एक खंजर जो हमारे सीने को चीरता हुआ दिल में जा धंसा, एक नश्तर जो 50 साल से बदस्तूर चुभ रहा है, एक ज़ख्म जो रह रह कर टीसता है, तो जिस्म से ज्यादा रूह को तड़पाता है. 1962 की जंग में चीन से शिकस्त खाने का मलाल दिल से जाता नहीं. लेकिन ना वो नश्तर चुभता, ना वो खंजर धंसता, ना मलाल होता उस जंग की आखिरी तस्वीर का जो काश दुश्मन को मात देने के बाद लहराते हुए तिरंगे के साथ पूरी होती.