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बच्चों को Facebook-Instagram की वजह से आता है गुस्सा? सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स कैसे कर रहे हैं प्रभावित

Social Media Negative Effects: क्या सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स की वजह से हम ज्यादा चिंता और गुस्सा कर रहे हैं? हमारे आसपास फैली नेगेटिविटी में क्या है सोशल मीडिया प्लेफॉर्म्स का रोल और किस तरह से ये हमें प्रभावित करते हैं. आइए जानते हैं इन सब की सच्चाई.

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Social Media platforms
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स्टोरी हाइलाइट्स
  • लोगों की लाइफस्टाइल का अभिन्न हिस्सा बन चुका है सोशल मीडिया
  • हमारी लाइफ पर क्या है सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का प्रभाव?
  • क्या होता है Negativity Bias थ्योरी?

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म- जैसे फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर और तमाम ऐप्स की एक अलग दुनिया है. अगल दुनिया इसलिए कह रहा हूं क्योंकि कभी हमारी रोजमर्रा की लाइफ का छोटा-सा हिस्सा रहने वाले ये ऐप्स अब हमारी लाइफस्टाइल बन चुके हैं. लोगों को एक दूसरे से जोड़े रखने के नाम पर लॉन्च हुए सोशल मीडिया ऐप्स ही लोगों से दूरी का कारण बनते जा रहे हैं. हमारे गुस्से, नकारात्मकता, एंजाइटी और तमाम अवसाद का कारण यह प्लेटफॉर्म्स ही हो सकते हैं. 

कभी जिस उम्र में बच्चे हाथ में बैट-बॉल या साइकिलों पर सवार रेस लगाते नजर आते थे. अब उस उम्र में सोशल मीडिया ऐप्स पर घंटों अपना समय बिता रहे हैं. पिछले साल आई The Wall Street Journal की एक रिपोर्ट की मानें युवाओं पर खासकर 18 साल के कम उम्र के बच्चों पर फेसबुक-इंस्टाग्राम का बुरा प्रभाव पड़ता है. मेंटल हेल्थ को ये प्लेटफॉर्म्स बहुत ज्यादा प्रभावित करते हैं. 

फेसबुक की इंटरनल रिपोर्ट से हुआ खुलासा?

WSJ की रिपोर्ट फेसबुक के इंटरनल रिसर्च पर बेस्ड थी, जिसमें माना गया था कि इंस्टाग्राम का टीनएज ऑडियंस पर नेगेटिव इम्पैक्ट पड़ता है. टीनएज गर्ल्स पर नेगेटिव इम्पैक्ट के मामले में इन ऐप्स की बड़ी भूमिका रही है. इंस्टाग्राम जैसे ऐप्स की वजह से बॉडी ईमेज इशू लड़कियों में काफी ज्यादा है.

रिपोर्ट की एक स्लाइड में दिखाया गया था कि बॉडी ईमेज इशू की समस्या सर्वे में हिस्सा लेने वाली हर तीन में से एक लड़की के साथ है. सर्वे में हिस्सा लेने वाले 13 परसेंट ब्रिटिश और 6 परसेंट अमेरिकी टीन यूजर्स ने माना है कि इंस्टाग्राम जैसे ऐप्स की वजह से उन्हें आत्महत्या जैसे ख्याल आते हैं. 

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फेसबुक ने क्या कहा था?

हालांकि, उस वक्त फेसबुक की वॉइस प्रेसिडेंट और हेड ऑफ रिसर्च Pratiti Raychoudhury ने पब्लिकेशन पर अपने मर्जी से फैक्ट चुनने का आरोप लगाया था. उन्होंने उस वक्त कहा था, 'हमारी इंटरनल रिसर्च प्लेटफॉर्म पर मौजूद बुरी चीजों को कम करने और अच्छी चीजों को बढ़ावा देने की हमारी कोशिश का हिस्सा है. हमने इस रिसर्च में इसलिए इन्वेस्ट किया ताकि हम जान सकें कि कहां हमें बेहतर करने की जरूरत है. यही वजह है कि इंटरनल स्लाइड्स में बुरी चीजों को हाईलाइट किया गया था.'

बुक में भी किया गया है दावा

साल 2019 में पब्लिश हुई Johann Hari की बुक 'Lost Connections: Why You’re Depressed and How to Find Hope' में भी इसका जिक्र है. ऐपल पॉटकास्ट के पॉपुलर शो 'The Diary Of A CEO with Steven Bartlett' में भी Johann Hari की इस मुद्दे पर चर्चा की है. पॉडकास्ट के 26वें एपिसोड में आप उनकी पूरा बातचीत सुन सकते हैं. 

इस पॉडकास्ट में उन्होंने बताया कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का बिजनेस मॉडल ही ऐसा है कि लोग स्क्रॉल करते रहें. जिस वक्त आपने इन प्लेटफॉर्म्स को स्क्रॉल करना बंद किया उनका नुकसान होने शुरू हो जाएगा. इस प्लेटफॉर्म्स का एल्गोरिद्म ही इस तरह से डिजाइन किया गया है, जिसकी वजह से आप स्क्रॉल करते रहें. एल्गोरिद्म और एआई की मदद से ये प्लेटफॉर्म्स पता लगाते हैं कि आप क्या देखना चाहते हैं. 

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क्या है Negativity Bias थ्योरी?

उन्होंने बताया कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स Negativity Bias थ्योरी पर काम करते हैं, जिसका साफ मतलब है कि हम नेगेटिव चीजों पर ज्यादा ध्यान देते हैं. यानी कुल मिलाकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स किसी न किसी रूप में हम तक नेगेटिव चीजों को ज्यादा परोस रहे हैं. इससे बचने का एक ही तरीका है कि हम अपने लाइफ में सोशल मीडिया की भागिदारी को कम करें और रील्स के बजाय रियल लाइफ में फोकस करें.

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