निष्क्रिय जीवनशैली, शारीरिक व्यायाम का अभाव और खाने-पीने की खराब आदतें देश के लाखों शहरी लोगों के सामने हृदय रोग के खतरे उत्पन्न कर रही हैं. यह खुलासा मुंबई स्थित उपभोक्ता उत्पादों की एक प्रमुख कंपनी द्वारा किए गए एक अध्ययन में हुई है.
अपोलो अस्पताल के हृदयरोग विशेषज्ञ गिरीश बी. नवसुंदी ने मारिको लिमिटेड द्वारा देश के 12 शहरों में पिछले दो वित्त वर्षो (2010-12) में कराए गए ऑनलाइन सर्वेक्षण के हवाले से बताया कि देश का शहरी हिस्सा निष्क्रियता के कारण जीवनशैली की बीमारियों से संक्रामक बीमारियों की ओर अग्रसर हो रहा है.
नवसुंदी ने कहा कि शहरों की व्यस्त जीवनशैली के कारण अधिकतर भारतीय युवाओं में हृदय संबंधी बीमारियों, उच्च रक्तचाप और कैंसर की संभावनाएं बढ़ती जा रही हैं.
उन्होंने कहा कि शारीरिक श्रम का अभाव और भोजन में रेशेदार सामग्रियों की कमी हृदय और जीवन घातक बीमारियों के दो मुख्य कारण हैं.
नवसुंदी ने कहा कि लगभग 74 प्रतिशत शहरी भारतीय दिल के दौरे के खतरों का सामना कर रहे हैं. इसी तरह 30-34 वर्ष उम्र वर्ग के 75 प्रतिशत पुरुषों में कोरोनरी के लक्षण हैं, जबकि 57 प्रतिशत महिलाओं में ऐसे लक्षण हैं.
यह तस्वीर यह स्पष्ट करती है कि युवा श्रम शक्ति किस तरह इन बीमारियों का शिकार बन रही है.
इसके परिणामस्वरूप देश के शहरी हिस्सों की उत्पादकता में गिरावट आएगी और इसका दीर्घकाल में देश के विकास पर असर पड़ेगा.
'सफोला लाइफ स्टडी-2012' अमेरिका स्थित फ्रेमिंघम हृदय अध्ययन की तर्ज पर किया गया, जिसमें देश भर के 12 शहरों में 30 से 80 वर्ष उम्र वर्ग के 112,000 लोगों को शामिल किया गया.
महानगरों में बेंगलुरू उच्च कोलेस्ट्राल स्तर के मामले में, चेन्नई मधुमेह के मामले में, कोलकाता कैंसर के मामले में, अहमदाबाद एनीमिया के मामले में और दिल्ली मोटापा के मामले में शीर्ष पर हैं.