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संजय सिन्हा की कहानीः जीवन कर्म प्रधान होता है, भाग्य प्रधान नहीं

संजय सिन्हा की कहानीः जीवन कर्म प्रधान होता है, भाग्य प्रधान नहीं

हनुमान मंदिर के पास कोने में ददन बाबा का लखटकिया मकान था. ददन बाबा से हमारी कैसी रिश्तेदारी थी, इस विस्तार में मैं नहीं जा सकता, क्योंकि मुझे कभी पता ही नहीं चला कि वो हमारे कैसे रिश्तेदार थे. पिताजी उन्हें चाचा कहते थे और उन्होंने ही हमें बताया था कि ये ददन बाबा हैं. मेरी दिलचस्पी रिश्तेदारी के विस्तार में थी ही नहीं. मेरी दिलचस्पी ये जानने में थी कि उनके घर को ‘लखटकिया मकान’ क्यों कहा जाता है. पिताजी ने बताया था कि ददन चाचा की कभी लाख रुपये की लॉटरी निकली थी, ये मकान उन्हीं पैसों से बना है. इसलिए इसे लोग लखटकिया मकान कहते हैं. मैंने पिताजी से पूछा था कि आप लॉटरी क्यों नहीं खरीदते? इस पर संजय सिन्हा के पिताजी ने क्या कहा.....जानने के लिए सुनिए पूरी कहानी....

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