एक महिला को दशकों के संक्रमण के बाद पता चला कि उसके कान में एक खास तरह की बीमारी हो गई है. इस बीमारी को टर्की ईयर (Turkey Ear) कहते हैं. यह टीबी यानी ट्यूबरक्यूलोसिस (Tuberculosis) की वजह से होती है. नई बात ये है कि टीबी से सिर्फ फेफड़े में संक्रमण नहीं होता, ये त्वचा को भी संक्रमित कर सकती है. इसलिए इस 50 वर्षीय महिला का कान एपल जेली की तरह हो गया था. आइए जानते हैं इस बीमारी के बारे में...(सांकेतिक फोटोःगेटी)
महिला को त्वचा में ट्यूबरक्यूलोसिस का पता 50 की उम्र में चला. इसकी वजह से उसका कान कई दशकों से फूला हुआ था. आकार बड़ा हो गया था. इसमें कान का रंग एपल जेली (Apple Jelly) जैसा हो जाता है. त्वचा लाल, उबड़-खाबड़ और कठोर हो जाती है. JAMA डर्मेटोलॉजी पत्रिका में 3 मार्च को छपी रिपोर्ट के अनुसार- महिला के कान में संक्रमण उसके बचपन से ही शुरू हो गया था. ये समय के साथ बढ़ता गया. इसके बाद कान फूल कर भूरे-लाल रंग का हो गया. (फोटोःगेटी)
2013 में इंफेक्शंस डिजीज इन क्लीनिकल प्रैक्टिस मैगजीन में छपी रिपोर्ट के अनुसार एपल जैली उभरे हुए नोड्यूल को बताता है, जो छूने पर चिपचिपे लगते है. महिला मानती है कि वो घाव उसको बचपन से ही था लेकिन धीरे-धीरे बढ़ता चला गया. कान से बदबूदार तरल पदार्थ लीक होने लगा. (फोटोःगेटी)
महिला सबसे पहले 2008 में टर्की ईयर बीमारी का इलाज कराने क्लिनिक गई थी. वहां उसका चार एंटीबॉयोटिक के साथ 2 महीने तक इलाज किया गया. इसके बाद उपचार को अगले 7 महीने और किया गया. लेकिन 2 एंटीबॉयोटिक बंद कर दिए गए. महिला के कान का संक्रमण उपचार के साथ सुधर रहा था लेकिन महिला ने ट्रीटमेंट 2020 तक जारी नही रखा. अगर इलाज पूरा करती तो संक्रमण सही हो जाता. फूला हुआ कान सिकुड़ जाता. कान पर सिर्फ एक निशान बचता. (फोटोःगेटी)
त्वचा में ट्यूबरक्लोसिस का संक्रमण उस बैक्टीरिया से होता है जिस बैक्टीरिया से लंग्स में इंफेक्शन होता है. इस बैक्टीरिया को माइक्रो बैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस कहते है. 2012 में इंडियन जर्नल ऑफ डर्मेटोलॉजी की रिपोर्ट के अनुसार इस बैक्टीरिया द्वारा त्वचा को संक्रमित करना थोड़ा दुर्लभ है. (फोटोःगेटी)
विशेष रूप से टर्की कान वाली महिला को लुपस वुल्गैरिस रोग से डायग्नोस किया गया था. इसमें एम. ट्यूबरक्लोसिस का इंफेक्शन त्वचा में धीर-धीरे बढ़ता है. कई वर्षों तक इसका रंग और बनावट बदलता रहता है. संक्रमण आमतौर पर तब होता है जब एम. ट्यूबरक्लोसिस ब्लड या लिम्फेटिक सिस्टम से होकर त्वचा से शरीर के किसी दूसरे भाग में चला जाता है. (फोटोःगेटी)
बहुत कम ही ऐसी स्थिति होती है जब BCG वैक्सीन लगने के बाद ये इंफेक्शन हो. 2016 में केस रिपोर्ट इन डर्मेटोलॉजी की रिपोर्ट के अनुसार इन वैक्सीन में से प्रत्येक 1 मिलियन में से 5 को ये कॉम्प्लिकेशन होता है. (फोटोःगेटी)
सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल के अनुसार BCG वैक्सीन का यूनाइटेड स्टेट में व्यापक रूप से उपयोग नही होता. इसलिए ऐसे मामले सामने आते हैं. आमतौर पर ऐसी बीमारियों से बचाने के लिए बीसीजी का टीका बच्चों को दिया जाता है. सामान्य तौर पर त्वचा में ट्यूबरक्लोसिस पहले के दशकों की तुलना में कम हो गया है. लेकिन ये अब भी व्याप्त है. (फोटोःगेटी)