अंधेरे में रहते-रहते भले आदमी अंधेरे को जीने लगता हो और अपनी कोशिशों से अंधेरे में देखने लगता हो पर इसका अर्थ ये नहीं कि रोशनी के प्रति उसकी चाहत खत्म हो जाती है. जीवन मूल रूप से प्रकाश है. जीवन अंधेरे से उजाले की ओर बढ़ना चाहता है. अगर ऐसा न होता तो हमारे ऋषि-मुनि ‘तमसो मां ज्योतिर्गमय’ की बात कहते ही क्यों? संजय सिन्हा आज रावण या कंस की कहानी लेकर नहीं आए हैं. पर मेरी आज की कहानी में भी अत्याचार से तंग आए मनुष्य ने ईश्वर से बहुत गुहार लगाई थी, हे प्रभु! कहां हो, हमें अंधेरे से उजाले की ओर ले चलो. कभी दुनिया को रौशन करने वाले बिहार में ये दौर था घनघोर अंधकार का. चारों ओर अपराधियों का बोलबाला था...