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लेह में सड़कों पर साष्टांग दंडवत होकर क्यों यात्रा करते हैं लोग, पापों से मिलती है मुक्ति!

साष्टांग दंडवत
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भारत में लेह को सबसे बर्फीले और सीमा से सटे ठंडे शहर के तौर पर जाना जाता है. लेकिन क्या आपको पता है वहां लोग एक त्योहार ऐसा भी मनाते हैं जिसको लेकर उनकी मान्यता है कि इससे सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और तन-मन पूरी तरह शुद्ध हो जाता है. इसके लिए बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग साष्टांग दंडवत होते हुए सड़कों पर कई किलोमीटर तक चलते हैं. इसे गोचक यात्रा के नाम से जाना जाता है.

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लेह में शनिवार को इसी गोचक शोभायात्रा की शुरुआत हुई जिसमें बच्चों, महिलाओं, वृद्धों समेत बड़ी संख्या में लोगों ने हिस्सा लिया. इसे बौद्ध धर्म का अहम हिस्सा माना जाता है. यात्रा के दौरान इसमें शामिल लोग साष्टांग दंडवत होकर आगे बढ़ते हैं और मंत्रों का उच्चारण करते हैं.

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तिब्बती बौद्ध परंपरा के अनुसार बौद्ध कैलेंडर के पहले महीने में 14वें और 15वें दिन इसका आयोजन किया जाता है. इस दौरान लेह में गोचक शोभायात्रा निकलती है. यह यात्रा लेह गेट के पास चटसलगेंग से शुरू होकर नाग्याल होत हुए दो दिन में फिर वापस लेट गेट पर आकर खत्म होती है.

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इस यात्रा में हिस्सा लेने वाले लोग उस दौरान मांसाहार भोजन, शराब और अन्य नशीले पदार्थों से दूर रहते हैं. कुछ लोग इस दौरान उपवास भी रखते हैं वहीं कुछ लोग इस दौरान मौन व्रत भी रखते हैं ताकि वो ईश्वर पर अपना ध्यान लगा सकें. इस दौरान लोग परोपकार के कामों में बढ़कर हिस्सा लेते हैं.

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लेह में ऐसा माना जाता है कि जो लोग इस गोचक यात्रा में हिस्सा लेते हैं उनके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और शरीर, वाणी और मन में शुद्धता आती है.

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