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फुटबॉल स‍िलने पर रोज म‍िलते हैं 25 रुपये, शरणार्थ‍ियों की ज‍िंदगी का सच

फुटबॉल स‍िलने पर रोज म‍िलते हैं 25 रुपये, शरणार्थ‍ियों की ज‍िंदगी का सच
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बरसों से नागरिकता मिलने की आस में भारत में रह रहे  शरणार्थी मुश्किल से अपने परिवार पाल रहे हैं. वह किस हाल में है, उनकी क्या तकलीफें हैं और कौन सी चुनौतियां हैं, इसको जानने के लिए आजतक की टीम ने जालंधर के कुछ हिंदू-सिख शरणार्थी परिवारों से बातचीत की.

भारत- पाकिस्तान सीमा से सटे होने के कारण पाकिस्तान  से आए कई हिंदू और सिख परिवार पंजाब के कई हिस्सों में रह रहे हैं. इन परिवारों में ज्यादातर लोग हिंदू हैं जो कई सालों से जालंधर, पठानकोट, अमृतसर और खन्ना में रह रहे हैं.
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पंजाब में रह रहे ज्यादातर पाकिस्तानी शरणार्थी पिछले 20 सालों के दौरान धीरे-धीरे करके पाकिस्तान छोड़कर आए हैं. ज्यादातर लोग धार्मिक प्रताड़ना और अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचारों से तंग आकर अपना वतन छोड़ने पर मजबूर हुए.

भले ही यह लोग हिंदू, सिख या ईसाई हों लेकिन उन पर पाकिस्तानी नागरिकता का ठप्पा लगे होने के कारण शक की नजर से देखा जाता है. भारतीय नागरिकता के अभाव में इन लोगों को न तो आसानी से रहने को घर मिलता है और न कोई काम-धंधा. नौकरी मिलना तो दूर की बात है. बच्चों को स्कूल-कॉलेज भेजना भी मुश्किल है.
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गुजर-बसर करने के लिए यह लोग छोटे-मोटे काम धंधे करते हैं. जिसमें सड़क पर फल-सब्जी बेचना या फिर मेहनत-मजदूरी. जालंधर के कई हिस्सों में इस वक्त 350 शरणार्थी हैं जिनमें से अधिकतर हिंदू हैं. वहीं, अमृतसर में भी पाकिस्तानी हिन्दू-सिखों के 30 परिवार रहते हैं. पठानकोट और खन्ना में भी कुछ शरणार्थी  परिवार शरण लिए हुए हैं.
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38 साल के राजेश कुमार पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा राज्य के औरकज़ाई जिला से ताल्लुक रखते हैं. वह साल 2007 में पत्नी रामलीला और तीन बच्चों के साथ भारत आ गए और जालंधर में रहने लगे. राजेश के 6 भाई आज भी पाक‍िस्तान के औरकज़ाई में रहते हैं. राजेश रोजी-रोटी कमाने के लिए गली-गली जाकर सब्जियां बेचते हैं. एक महीने में वह मुश्किल से 10 हजार रुपये कमा पाते हैं जिसमें से 5 हजार तो घर के किराये पर ही खर्च हो जाते हैं.
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इनके तीनों बच्चे स्कूल में पढ़ रहे हैं और पत्नी स्थानीय गुरुद्वारे में काम करती हैं. बदले में उनको खाना मिल जाता है. बहुत कम पैसों में यह परिवार जीवनयापन करने को मजबूर है. भारत में रहने के लिए राजेश को अपने तीन बच्चों और पत्नी सहित खुद के वीजा रिन्यूअल पर हर साल लगभग 5 हजार रुपये खर्च करने पड़ते हैं. अब तक वीजा रिन्यूअल पर वह हजारों रुपए खर्च कर चुके हैं.

इस परिवार को उम्मीद है कि अब नागरिकता संबंधी कानून पास होने के बाद उनको भारतीय नागरिकता मिल जाएगी. बड़ी बेटी हिना 12वीं में पढ़ती है और जल्द ही नौकरी करना चाहती है ताकि अपने पिता का हाथ बंटा सके, लेकिन नागरिकता का अधिकार न होने के कारण यह शायद ही संभव हो.
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52 साल की कमला अपने परिवार के साथ जालंधर के एक मोहल्ले में रहती हैं. वह साल 2006 में अपने 4 बच्चों और पति काला राम के साथ सियालकोट छोड़कर भारत आ गई थी क्योंकि वहां पर जीना मुश्किल हो गया था. पिछले 13 सालों के दौरान वह फुटबॉल सिल कर परिवार पाल रही हैं. उनको ठीक से आंखों से दिखाई नहीं देता. चश्मा लगने के बावजूद भी मोटी सुई में धागा डालना आसान नहीं है. उनको एक फुटबॉल सिलने के सिर्फ 6 रुपये मिलते हैं और वह दिन में तीन-चार फुटबॉल सिल कर 24-25 रुपये कमा पाती हैं.
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उनकी ननद चंदा उनसे पहले अपने परिवार के साथ साल 2001 में भारत आ गई थी. चंदा हर रोज 4 से 5  फुटबॉल सिल लेती हैं और बदले में उनको मिलते हैं 30 रुपये क्योंकि उनके पास नागरिकता नहीं है इसलिए उनको नौकरी नहीं मिलती. इसलिए यह तकलीफ भरा काम करने पर मजबूर हैं. सुई से हाथ की उंगलियां छिल जाती हैं और कई बार जख्मी भी हो जाती हैं.

चंदा और कमला का परिवार बेहद कठिन परिस्थितियों में गुजर-बसर कर रहा है. उनको उम्मीद है कि उनको भारतीय नागरिकता मिलने के बाद जीवन कुछ सरल हो जाएगा.
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एक तरफ नागरिकता का कानून पास होने के बाद पंजाब में रह रहे हिंदू सिख शरणार्थियों के चेहरों पर मुस्कान है. वहीं, पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के उस बयान के बाद मायूसी भी जिसमें उन्होंने कहा था कि वह पंजाब में नागरिकता संशोधन कानून को लागू नहीं होने देंगे. पंजाब में रह रहे हिंदू सिख शरणार्थियों ने कैप्टन अमरिंदर सिंह से अपील की है कि वह नागरिकता संशोधन कानून को राज्य में लागू करें क्योंकि उन्होंने इस कानून को लागू होने के लिए कई दशक इंतजार किया है.
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