दिग्गज क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर ने कहा कि अपने 24 साल के करियर के एक बड़े हिस्से को उन्होंने तनाव में रहते हुए गुजारा है. तेंदुलकर ने कहा कि वह बाद में इस बात को समझने में सफल रहे कि मैच से पहले तनाव खेल की उनकी तैयारी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था.
कोविड-19 के दौरान बायो-बबल में अधिक समय बिताने से खिलाड़ियों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ रहे असर के बारे में बात करते हुए तेंदुलकर ने कहा कि इससे निपटने के लिए इसकी स्वीकार्यता जरूरी है. सचिन तेंदुलकर ने ‘अनअकेडमी’ द्वारा आयोजित एक परिचर्चा में कहा, ‘समय के साथ मैंने महसूस किया कि खेल के लिए शारीरिक रूप से तैयारी करने के साथ आपको खुद को मानसिक रूप से भी तैयार करना होगा. मेरे दिमाग में मैदान में प्रवेश करने से बहुत पहले मैच शुरू हो जाता था. तनाव का स्तर बहुत अधिक रहता था.’
अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में शतकों का शतक लगाने वाले इस इकलौते पूर्व खिलाड़ी ने कहा, ‘मैंने 10-12 वर्षों तक तनाव महसूस किया था, मैच से पहले कई बार ऐसा हुआ था जब मैं रात में सो नहीं पता था. बाद में मैंने यह स्वीकार करना शुरू कर दिया कि यह मेरी तैयारी का हिस्सा है. मैंने समय के साथ इस स्वीकार कर लिया कि मुझे रात में सोने में परेशानी होती थी. मैं अपने दिमाग को सहज रखने के लिए कुछ और करने लगता था.’
उन्होंने कहा 'कुछ और' में बल्लेबाजी अभ्यास, टेलीविजन देखना और वीडियो गेम्स खेलने के अलावा सुबह चाय बनाना भी शामिल था. रिकॉर्ड 200 टेस्ट मैच खेल कर 2013 में संन्यास लेने वाले इस खिलाडी ने कहा, ‘मुझे मैच से पहले चाय बनाने, कपड़े इस्त्री करने जैसे कार्यों से भी खुद को खेल के लिए तैयार करने में मदद मिलती थी. मेरे भाई ने मुझे यह सब सिखाया था, मैं मैच से एक दिन पहले ही अपना बैग तैयार कर लेता था और यह एक आदत सी बन गयी थी. मैंने भारत के लिए खेले अपने आखिरी मैच में भी ऐसा ही किया था.’
'बुरे समय को स्वीकार करें खिलाड़ी'
सचिन ने कहा कि खिलाड़ी को मुश्किल समय का सामना करना ही पड़ता है, लेकिन यह जरूरी है कि वह बुरे समय को स्वीकार करें. उन्होंने कहा, ‘जब आप चोटिल होते हैं तो चिकित्सक या फिजियो आपका इलाज करते हैं. मानसिक स्वास्थ्य के मामले में भी ऐसा ही है. किसी के लिए भी अच्छे-बुरे समय का सामना सामान्य बात है.' उन्होंने कहा, ‘इसके लिए आपको चीजों को स्वीकार करना होगा. यह सिर्फ खिलाड़ियों के लिए नहीं है, बल्कि जो उसके साथ है उस पर भी लागू होती है. जब आप इसे स्वीकार करते हैं तो फिर इसका समाधान ढूंढने की कोशिश करते हैं.’
उन्होंने चेन्नई के एक होटल कर्मचारी का जिक्र करते हुए कहा कि कोई भी किसी से भी सीख सकता है. उन्होंने बताया, ‘मेरे कमरे में एक कर्मचारी डोसा लेकर आया और उसे टेबल पर रखने के बाद उसने मुझे एक सलाह दी. उसने बताया कि मेरे एल्बो गार्ड (कोहनी को चोट से बचाने वाला) के कारण मेरा बल्ला पूरी तरह से नहीं चल रहा, यह वास्तव में सही तथ्य था. उसने मुझे इस समस्या से निजात दिलाने में मदद की.’