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भारत की हार पूरे उप-महाद्वीप के लिए शर्मनाक: अकरम

टीम इंडिया का ऑस्ट्रेलिया में लचर प्रदर्शन क्रिकेट जगत में चल रही एशियाई प्रभुत्व को प्रभावित करेगा.

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भारतीय क्रिकेट
भारतीय क्रिकेट

भारतीय क्रिकेट को पिछले दस महीने में बेहद करीब से देखने के कारण मेरे लिए वाकई यह यकीन कर पाना मुश्किल हो रहा है कि विदेशी धरती पर टेस्ट मैचों के दौरान भारत का प्रदर्शन आखिर बद से बदतर कैसे होता चला जा रहा है. इतनी बात तो समझ में आती है कि अपने प्रमुख खिलाड़ियों की चोट की वजह से इंग्लैंड के लिए उसकी तैयारी उतनी उम्दा नहीं थी. लेकिन ऑस्ट्रेलिया में उनकी बेचारगी के लिए सचमुच कोई बहाना काम नहीं आने वाला.

पर्थ के मैच के बाद तो भारतीय क्रिकेट की आंखें खुल जानी चाहिए थीं. विदेशी धरती पर लगातार सात टेस्ट मैचों में पटखनी से बीसीसीआइ को साफ तौर पर यह संदेश समझ लेना चाहिए था. यही कि भारत जिस तरह से क्रिकेट खेल रहा है, उसमें कहीं कोई भारी गड़बड़ी है. एक ऐसी टीम, जो अभी हाल तक दुनिया की नंबर एक टीम होती थी, वह केवल घर में शेर होने का जोखिम नहीं उठा सकती.

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भारतीय टीम ने जिस निरीहता के साथ आत्मसमर्पण किया है, वह पूरे एशियाई उप-महाद्वीप के लिए खासा शर्मिंदगी भरा है. ऑस्ट्रेलिया में टीवी कमेंट्री की ड्यूटी से बीच में चंद दिनों के लिए मोहलत मिलने पर पिछली 17 जनवरी को जब मैं कराची पहुंचा तो दोस्तों ने मुझ पर तंज कसा. वह इसलिए क्योंकि मैंने ही एक बार कहा था कि भारत के पास ऑस्ट्रेलिया में सीरीज जीतने का यह बेहतरीन मौका है. विश्व क्रिकेट में एशियाई टीमों को अपना दबदबा बनाए रखने के लिए मैदान में लगातार अच्छा प्रदर्शन करने की सख्त जरूरत है.

दुनिया अंततः चैंपियन को ही प्यार करती है. वित्तीय ताकत या फिर सत्ता की राजनीति हो, ये सब चीजें एक कमरे के भीतर होने वाली बैठकों में काम आती हैं. वह भी जब आपकी टीम मैदान पर अच्छा प्रदर्शन करने में कामयाब रहे. पर बड़े दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि भारत ऑस्ट्रेलिया में अपना दबदबा कायम रख पाने में नाकाम रहा है.

ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट मैच तो पाकिस्तान भी हारा है. जिन दिनों मैं पाकिस्तानी टीम का हिस्सा था, हमारी टीम 3-0 से पिटी थी लेकिन हम खेल को कम-से-कम पांचवें दिन तक ले जा पाने में कामयाब रहे थे. पर्थ की हार तो कहीं से भी हजम नहीं हो पा रही.

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भारतीय टीम की हो रही आलोचना पूरी तरह जायज है. महेंद्र सिंह धोनी सीनियर खिलाड़ियों की क्रमशः विदाई की बात कर रहे हैं और पूरी दुनिया का भी कुछ ऐसा ही मानना है. अब सारा दारोमदार भारतीय चयनकर्ताओं पर है, जिन्हें कु छ बेहद साहसिक फैसले लेने होंगे. राहुल द्रविड़, वीवीएस लक्ष्मण और सचिन तेंडुलकर महान खिलाड़ी हैं लेकिन बीते दिनों की बहादुरी के बूते पर मैच थोड़े ही जीते जाते हैं. आपको सच स्वीकार करते हुए आगे बढ़ना होता है.

पर्थ और सिडनी में खेल की दशाओं ने एक बूढ़े हो रहे क्रिकेटर की शारीरिक अक्षमताओं को उजागर करके रख दिया. उमस भरा और सिला मौसम किसी को भी थका दे. और वाका पर तीन वरिष्ठ भारतीय बल्लेबाज पूरी तरह से थके नजर आए. लगातार दो दिन तक फील्डिंग करने के बाद उनका फुटवर्क काम नहीं कर रहा था और लहराती गेंदों को खेलने में उन्हें पसीने छूट रहे थे. 40 की ओर बढ़ते क्रिकेटर को कई ऐसे संकेत मिलने लगते हैं कि अब उसे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से किनारे हो लेना चाहिए.

धोनी की कप्तानी को लेकर भी सवाल हैं. मेरे हिसाब से वे वन डे के अच्छे कप्तान हैं लेकिन टेस्ट मैचों के लिए नहीं. विदेशी सरजमीं पर हो रही धुलाई ने उनके ''कूल'' कप्तान की कलई उतार दी है. युवा खिलाड़ियों को प्रेरित करने में उनकी नाकामी ने हम कमेंटेटर को चौंकाया है. विनय कुमार इसकी उम्दा मिसाल हैं. यह युवा गेंदबाज जब डेविड वार्नर के हाथों पिट रहा था तो कितनी बार धोनी ने उसे प्रोत्साहित किया? एक सचिन ही थे जो गेंदबाजों से बात कर रहे थे. भारत को माहौल जीवंत रखने की जरूरत थी. टीम की देहभाषा ही उदास और स्वार्थ भरी दिखने लगी थी. भारतीय क्रिकेट चिंताजनक दौर में है.

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टेस्ट कप्तान के रूप में धोनी के विकल्प के रूप में मैं किसी को देख नहीं पा रहा हूं. कोचिंग स्टाफ  भी कोई बहुत बढ़िया काम नहीं कर रहा है. मेरा मानना है कि डंकन फ्लेचर के बतौर कोच साल भर पूरे होने पर उनके काम की समीक्षा हो. एरिक सिमंस को भी गेंदबाजों पर और मेहनत करने की जरूरत है.

पर्थ किसी भी तेज गेंदबाज के लिए स्वर्ग माना जाता है. पर विनय कुमार को पहले ओवर में 120 किमी की रफ्तार से गेंद फेंकते देख मुझे निराशा हुई. लगा कि जैसे वे वार्मअप कर रहे हैं. क्या वे केरल के खिलाफ  रणजी मैच खेल रहे हैं? पहली गेंद फेंकने से पहले उन्हें वार्मअप कर लेना चाहिए था. सिमंस को यह सब देखना होगा. भारत को अब आगे की सोचनी होगी. वे वनडे मैचों पर ध्यान केंद्रित करें. वनडे में खेलने वाले खिलाड़ियों को एडिलेड में जांचने का बेहतर मौका होगा. रोहित शर्मा पर जरूर नजर डाली जानी चाहिए. सीनियर्स की विदाई शुरू कर दी जानी चाहिए.

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