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क्वार्टरफाइनल में चैंपियन की तरह नहीं खेले विजेंदर

लंदन ओलंपिक में कई भारतीय खिलाड़ियों में निराश किया है. दीपिका कुमारी और रोंजन सिंह सोढ़ी के बाद भारतीय बॉक्सिंग के पोस्टर ब्वॉय विजेंदर सिंह से भी निराशा हाथ लगी.

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विजेंदर सिंह
विजेंदर सिंह

लंदन ओलंपिक में कई भारतीय खिलाड़ियों में निराश किया है. दीपिका कुमारी और रोंजन सिंह सोढ़ी के बाद भारतीय बॉक्सिंग के पोस्टर ब्वॉय विजेंदर सिंह से भी निराशा हाथ लगी. सोमवार रात को हुए क्वार्टरफाइनल मुकाबले में उजबेकिस्तान के बॉक्सर अबॉस एटियोव के हाथों मिली करारी शिकस्त से कई अरमान धुल गए.

सोमवार की रात 10 बजे एक्सल एरिना में विजेंदर के मुकाबले से पहले जबरदस्त माहौल था. इस बात का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि ब्रिटिश लड़कियां भी 'विजू...विजू..' चिल्लाकर विजेंदर सिंह का उत्साह बढ़ा रही थीं.

लेकिन हाथ लगी निराशा. विजेंदर ऐसा प्रदर्शन नहीं कर सके जो उन्हें सेमीफाइनल का टिकट दिलाता. मुकाबले से पहले अनायास ही 2010 एशियन गेम्स के फाइनल वो तस्वीरें याद आ रही थीं जिसमें विजेंदर सिंह ने अबॉस एटियोव को हराया था. लेकिन उम्मीदें उसी तरह फुर्र हो गईं जैसे सोडे की बोतल से बुलबुले. स्टेडियम में मौजूद दर्शक प्रोत्साहित करते रहे लेकिन विजेंदर की प्रतिद्वंदी के सामने एक न चली.

हर कोई इस बात से वाकिफ है कि विजेंदर अन्य मिडिलवेट बॉक्सरों की तरह नहीं हैं जो विपक्षियों पर ताबड़तोड़ घूसे बरसाने की रणनीति अपनाते हैं. विजेंदर रक्षात्मक शैली की बॉक्सिंग करते हैं और बीच-बीच में विपक्षियों पर सटीक पंच जड़कर प्वाइंट बटोरते हैं.

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शायद, एटियोव ने विजेंदर सिंह की इस शैली को पूरी तरह से पढ़ लिया था. जो पूरे मैच के दौरान दिखा.

अंततः विजेंदर उन उम्मीदों पर खड़े नहीं उतर सके. पूरे मुकाबले के दौरान कभी भी विजेंदर चैंपिनय की तरह नहीं खेले. और उन्हें 17-13 से शिकस्त झेलनी पड़ी.

मैच के बाद विजेंदर सिंह मीडिया से मुखातिब तक नहीं हुए. इस वजह से बॉक्सिंग फेडरेशन के सचिव ब्रिगेडियर मुरलीधरन राजा को मीडिया ब्रीफिंग करनी पड़ी.

राजा ने कहा कि विजेंदर सिंह एटियोव से बेहतर मुक्केबाज हैं पर आज उनका दिन नहीं था.

दुख इस बात का है, राजा ने इस बात पर गौर नहीं किया कि मिडिलवेट मुकाबले में 3 राउंड होते हैं जो सिर्फ 9 मिनट में खत्म हो जाते हैं. पर सोमवार रात को हुए मुकाबले में एक पल के लिए भी विजेंदर चैंपियन की तरह खेले.

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