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कोरोना वैक्सीन से पहले फाइजर ने खोजी थी वियाग्रा, बेहद दिलचस्प है किस्सा

प्रतीकात्मक तस्वीर
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फाइजर और बायोएनटेक नाम की कंपनी को कोरोना वैक्सीन की मंजूरी मिल चुकी है. इस कंपनी ने ऐलान किया था कि वो लैब में कोरोना की ऐसी वैक्सीन बनाने में सफल हुई है, जो कि वायरस के सामने 96% असरदार है. कोरोना की वैक्सीन से 22 साल पहले भी फाइजर कंपनी काफी सुर्खियों में आई थी जब इस कंपनी ने अनजाने में वियाग्रा की खोज कर दी थी. 

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इरेक्टाइल डिस्फंक्शन यानी नपुंसकता की समस्या से गुजर रहे लोगों के लिए वियाग्रा एक बेहद असरदार दवा साबित हुई है. पिछले 22 सालों में इस दवा का इस्तेमाल करोड़ों लोग कर चुके हैं और भारत, अमेरिका, कनाडा समेत दुनिया के कई देशों में इसका इस्तेमाल किया जाता है. इस दवा की खोज भी काफी दिलचस्प रही है. 

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वियाग्रा में सिल्डेनाफील नाम का कंपाउंड होता है जिसे हाई ब्लड प्रेशर और दिल की बीमारी के चलते होने वाले सीने में दर्द की ट्रीटमेंट के लिए डेवलप किया गया था. जानवरों के अंदर ये कंपाउंड एक खास तरह के प्रोटीन पीडीई-5 को ब्लॉक कर पा रहा था जिससे ये दिल की रक्त वाहिकाओं को बढ़ाने में कामयाब हो रहा था और इसके कोई साइड इफेक्ट्स भी सामने नहीं आए थे.

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इसके बाद फाइजर ने दिल से जुड़ी समस्याओं और हाई ब्लड प्रेशर की ट्रीटमेंट के लिए इस ड्रग के ट्रायल्स 1990 के शुरुआती दौर में इंसानों पर शुरू किए. उस दौर में जॉन ला मैटिना फाइजर कंपनी के रिसर्च और डेवलपमेंट टीम के हेड थे. उन्होंने बताया था कि एक नर्स इस ट्रायल के दौरान ध्यान से मरीजों को नोटिस कर रही थी कि ये मरीज इस ट्रायल के दौरान पेट के बल लेटे हुए थे, काफी अनकंफर्टेबल फील कर रहे थे और शर्मिंदा भी हो रहे थे.

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इस नर्स ने ये जानकारी डॉक्टर्स को दी. इसके बाद रिसर्चर्स और डॉक्टर्स को एहसास हुआ कि ये ड्रग दिल की बीमारी और हाई ब्लड प्रेशर से ज्यादा नपुंसकता की समस्या से निपटने में कारगर हो रही थी.  इसके बाद साल 1998 में अमेरिका की एफडीए ने इरेक्टाइल डिस्फंक्शन के लिए इस ड्रग को मान्यता दे दी और आज के दौर में ये दवा दुनिया की सबसे लोकप्रिय मेडिसिन के तौर पर शुमार की जाती है.  

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इस नर्स की सतर्कता के चलते ही वियाग्रा की खोज हो पाई थी. हालांकि ऐसा पहली बार नहीं है जब रिसर्चर्स और डॉक्टर्स ने किसी और मकसद से ट्रायल्स शुरू किए हो लेकिन वो ड्रग किसी दूसरी चीज के लिए कारगर साबित हुई हो.

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साल 1943 में डॉक्टर एल्बर्ट हॉफमैन सांस लेने संबंधी किसी दवा की खोज कर रहे थे लेकिन उन्होंने गलती से एलएसडी की खोज कर डाली थी. उन्होंने गलती से इस ड्रग को थोड़ा टेस्ट कर लिया था और फिर वे अपनी साइकिल पर घर जा रहे थे और उन्हें हैलुशिनेशन्स और आम दुनिया से बेहद अलग एक अलौकिक चेतना का एहसास हुआ था. इस ड्रग ने आगे चलकर पश्चिमी देशों में काउंटर कल्चर मूवमेंट, यूथ मूवमेंट और साइकेडेलिक कल्चर की नींव रखी. 
 

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