस फैसले का असर न सिर्फ चिदंबरम के राजनैतिक भविष्य पर पड़ेगा बल्कि सरकार के भविष्य पर भी. टेलिकॉम सेक्टर के लिए सुप्रीम कोर्ट एक और अहम फैसला करने वाला है.

कोर्ट ये फैसला सुनाएगा कि 2 जी स्पेक्ट्रम के 122 लाइसेंस रद्द किये जाएंगे या नहीं. जनहित याचिकाकर्ता सेंटर ऑफ पब्लिक इंटरस्ट लिटिगेशन ने मांग की है कि 2001 के दामों पर 2008 में स्पेक्ट्रम का आवंटन गलत था लिहाजा पूरे आवंटन को ही रद्द किया जाए क्योंकि इससे सरकार को करोड़ों का घाटा हुआ है. ये भी मांग की गई कि भविष्य में सिर्फ नीलामी के जरिये ही स्पेक्ट्रम का आवंटन किया जाना चाहिए.

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