कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने को लेकर तमाम अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के हाथों करारी हार और पाकिस्तान की बदहाल आर्थिक व्यवस्था के बीच इमरान खान अपने ही देश में बुरी तरह घिरते जा रहे हैं. पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार हामिद मीर भी मानने लगे हैं कि सिर्फ घरेलू समस्याओं से आम जनता का ध्यान भटकाने के लिए इमरान खान कश्मीर मामले को हवा देने में जुटे हैं और अब उनकी सरकार खतरे में है.
पाकिस्तानी पत्रकार हामिद मीर ने एक भारतीय अखबार के लिए लिखे गए अपने लेख में कहा है कि इमरान के लिए आने वाले दो महीने बेहद कठिन होने वाले हैं जहां उन्हें अपनी सरकार बचाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ सकता है.
हामिद मीर ने कहा है कि देश की खराब आर्थिक हालत और घरेलू समस्याओं से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए इमरान खान लगातार कश्मीर को लेकर पीएम मोदी के खिलाफ बड़े-बड़े बयान दे रहे हैं. मीर ने बताया कि संदिग्ध चंदे को लेकर चुनाव आयोग कभी भी इमरान की पार्टी के चुनाव को अमान्य करार दे सकता है.
लेख में हामिद मीर ने इमरान की सरकार गिरने की संभावनाओं का कारण बताते हुए लिखा है कि इमरान खान की पाकिस्तान में कश्मीर सेलर के रूप में भारी आलोचना हो रही है. इतना ही नहीं वो बलूचिस्तान नेशनल पार्टी की मदद से पाकिस्तान में सरकार चला रहे हैं और अब वो पार्टी 5000 लापता लोगों की रिहाई के लिए इमरान खान पर दबाव बना रही है. इसके जवाब में इमरान 500 लोगों को भी नहीं ढूंढ पाए हैं.
लापता हुए लोगों को नहीं ढूंढ पाने की वजह से बलूचिस्तान में जमियत ए उलेमा (जेयूआई) इस्लाम की सहयोगी बीएनपी इमरान सरकार से अपना समर्थन वापस ले सकती है. इस बात का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि बीएनपी के प्रमुख मौलाना फजलुर रहमान ने अक्टूबर 2019 में इमरान खान के खिलाफ मार्च निकालने की घोषणा की है और इस दौरान वो जेल में बंद पूर्व प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता नवाज शरीफ से भी मिले हैं. बीएनपी के बंद को शरीफ की पार्टी भी समर्थन दे रही है.
वहीं इमरान खान के लिए दूसरी सबसे बड़ी मुसीबत पाकिस्तानी फौज का साथ छोड़ देना भी है. इमरान खान की बढ़ती मुश्किलों और देश में खराब होती छवि की वजह से अब फौजी नेतृत्व (पाकिस्तान सेना) ने भी इमरान को खुलेआम समर्थन देना बंद कर दिया है और उनसे किनारा कर लिया है.
अफगानिस्तान को लेकर पाकिस्तानी पीएम इमरान खान का तालिबान से अमेरिका का समझौता नहीं करा पाना भी उनकी सरकार गिरने का एक बड़ा कारण बन सकता है. अमेरिका और पाकिस्तान दोनों को उम्मीद थी कि अगस्त के दूसरे हफ्ते में तालिबान से समझौता हो जाएगा लेकिन सारी प्लानिंग नाकाम हो गई और तालिबान ने आखिरकार शांतिवार्ता को ध्वस्त कर दिया.