सचिन तेंदुलकर ऐसी शख्सियत हैं, जो जब मैदान में थे तो सारी दुनिया पूछती थी कि संन्यास क्यों नहीं ले रहे और अब जब उन्होंने खेल से मुकम्मल संन्यास की घोषणा कर दी है तो सभी ऐसे हैरानी जता रहे हैं जैसे कुछ अनहोनी हो गई हो.
देश की राजनीति में जैसे कांग्रेस पार्टी का अर्थ नेहरू-गांधी परिवार होता है, वैसे ही अस्सी और नब्बे के दशक में जन्मे लोगों के लिए क्रिकेट का अर्थ सचिन तेंदुलकर रहा है. सचिन ने ही हमारी पीढ़ी के लोगों को इस खेल से प्यार करना सिखाया. आलम ये था कि सचिन आउट तो आधे लोग तो निराशा में मैच देखना ही बंद कर देते थे.
भले ही उनके करियर का आगाज सौरव गांगुली सरीखा नहीं था, लेकिन उनकी दो-चार पारियां देखकर ही सबने घोषणा कर दी थी कि सुनील गावस्कर के बाद भारत को अगला सुपर-स्टार मिल गया है. गावस्कर तो सिर्फ टेस्ट क्रिकेट के दिग्गज थे, सचिन तो गुरु गुड़ को पीछे छोड़ शक्कर भी हो गए. न केवल टेस्ट क्रिकेट, बल्कि एक-दिवसीय क्रिकेट में भी उन्होंने जो परचम लहराया, वो अनेक सदियों तक लहराता रहेगा.
मुझे अच्छे से याद है नब्बे का वो दशक, जब एक-दिवसीय क्रिकेट में दस से ज्यादा शतक लगाने वाले दो-चार गिने-चुने बल्लेबाजों में सचिन का नाम शामिल था और इसे एक बड़ी उपलब्धि माना जाता था. अब जो शतकों का पहाड़ उन्होंने खड़ा कर दिया है, उसे तोड़ने के बारे में सोचते ही युवा बल्लेबाजों के पसीने छूट जाते हैं.
बल्लेबाजी के साथ उनकी सबसे बड़ी खूबी, जिसने उनको वाकई में एक महामानव बना दिया, थी उनकी विनम्रता और खेल के प्रति उनका समर्पण. अनेक क्रिकेटर दबी जुबान से और कुछ लोग तो बड़ा खुलकर कहते हैं कि ब्रायन लारा सचिन से ज्यादा खतरनाक बल्लेबाज थे. करियर की शुरुआत में विनोद कांबली उनसे अधिक प्रतिभाशाली समझे जाते थे. परन्तु आज देख लें कि कांबली कहां हैं,? यह सब सचिन के खेल से प्यार और कड़ी मेहनत से ही संभव हुआ है, जिससे पूरी दुनिया सीख ले सकती है.
सचिन का क्रिकेट करियर न केवल क्रिकेटर्स, बल्कि सभी व्यवसायों से जुड़े लोगों को हमेशा ही प्रेरणा देता रहेगा और यह सिखाता रहेगा कि आप जिस भी दिशा में करियर बनाना चाहते हैं, आपकी जितनी चाहे आलोचना हो, आपके इर्द-गिर्द जितना चाहे भ्रष्टाचार हो, यदि आप पूरी लगन और समर्पण से काम करेंगे तो कोई भी आपको सफलता की बुलंदियों तक पहुंचने से रोक नहीं सकता.