लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन के किसी भी साजिश का जवाब देने के लिए सीमा पर हर तरह की मजबूती ज़रूरी है. इसी के तहत भारत लेह-लद्दाख के इन दुर्गम चोटियों तक इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत बनाने में जुटा हुआ है. (इनपुट- मनजीत नेगी)
हिमाचल से लेह को जोड़ने वाली नई सड़क से चीन हैरान होगा क्योंकि ये वो सड़क है जिसका इस्तेमाल सेना साल में कभी भी कर सकती है और इसपर आसानी से हमला भी नहीं किया जा सकता है. दारचा-पदम से नीमो तक की सड़क कोई आम रास्ता नहीं है बल्कि ये चीन की साज़िशों के खिलाफ भारत का ब्रह्मास्त्र है.
चीन खुद तो LAC के बिल्कुल करीब सड़क बना रहा है लेकिन उसे भारत के सड़क बनाने पर आपत्ति है.चीन की ये नीयत उसकी जमीन हड़पने की साजिश की पोल खोलती है. लेकिन अब सब बदल रहा है. श्रीनगर लेह मार्ग के अलावा अब दो-दो रास्ते चीन की साजिशों पर पानी फेरने के लिए तैयार हो रहे हैं. चीन सीमा पर चल रहे तनाव के बीच, सीमा सड़क संगठन ने लेह और करगिल को जोड़ने वाली तीसरी सड़क का काम लगभग पूरा कर लिया है.
दारचा-पदम-नीमो सड़क हिमाचल प्रदेश की लाहौल घाटी के दारचा को कारगिल जिले के जंस्कार के पदम इलाके को जोड़ेगी. दारचा से पदम की दूरी करीब 148 किलोमीटर है. पदम के बाद ये सड़क नीमो के रास्ते लेह मार्ग से जुड़ जाएगी.
नीमो-पदम-दारचा रोड हर मौसम के लिए तैयार किया जा रहा है. साल के 365 दिन सेना के वाहन कभी भी लेह लद्दाख तक इस रास्ते का इस्तेमाल कर सकते हैं. यानी किसी भी समय भारतीय सेना हिमाचल के दारचा से लेह और कारगिल तक पहुंच सकती है.
बीआरओ के मुताबिक सड़क का 90 फीसदी काम पूरा हो गया है. इस सड़क के पूरी तरह से एक्टिव होने पर सेना का समय भी बचेगा. पहले पुरानी सड़क से मनाली से लेह पहुंचने में लगभग 12-14 घंटे लगते थे, लेकिन इससे अब 6-7 घंटे ही लगेंगे.
इस रास्ते की एक खास बात ये है कि ये LAC के बिल्कुल करीब ना होने की वजह से ये चीन और पाकिस्तान की पहुंच से दूर है और सेना यहां बिना किसी जोखिम के आवाजाही कर सकती है. सेना का साजोसामान कारगिल और लेह तक पहुंचाना आसान हो जाएगा.
नीमो-पदम-दारचा रोड में निर्माण का कार्य पूरा हो गया है. 258 किलोमीटर के इस महत्वाकांक्षी सड़क प्रोजेक्ट की निगरानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद कर रहे हैं. सामरिक महत्व वाले रास्ते पर दर्जनों छोटे और बड़े पुल का निर्माण किया गया है. यहां अटल टनल की तर्ज पर एक और बड़ा टनल बनाने की तैयारी की जा रही है.
16000 फीट की ऊंचाई पर शिकुला टॉप के पास सड़क निर्माण की चुनौतियों का सामना करते अफसरों और मजदूरों को हमने देखा- इतनी ऊंचाई पर पहाड़ कांटना बेहद मुश्किलभरा काम होता है. भारी मशीनों के साथ मजदूर दिन रात काम में जुटे हैं- समय कम है और काम ज्यादा.हालांकि यहां सड़क के लिए पहाड़ काटना ही मुसीबत का अंत नहीं है.