6 अगस्त 1945 — मानव इतिहास का वह काला दिन, जब अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा पर दुनिया का पहला परमाणु बम गिराया. तीन दिन बाद नागासाकी पर दूसरा हमला हुआ. दोनों शहर लगभग पूरी तरह तबाह हो गए. पल भर में डेढ़ लाख से ज्यादा लोग मारे गए, लेकिन इस तबाही की भयावहता यहीं नहीं रुकी.इसके ज़हरीले निशान आने वाले दशकों तक इंसानों को निगलते रहे. इतिहास में इंसान का इंसान पर किया गया यह सबसे बड़ा और निर्मम अपराध था, जिसका जिम्मेदार अमेरिका था.( Image Credit-AFP)
'फैट मैन' और 'लिटिल बॉय' - ये थे वो दो परमाणु बम, जिन्हें अमेरिका ने तैयार किया था और जिन्होंने इंसानी इतिहास की सबसे भयावह तबाही को अंजाम दिया. इन्हें बनाने वाले वैज्ञानिक रॉबर्ट ओपेनहाइमर ने बम गिरने के बाद कहा था कि मेरे हाथ खून से सने हैं.
हिरोशिमा पर विस्फोट इतना भीषण था कि महज एक मिनट में शहर का 80 प्रतिशत हिस्सा राख में बदल गया, जो लोग बच भी गए, उन्हें विकिरण की जहरीली लहरों और 'काली बारिश' ने अपनी चपेट में ले लिया. बाद में हजारों लोग कैंसर, ल्यूकीमिया और अन्य भयानक बीमारियों का शिकार हुए.
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जो इस परमाणु तूफान में जिंदा रह गए, उनकी जिंदगी भी किसी सजा से कम नहीं थी. ये लोग 'हिबाकुशा' कहलाते हैं. जापानी भाषा का एक शब्द, जिसका अर्थ है 'विस्फोट से प्रभावित व्यक्ति'.हिबाकुशा ना सिर्फ पीढ़ी दर पीढ़ी विकिरण जनित बीमारियों से जूझते रहे, बल्कि समाज के तिरस्कार के शिकार भी बने, उन्हें बीमारी का सोर्स माना गया.बीबीसी की एक रिपोर्ट बताती है कि आज भी जापान में कई लोग हिबाकुशा से विवाह करने से कतराते हैं. उन्हें सामाजिक रूप से अलग-थलग कर दिया गया.
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BBC की एक डॉक्यूमेंट्री में 86 वर्षीय मिचिको कोडमा का इंटरव्यू है. एक 'हिबाकुशा', जिन्होंने हिरोशिमा पर परमाणु बम गिरने की त्रासदी खुद अपनी आंखों से देखी और सही है.मिचिको कहती हैं कि जब मैं आज दुनिया में चल रहे जंग के बारे में सोचती हूं.मेरा शरीर कांप उठता है... और आंखों से आंसू छलक पड़ते हैं. हम परमाणु बमबारी के उस नरक को दोबारा नहीं दोहरा सकते. मुझे संकट का एहसास हो रहा है.
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बीबीसी की रिपोर्ट में एक हिबाकुशा का बयान है, जो उस दिन की दर्दनाक लम्हे को आज भी नहीं भूल पाए हैं. वे कहते हैं कि जो कुछ भी मैंने देखा... वो किसी नरक से कम नहीं थाॉ. लोग हमारी ओर भाग रहे थे, उनके शरीर पिघल रहे थे, मांस लटक रहा था. बुरी तरह झुलसे हुए लोग दर्द से कराह रहे थे. उनकी चीखें अब भी मेरे कानों में गूंजती हैं.
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1980 में, वैज्ञानिकों ने 'न्यूक्लियर विंटर थ्योरी' पेश की, जिसमें परमाणु युद्ध के प्रभाव का विश्लेषण किया गया था. यह थ्योरी हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए परमाणु हमलों के नतीजों को देखते हुए विकसित की गई थी. इस थ्योरी के मुताबिर, किसी भी स्तर का परमाणु युद्ध वैश्विक तापमान को प्रभावित करेगा, जिससे धरती का औसत तापमान 10 सालों में 10 डिग्री सेल्सियस तक गिर सकता है. इससे सूरज की रोशनी धरती तक नहीं पहुंचेगी, जिससे पौधे मुरझा जाएंगे और वैश्विक खाद्य उत्पादन बुरी तरह प्रभावित होगा, जिससे भुखमरी और खाद्य संकट आ जाएगा.
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Science Alert की रिपोर्ट के मुताबिक, अगर रूस और अमेरिका के बीच परमाणु युद्ध हुआ, तो न केवल न्यूक्लियर विंटर आएगा, बल्कि समुद्र का तापमान भी गिर जाएगा. यानी धरती एक 'न्यूक्लियर आइस एज' में प्रवेश कर सकती है, जो हजारों सालों तक चल सकती है. वर्तमान में दुनिया के 9 देशों के पास परमाणु हथियार हैं-विशेषज्ञों का मानना है कि अगर भारत और पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध होता है, तो लगभग 13 करोड़ लोगों की तत्काल मौत हो सकती है. जंग के दो साल बाद तक करीब 2.5 अरब लोग भुखमरी के शिकार हो सकते हैं.
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