कुछ ही महीने पहले की बात है जब कोरोना वायरस को लेकर इटली सबकी नजरों में आ गया था. चीन के बाद कोरोना वायरस से बुरी तरह जूझने वाले शुरुआती देशों में इटली भी एक था. रोज कोरोना के मरीज बेतहाशा बढ़ रहे थे और हॉस्पिटल में बेड की कमी पड़ रही थी. डॉक्टरों को ये तय करना पड़ रहा था कि किस मरीज को बचाएं और किसे उस वक्त छोड़ दें. लेकिन अब हालात बदल गए हैं. इंटरनेशनल मीडिया में इटली की तारीफ हो रही है. (फोटो- लॉकडाउन की वजह से शादियां रद्द होने पर रोम में विरोध जतातीं युवतियां)
कुछ ही महीने पहले यानी मार्च और अप्रैल में इटली को यूरोप में कोरोना का केंद्र कहा जाने लगा था. लेकिन अब इटली के कोरोना अस्पताल खाली हो चुके हैं. बीते कई हफ्ते से रोज आने वाले नए केस की संख्या 150 से 400 के बीच हो गई है. वहीं, रोज होने वाली मौतों का आंकड़ा 20 से भी कम हो गया है. जबकि बीते कुछ दिनों से अमेरिका, ब्राजील और भारत में रोज काफी अधिक मामले सामने आ रहे हैं. इन देशों में कई रोज नए केस का आंकड़ा 50 हजार को भी पार कर जा रहा है. अमेरिका में रोज औसतन एक हजार मरीजों को मौतें हो रही हैं.
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, इटली के अस्पताल कोरोना मरीजों से खाली हो चुके हैं. रोज आने वाले नए मामलों की संख्या यूरोप के किसी भी अन्य देश से कम है. हालांकि, इटली के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के संक्रामक रोग विशेषज्ञ गिओवान्नी रेज्जा कहते हैं कि हम काफी सावधान हैं.
इटली का सबक ये है कि केस बेहद कम होने के बाद भी देश पूरी तरह सतर्क है.
इटली के प्रमुख स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना हैं कि अब भी खतरा मंडरा रहा
है और हालात से संतुष्ट होकर बैठना महामारी को इंधन देने जैसा है. वे इस
बात को पूरी तरह समझ रहे हैं कि तस्वीर किसी भी वक्त बदल सकती है.
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि इटली कोरोना के गढ़ से बदलकर अब एक मॉडल (हालांकि दोष युक्त) बन गया है. इसलिए इटली के सबक अन्य देशों के लिए उपयोगी हो सकते हैं. इटली के बेहतर होने के पीछे कड़े लॉकडाउन को भी काफी अहम समझा जा रहा है जहां लोगों के एक जगह से दूसरी जगह जाने पर सख्त पाबंदी लगाई गई थी.
कड़े लॉकडाउन के साथ-साथ तकलीफ झेलने के दौरान ही मेडिकल इंडस्ट्री ने हालात से सबक भी सीखा. वहीं, इटली की सरकार ने वैज्ञानिक और तकनीकी कमेटी की सिफारिशों के आधार पर फैसले लिए. स्थानीय डॉक्टर, अस्पताल, स्वास्थ्य अधिकारी रोज 20 इंडिकेटर पर इलाके के हालात की जानकारी जुटाते हैं और उसे क्षेत्रीय केंद्रों पर भेजते हैं. फिर आंकड़े नेशनल इस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के पास आता है. इन आंकड़ों के आधार पर तैयार किए गए रिजल्ट को देश के स्वास्थ्य का साप्ताहिक एक्स-रे कहा जाता है.
वहीं, इटली की संसद ने प्रधानमंत्री गिउसेप्पे कोन्टे को 15 अक्टूबर तक के लिए आपातकालीन शक्ति दे दी है ताकि देश कमजोर न पड़े क्योंकि वायरस अब भी मौजूद है. इस शक्ति की वजह से सरकार कम समय में फैसले ले सकती है और जरूरत पड़ने पर पाबंदियां लगा सकती है. इटली ने पहले ही एक दर्जन से अधिक देशों पर ट्रैवल बैन लगा दिया है.
वहीं, WHO एक्सपर्ट रनीरी गुएरा कहते हैं कि शुरुआती दौर में कॉम्पीटिशन था. पड़ोसी देशों से सहयोग नहीं मिल रहा था. हर कोई मानता है कि इटली को अकेला छोड़ दिया गया था. तब मास्क और वेंटिलेटर की सप्लाई भी नहीं हो रही थी. इसका असर ये हुआ कि इटली ने अकेले दम पर वह सबकुछ किया जो जरूरी था. यह अन्य देशों से अधिक प्रभावी साबित हुआ.
बता दें कि कोरोना से इटली में 35,166 लोगों की मौतें हुई हैं और कुल 2.48 लाख केस अब तक सामने आए हैं.