बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष बंगारु लक्ष्मण के लिए आज बड़ा दिन है. दिल्ली की विशेष सीबीआई अदालत उन पर चल रहे 11 साल पुराने केस में आज अपना फैसला सुना सकती है. इस बीच बंगारु लक्ष्मण ने कहा है कि मुझे कानून व्यवस्था में पूरा विश्वास है.
साल 2001 में तहलका डॉट कॉम ने अपने एक स्टिंग ऑपरेशन के जरिए बंगारु लक्ष्मण पर एक लाख रुपये की रिश्वत लेने का आरोप लगाया था. बोफोर्स केस में एक-दूसरे पर हमला बोल रही कांग्रेस और बीजेपी दोनों की निगाहें आज सीबीआई अदालत के फैसले पर टिकी होंगी.
11 साल पहले तहलका डॉट कॉम के स्टिंग ऑपरेशन ने उस समय की एनडीए सरकार हिला दी थी. तब के बीजेपी अध्यक्ष बंगारु लक्ष्मण और रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस को इस्तीफा देना पड़ा था. उस समय समता पार्टी की अध्यक्ष जया जेटली को भी कुर्सी छोड़नी पड़ी थी.
इस केस में 11 साल बाद आज अहम फैसला आना वाला है. दिल्ली के द्वारका की विशेष सीबीआई अदालत इस केस पर आज फैसला सुनाएगी. विशेष सीबीआई अदालत ने तीन अप्रैल को इस मामले पर फैसला सुरक्षित रखा था.
क्या था पूरा मामला?
तहलका डॉट कॉम ने 13 मार्च 2001 को फर्जी रक्षा सौदे के स्टिंग ऑपरेशन का वीडियो जारी किया था. खुफिया कैमरे में बंगारु लक्ष्मण रक्षा सौदे के फर्जी एजेंट से एक लाख रुपये लेते दिखाई दिए.
तहलका डॉट कॉम के पत्रकारों ने बंगारु के सामने खुद को ब्रिटेन की वेस्ट एंड नाम की रक्षा कंपनी का एजेंट बताया और रक्षा सौदे के लिए उनसे सिफारिश करने को कहा. सीबीआई की चार्जशीट के मुताबिक रक्षा सौदों के एजेंट के तौर पर तहलका के पत्रकारों ने बंगारू लक्ष्मण से आठ बार मुलाकात की.
23 दिसंबर 2000 से 07 जनवरी 2001 के बीच ये आठों मुलाकातें हुईं. सीबीआई की चार्जशीट में कहा गया है कि 01 जनवरी 2001 को बंगारू लक्ष्मण ने अपने दफ्तर में इन फर्जी एजेंटों से एक लाख रुपये की रकम ली.
तहलका डॉट कॉम के स्टिंग ऑपरेशन के बाद देश की राजनीति में भूचाल आ गया था. साल 2001 में एनडीए सरकार ने इसकी जांच के लिए वेंकटस्वामी आयोग बनाया, लेकिन जनवरी 2003 में जस्टिस के वेंकटस्वामी ने आयोग से इस्तीफा दे दिया.
मार्च 2003 में जस्टिस एस एन फूकन आयोग बना. इस आयोग ने पहली रिपोर्ट में जॉर्ज फर्नांडिस को क्लीन चिट दी, लेकिन आयोग की अंतिम रिपोर्ट के पहले ही 2004 में यूपीए सरकार ने फूकन आयोग का काम सीबीआई को सौंप दिया.
सीबीआई ने पिछले साल मई में बंगारू लक्ष्मण के खिलाफ चार्जशीट दायर की. बंगारु लक्ष्मण के पूर्व निजी सचिव टी सत्यमूर्ति इस केस में आरोपी थे, जो बाद में सरकारी गवाह बन गए और कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया. बंगारु लक्ष्मण भी इस केस की सुनवाई रुकवाने के लिए हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट गए थे, लेकिन उन्हें राहत नहीं मिली.