जितिया व्रत (Jitiya Vrat) मां के अटूट प्रेम और त्याग का प्रतीक माना जाता है. इस दिन माताएं पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं, यानी बिना पानी के उपवास करती हैं. इसका उद्देश्य अपने बच्चों की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और खुशहाली की कामना करना है. व्रती महिलाएं दिनभर कठोर तपस्या करती हैं, कथा सुनती हैं और धार्मिक अनुष्ठान संपन्न करती हैं.
इसे खासतौर पर बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के हिस्सों में बड़े श्रद्धा भाव से मनाया जाता है. जितिया व्रत का पर्व सावन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है. इसे जितिया पूजा या जितिया उपवास भी कहा जाता है.
कथा के अनुसार, एक बार राजा हरिशचंद्र की रानी ने अपने पुत्र की लंबी उम्र और सुख-शांति की कामना करते हुए जितिया व्रत किया था. इस व्रत की श्रद्धा से राजा के पुत्र का स्वास्थ्य सुधरा और उसने लंबी उम्र पाई. इसीलिए हर साल माताएँ इस व्रत को अपने घर में विधिपूर्वक मनाती हैं और भगवान से अपने बच्चों के लिए आशीर्वाद मांगती हैं.
जितिया व्रत का पर्व भारतीय संस्कृति में मातृभूमि की ममता, त्याग और आध्यात्मिक समर्पण का सुंदर संदेश फैलाता है.
Jitiya Vrat 2025: आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर सिद्धि और शिववास योग का शुभ संयोग बन रहा है. इस योग में व्रत रखकर भगवान कृष्ण और जीमूतवाहन जी की पूजा करने से व्रती को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है.