एक तरफ लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर तनाव बना हुआ है वहीं दूसरी तरफ दक्षिण चीन सागर में भी चीन दादागीरी करने पर उतर आया है. चीन की ऐसी शातिराना चाल पर भारत ने जवाब देना शुरू कर दिया है. पूरी दुनिया अब चीन की भद्दी कूटनीति और धोखेबाजी के सामरिक खेल को समझ चुकी है.
चीन पर निशाना साधते हुए अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने कहा, 'हम एक तरफ दुनिया के सबसे लोकप्रिय और लोकतांत्रिक देश भारत को देखते हैं वहीं दूसरी तरफ चीन दक्षिण चीन सागर का सैन्यीकरण करता है और अवैध रूप से वहां के इलाकों पर अपना दावा करता है. इससे महत्वपूर्ण समुद्री गलियारों को खतरा है और उसने एक वादे को फिर से तोड़ा है.'
जिस दक्षिण चीन सागर में चीन अपनी दादागीरी दिखाता रहा है, अब उसे वहीं पर घेरने के लिए भारत- ऑस्ट्रेलिया-अमेरिका और जापान की चौकड़ी ने समुद्री चक्रव्यूह तैयार कर लिया है.
रणनीतिक तौर पर दक्षिण चीन सागर भारत के लिए काफी अहम है क्योंकि भारत के व्यापार के लिए ये पारंपरिक रूट रहा है. दूसरी तरफ चीन की विस्तारवादी नीति से उसके पड़ोसी मुल्क भी बेहद परेशान हैं.
चीन एयर डिफेंस आइडेंटिफिकेशन जोन बनाने जा रहा है जिसमें वो जबरन ताइवान और वियतनाम के नियंत्रण वाले द्वीपों को भी शामिल करने जा रहा है. चीन इस जोन के अंदर प्रतास, पार्सेल और स्पार्टले द्वीप समूह को भी शामिल कर रहा है. इन द्वीपों को लेकर उसका ताइवान, वियतनाम और मलेशिया से विवाद चल रहा है. चीन से परेशान इस देशों की दोस्ती भारत से बढ़ी है जिससे चीन को मिर्ची लगी हुई है.
इतना ही नहीं अगर आप दुनिया के तमाम देशों की सूची देखें तो भारत के पक्ष में कई देश खड़े मिलेंगे. 1998 में भारत के परमाणु विस्फोट के समय फ्रांस ने भारत का साथ दिया. 1971 और करगिल युद्ध में इजरायल भारत के साथ रहा. 1962 के चीनी युद्ध के समय ऑस्ट्रेलिया ने भारत का समर्थन किया था. यूरोप में जर्मनी से ब्रिटेन तक भारत के साथ हैं.
अमेरिका हर कदम पर भारत का साथ देने की बात करता है और रूस से दोस्ती की नई इबारत लिखने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह खुद वहां गए हैं. दूसरी तरफ चीन के साथ बस दो देश दिखते हैं- एक पाकिस्तान और दूसरा उत्तर कोरिया और दोनों का कोई अंतर्राष्ट्रीय पहचान और वजूद नहीं है.