भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं में शीतला माता (Sheetala Mata) का विशेष स्थान है. उन्हें रोगों से रक्षा करने वाली देवी माना जाता है. विशेष रूप से चेचक (Smallpox), खसरा, चिकनपॉक्स जैसे संक्रामक रोगों से बचाव के लिए लोग शीतला माता की पूजा करते हैं.
उनकी आराधना मुख्य रूप से होली के बाद आने वाले सप्ताह में की जाती है, जिसे शीतला सप्तमी या शीतला अष्टमी कहा जाता है. शीतला माता को माता पार्वती का ही रूप माना गया है. संस्कृत शब्द “शीतला” का अर्थ होता है - “शीतलता देने वाली.”
माना जाता है कि वे रोग, ताप और बुखार को शांत करने वाली देवी हैं.
पुराणों में उनका उल्लेख “स्कंद पुराण” के शीतला माता माहात्म्य नामक अध्याय में मिलता है, जिसमें कहा गया है कि- “माता शीतला उस अग्नि को ठंडक देती हैं जो रोग रूप में शरीर को जलाती है.”
शीतला माता को एक गधे पर सवार देवी के रूप में दर्शाया गया है. उनके एक हाथ में झाड़ू, दूसरे में नीम की पत्तियां, तीसरे में कलश, और चौथे हाथ में कटोरा होता है. यह प्रतीकात्मक रूप से दर्शाता है कि वे नीम से रोगों का नाश करती हैं, झाड़ू से गंदगी हटाती हैं (स्वच्छता का संदेश), कटोरे में ठंडा जल रखकर शरीर की तपिश और रोग शांत करती हैं.
शीतला माता की पूजा होली के आठवें दिन यानी शीतला अष्टमी को की जाती है. कुछ स्थानों पर इसे सप्तमी या अष्टमी तिथि को मनाया जाता है. यह तिथि चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में आती है.
उत्तर भारत में इसे “बसोड़ा” या “बसरों” के नाम से भी जाना जाता है.
इस दिन एक अनोखी परंपरा है. शीतला माता के पूजन वाले दिन चूल्हा नहीं जलाया जाता. एक दिन पहले पका हुआ बासी भोजन (ठंडा खाना) प्रसाद के रूप में खाया जाता है. इसका कारण यह है कि देवी “शीतला” यानी “शीतलता” की प्रतीक हैं, इसलिए गर्म चीजों का उपयोग वर्जित माना जाता है.
खाने में प्रायः बासी पूड़ी, दही, आलू की सब्जी, मीठा चावल या गुड़ शामिल होता है.
बात करें पूजा विधि की तो इस दिन सुबह जल्दी उठकर घर की सफाई की जाती है. देवी शीतला का चित्र या मूर्ति स्थापित कर नीम की पत्तियां, ठंडा जल और हल्दी-कुमकुम से पूजा की जाती है. बासी भोजन (बसोड़ा) का भोग लगाया जाता है.
भारत में कुछ स्थानों पर शीतला माता मंदिर का भव्य मंदिर है. हरियाणा के गुड़गांव में शीतला माता का देश का प्रसिद्ध मंदिर है, जहां बड़े तादाद में लोग पूजा-अर्चना करने आते हैं.
राजस्थान के जयपुर में लाखों भक्त हर साल शीतला अष्टमी पर आते हैं. वहीं मथुरा, वाराणसी, अयोध्या, प्रयागराज, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में यह पर्व बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है.